लखनऊ, 7 सितम्बर 2025. सीजेआई बीआर गवई का कार्यकाल भी
डीवाई चन्द्रचूड जैसा साबित होता दिख रहा है जहां भाजपा के एजेंडे को सूट
करने वाले राजनीतिक फैसले आ रहे हैं. अपने नेतृत्व वाले कॉलेजियम द्वारा
अपने भांजे को मुंबई हाईकोर्ट में जज नियुक्त कर देना भी बीआर गवई जी के पद
की प्रतिष्ठा को धूमिल करने वाला है. इस घटनाक्रम से न्यायपालिका की
विश्वसनीयता कम हुई है. ये बातें कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव शाहनवाज़ आलम
ने साप्ताहिक स्पीक अप कार्यक्रम की 211 वीं कड़ी में कहीं.
शाहनवाज़
आलम ने कहा कि कुछ दिनों पहले ही मुंबई हाईकोर्ट में भाजपा प्रवक्ता आरती
साठे को बीआर गवई की कॉलेजियम ने जज नियुक्त किया था. जिस पर सवाल उठने के
बावजूद सीजेआई गवई ने चुप्पी साधे रखी थी. अब गवई जी के भांजे राज वाकोड़े
को गवई जी की कॉलेजियम ने मुंबई हाईकोर्ट में ही जज नियुक्त कर दिया है.
जबकि ऐसी स्थिति में उन्हें कॉलेजियम से हट जाना चाहिए था. लेकिन उन्होंने
ऐसा करने के बजाये अपने पद की प्रतिष्ठा के साथ समझौता करने का उदाहरण पेश
कर दिया. जिससे पहले से ही विश्वसनीयता का संकट झेल रही न्यायपालिका और
कॉलेजियम व्यवस्था की छवि और ख़राब हुई है.
शाहनवाज़
आलम ने कहा कि ऐसा लगता है कि भाजपा और मुख्य न्यायाधीश में ऐसी सहमति रही
हो कि अगर भाजपा की प्रवक्ता को मुंबई हाईकोर्ट में जज बनाया जाता है तो
बदले में मुख्य न्यायाधीश जी के भांजे को भी वहां हाई कोर्ट का जज बनाया
जाएगा. दोनों ही एक दूसरे के निजी हितों का ख्याल रखते हुए न्यायपालिका के
पतन पर उठने वाले सवालों पर चुप रहेंगे.
उन्होंने
कहा कि सीजेआई गवई जी भी डीवाई चन्द्रचूड़ की तरह सेमिनारों में बड़ी-बड़ी
बातें करते दिखते रहे हैं. उन्होंने सीजेआई बनते ही कह दिया था कि वो
रिटायरमेन्ट के बाद कोई पद नहीं लेंगे लेकिन ऐसा लगता है कि वो रिटायरमेन्ट
से पहले ही भांजे को जज बनाने का निर्णय ले चुके थे. इसलिए रिटायरमेन्ट के
बाद कोई लाभ नहीं लेने की बात कर रहे थे.
शाहनवाज़
आलम ने कहा कि ऐसी धारणा तेजी से मजबूत हो रही है कि मोदी सरकार जो काम
ख़ुद नहीं कर पाती उसे अपने पसंदीदा जजों से करवाती है. बाबरी मस्जिद, 370,
इलेक्टोरल बॉन्ड से लेकर उमर खालिद और अन्य छात्र नेताओं की ज़मानत जैसे
मुद्दों पर न्यायपालिका ने अपनी निष्पक्ष होने की छवि धूमिल कर ली है.
उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों को न्यायपालिका में व्याप्त भ्रष्टाचार के
सवाल को प्रमुखता से उठाना चाहिए ताकि न्यायपालिका के माध्यम से तानाशाही
थोपने की साज़िशों से लोकतंत्र की रक्षा की जा सके.
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