मौलाना आज़ाद मेमोरियल अकादमी लखनऊ के तत्वावधान में शिक्षक दिवस पर अखिल भारतीय वेबिनार
लखनऊ,
3 सितम्बर: मौलाना आज़ाद मेमोरियल अकादमी लखनऊ के तत्वावधान में भारत के
पूर्व राष्ट्रपति, महान शिक्षाविद् और दार्शनिक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन
की 138वीं जयंती (शिक्षक दिवस) के अवसर पर एक अखिल भारतीय वेबिनार का आयोजन
किया गया। विषय था: "सांस्कृतिक मूल्यों का संवर्धन और शिक्षा : डॉ.
राधाकृष्णन और मौलाना आज़ाद का दृष्टिकोण"।
मुख्य
अतिथि प्रोफ़ेसर शाफे किदवई (अध्यक्ष, जनसंचार एवं पत्रकारिता विभाग,
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय) ने अपने संबोधन में कहा कि डॉ. राधाकृष्णन
और मौलाना आज़ाद दोनों अपनी गहन विद्वत्ता और वैचारिक धरोहर के कारण आज भी
हमारे लिए मार्गदर्शक हैं। दोनों महापुरुषों ने शिक्षा को केवल रोज़गार का
साधन नहीं माना बल्कि नैतिक और मानवीय मूल्यों के प्रसार का माध्यम बताया।
उन्होंने
आज के तकनीकी और आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) के युग का उल्लेख करते हुए
कहा कि यद्यपि विद्यार्थियों को असीमित जानकारियाँ उपलब्ध हैं, लेकिन
आलोचनात्मक सोच तथा सही और ग़लत की पहचान की क्षमता कमज़ोर पड़ती जा रही
है। ऐसे समय में राधाकृष्णन का यह विचार कि “धर्म जो नफ़रत सिखाए, धर्म
नहीं है” और मौलाना आज़ाद की यह सोच कि स्त्री और पुरुष दोनों को समान
शिक्षा के अवसर मिलने चाहिए, आज भी मार्गदर्शन प्रदान करती है।
प्रोफ़ेसर
किदवई ने ज़ोर देकर कहा कि भौतिकवाद से भरे इस दौर में इन महापुरुषों की
शिक्षाओं पर पुनर्विचार करना अत्यंत आवश्यक है, ताकि नई पीढ़ी को मानवता,
सहिष्णुता और सद्भाव जैसे सार्वभौमिक मूल्यों से जोड़ा जा सके।
इस
शैक्षिक गोष्ठी में रांची विश्वविद्यालय के पूर्व अध्यक्ष (उर्दू विभाग)
प्रोफ़ेसर जमशेद क़मर ने विषय का परिचय कराया। इस अवसर पर प्रोफ़ेसर आमिर
रियाज़ (अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय), प्रोफ़ेसर जहाँआरा (करामत मुस्लिम
गर्ल्स पीजी कॉलेज), प्रोफ़ेसर रुद्र प्रसाद साहू (अम्बेडकर
विश्वविद्यालय), प्रोफ़ेसर मनोज पांडे (अध्यक्ष, लखनऊ विश्वविद्यालय शिक्षक
संघ) और जनाब शहनवाज़ ख़ान (अध्यक्ष, मौलाना आज़ाद स्टडी सर्किल, रांची)
ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
वक्ताओं ने कहा कि डॉ.
राधाकृष्णन भारतीय संस्कृति और सभ्यता की आत्मा के प्रतिनिधि थे और
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की वैचारिक व शैक्षिक पहचान के प्रवक्ता भी थे।
मौलाना आज़ाद ने पहले शिक्षा मंत्री के रूप में भारत की शिक्षा व्यवस्था
की बुनियाद रखी और वैज्ञानिक, शोध एवं सांस्कृतिक संस्थानों की स्थापना के
मार्ग प्रशस्त किए।
अपने अध्यक्षीय संबोधन में
प्रोफ़ेसर शारिक अलीवी ने कहा कि नई पीढ़ी को अपने पूर्वजों की वैचारिक और
नैतिक धरोहर से अवगत कराना समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है। महासचिव डॉ.
अब्दुल क़ुद्दूस हाशमी ने कहा कि बदलते समय में इन्हीं चिंतकों के विचारों
की रोशनी हमें सहिष्णु, सामंजस्यपूर्ण और प्रगतिशील समाज के निर्माण की ओर
ले जा सकती है। उन्होंने शैक्षणिक संस्थानों में मौलाना आज़ाद और डॉ.
राधाकृष्णन की तस्वीरें स्थापित करने का भी सुझाव दिया ताकि विद्यार्थी इन
महान व्यक्तित्वों के योगदान से परिचित हो सकें।
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