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अख़लाक़ मामले पर योगी सरकार के आगे न झुकने वाले जज सौरभ द्विवेदी की सुरक्षा बढ़ाई जाए- शाहनवाज़ आलम

 




23 दिसंबर 2025. कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव शाहनवाज़ आलम ने गौतम बुद्ध ज़िला अदालत द्वारा अख़लाक़ हत्याकांड के आरोपियों के ख़िलाफ़ मुकदमे वापस लेने की राज्य सरकार की अर्ज़ी के ख़ारिज कर दिए जाने का स्वागत किया है. उन्होंने फ़ैसला सुनाने वाले जज सौरभ द्विवेदी की सुरक्षा बढ़ाने की भी मांग की है.

शाहनवाज़ आलम ने जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि योगी आदित्यनाथ ख़ुद मॉब लिंचिंग करने वाले आतंकवादियों के प्रेरणास्रोत हैं इसीलिए उन्होंने अपने लोगों पर से अख़लाक़ की हत्या के मुकदमे को हटाने की कोशिश की थी. लेकिन ज़िला अदालत सरकार के दबाव में नहीं आई. उन्होंने कहा कि जिस तरह के तर्क सरकार ने दिए थे वो एक तरह से अल्पसंख्यक समाज को धमकी थी कि अगर मुक़दमा ख़त्म नहीं किया गया तो इससे वो सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ देगी. उन्होंने कहा कि जस्टिस लोया का उदाहरण देखते हुए सरकार के ख़िलाफ़ फ़ैसला देने वाले सूरजपुर कोर्ट के अतिरिक्त ज़िला जज सौरभ द्विवेदी की सुरक्षा बढ़ायी जानी चाहिए. इसके साथ ही ज़मानत पर चल रहे सभी अभियुक्तों को दुबारा जेल भेजा जाना चाहिए. 

कांग्रेस नेता ने कहा कि अख़लाक़ मामले में आए इस फ़ैसले ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2018 में भीड़ हिंसा की रोकथाम के लिए जारी गाइडलाइन के अभी तक लागू न किए जाने को भी उजागर कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हर ज़िले में एसपी या उससे ऊपर के रैंक के अधिकारी को भीड़ हिंसा और हेट स्पीच को रोकने के लिए तैनात किया जाएगा. लेकिन योगी सरकार ने किसी भी ज़िले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू नहीं किया है.

उन्होंने कहा कि गाइडलाइन में भीड़ हिंसा के संभावित स्थानों को चिन्हित करने और वहाँ पुलिस पैट्रोलिंग बढ़ाने का भी निर्देश था. लेकिन योगी सरकार ने जानबूझकर ऐसे इलाक़ों को चिन्हित नहीं किया क्योंकि ऐसे इलाक़ों में ही बजरंग दल और कथित गौ रक्षक गैंग ज़्यादा सक्रिय हैं जो लूटपाट और हत्याएं करते हैं. अगर ऐसा किया गया होता तो सबसे ज़्यादा गिरफ़्तारी आरएसएस और भाजपा से जुड़े अपराधियों की होती. इसलिए योगी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अमल नहीं किया.

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को भीड़ हिंसा के पीड़ितों के पुनर्वास के लिए स्कीम बनाने का भी निर्देश दिया था. वहीं संसद को भी भीड़ हिंसा के ख़िलाफ़ कठोर क़ानून बनाने का सुझाव दिया था. लेकिन न तो केंद्र और न राज्य सरकार ने ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन किया. लेकिन यह आश्चर्य की बात है कि सुप्रीम कोर्ट अपनी अवमानना पर चुप रहा. जबकि उसे स्वतः संज्ञान लेकर केंद्र और राज्य को नोटिस भेजना चाहिए था.

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि अख़लाक़ मामले ने फ़िर से अल्पसंख्यक वर्ग की सुरक्षा के लिए दलित ऐक्ट जैसे क़ानून की ज़रूरत को सामने ला दिया है. नागरिक समाज को इस क़ानून के निर्माण के लिए जनमत बनाना चाहिए. 

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