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मनरेगा को ख़त्म करके मोदी ने गोडसे की आत्मा को श्रद्धांजलि दी है- शाहनवाज़ आलम

 


नई दिल्ली, 21 दिसम्बर 2025. महात्मा गांधी के नाम पर बने मनरेग को ख़त्म करके मोदी सरकार ने अपने आदर्श गोडसे की आत्मा को ख़ुश करने की कोशिश की है. भाजपा दलितों और पिछड़ों को फिर से बेगार बनाना चाहती है. इससे उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश जैसे ग़रीब राज्यों में ग़रीबी और पलायन की समस्या और बढ़ेगी. कांग्रेस सत्ता में आते ही फिर से मनरेगा को बहाल करेगी. 

ये बातें कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव शाहनवाज़ आलम ने साप्ताहिक स्पीक अप कार्यक्रम की 226 वीं कड़ी में कहीं.

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि केंद्र सरकार ने चोरी छुपे मनरेगा को खत्म किया. इसीलिए बिना देश को बताए अचानक 12 दिसंबर को प्रस्ताव लाया गया और 18 दिसम्बर को इसे ख़त्म कर दिया गया. जो सरकार के इस डर को दिखाता है कि अगर मज़दूरों और ग़रीबों को पता हो जाता कि सरकार उनके रोज़गार के अधिकार को ख़त्म कर रही है तो लोग विद्रोह कर सकते थे. उन्होंने कहा कि कांग्रेस ग़रीबों के रोज़गार के इस क़ानून को ख़त्म करने के ख़िलाफ़ संघर्ष करेगी और सत्ता में आने पर इसे फिर से बहाल करेगी. 

उन्होंने कहा कि मनरेगा को ख़त्म करते समय केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह का पूर्व जनसंघ अध्यक्ष पंडित दीनदयाल उपाध्याय का नाम लेना संयोग नहीं है. आरएसएस, हिंदू महासभा और जनसंघ शुरू से ही ज़मींदारी प्रथा के समर्थक रहे हैं और उन्होंने कांग्रेस द्वारा ज़मींदारी प्रथा के उन्मूलन का विरोध भी किया था. मनरेगा को ख़त्म करके भाजपा गांवों में फिर से उन दलितों और पिछड़ों को कथित बड़ी जातियों के खेतों में बेगार बना देना चाहती है जिन्हें मनरेगा ने आत्मसम्मान से अपने श्रम का मेहनताना पाने का अधिकार दिया था. उन्होंने कहा कि दलितों, पिछड़ों और अति पिछड़ों को यह नहीं भूलना चाहिए कि गांवों में किन तबकों ने मनरेगा का विरोध किया था. 

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि संसद में शिवराज सिंह चौहान को गांधी जी के साथ दीनदयाल उपाध्याय का नाम लेने के बजाए 11 फरवरी 1968 को मुगलसराय रेलवे स्टेशन पर संदेहास्पद स्थिति में हुई उपाध्याय की हत्या की जांच कराने की कोशिश करनी चाहिए थी. लेकिन भाजपा कभी इसकी जांच नहीं कराएगी क्योंकि उसे पता है कि इसमें भाजपा के पूर्व अवतार जनसंघ के नेताओं की ही भूमिका सामने आ सकती है।

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि जनसंघ के पूर्व अध्यक्ष बलराज मधोक ने अपनी पुस्तक ‘जिंदगी का सफर’ के तीसरे खंड
में दीनदयाल हत्याकांड के संदर्भ में रहस्योद्घाटन किया था कि उन्हें अपने सूत्रों से पता चला था कि हत्या में जनसंघ के ही कुछ वरिष्ठ नेता शामिल थे और ये पार्टी पर नियंत्रण के लिए चल रहे आंतरिक संघर्ष का नतीजा था।

पुस्तक में मधोक ने यह भी रहस्योद्घाटन किया था कि तत्कालीन सरकार द्वारा इस हत्याकांड की जारी जांच को अटल बिहारी बाजपेयी और नाना जी देशमुख ने बाधित किया और उसे ठंडे दिमाग से किए गए हत्या के बजाए एक दुखद दुघर्टना के बतौर प्रचारित किया।

मधोक ने अपने दावे के समर्थन में इस तथ्य को भी पुस्तक में दर्ज किया था कि 1977 में जब जनता पार्टी की सरकार बनी तब सुब्रह्मणयम स्वामी ने तत्कालीन गृहमंत्री चौधरी चरण सिंह से दोबारा जांच की मांग की, लेकिन जनसंघ के मंत्रियों अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी ने इस प्रयास को बाधित कर दिया।



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