नयी दिल्ली, 21 सितम्बर 2025. वक़्फ़ क़ानून पर सुप्रीम कोर्ट
का अतंरिम फैसला न्यायिक कम राजनीतिक ज़्यादा है. इसमें सरकार के मुस्लिम
विरोधी उद्देश्यों को वैधता देने का षड्यंत्र देखा जा सकता है. ये बातें
कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव शाहनवाज़ आलम ने साप्ताहिक स्पीक अप कार्यक्रम
की 213 वीं कड़ी में कहीं.
शाहनवाज़
आलम ने कहा कि जब 1930 में पी रामारेड्डी केस में मद्रास हाईकोर्ट, 1940
में अरूर सिंह केस में लाहौर हाईकोर्ट और 1956 में अब्दुल गफूर केस में
सुप्रीम कोर्ट यह फैसला दे चुका है कि गैर मुस्लिम भी वक़्फ़ कर सकते हैं तो
फिर सुप्रीम कोर्ट अपने ही पुराने फैसलों को पलट कर किसको ख़ुश करना चाहता
है? उन्होंने यह भी कहा कि जब सरकार के हिसाब से गैर मुस्लिम वक़्फ़ नहीं कर
सकता तो फिर वो वक़्फ़ बोर्ड में क्या करने के लिए रहेगा? इसका जवाब भी
सुप्रीम कोर्ट नहीं दे पाया.
शाहनवाज़
आलम ने कहा कि क्या सुप्रीम कोर्ट में इतनी हिम्मत है कि वो राम मंदिर
ट्रस्ट या किसी भी मंदिर के ट्रस्ट में मुसलमानों को सदस्य बनाने का आदेश
दे सके? इस सवाल का जवाब आज देश का बच्चा-बच्चा जानता है कि न्यायपालिका
में इतनी हिम्मत नहीं है और जो जज ऐसी हिम्मत दिखायेगा उसका हश्र जस्टिस
लोया जैसा हो जाएगा. उन्होंने कहा कि यह आदेश दरअसल मुस्लिम संस्थाओं में
आरएसएस और भाजपा के लोगों को घुसाने का षड्यंत्र है जिसपर सुप्रीम कोर्ट से
मुहर लगवाई गयी है.
उन्होंने
कहा कि पिछले 10 सालों में ऐसे कई फैसले आए हैं जो भारत को ढांचागत स्तर
पर आरएसएस के एजेंडे की तरफ ले जाने वाले हैं. इस मामले में मौजूदा सीजेआई
बीआर गवई सीधे भगवान राम से निर्देश पाकर फैसला देने वाले पूर्व सीजेआई
डीवाई चंद्रचूड़ को कड़ी टक्कर देते दिख रहे हैं.
उन्होंने
कहा कि क़ानून के इस प्रावधान पर सुप्रीम कोर्ट की चुप्पी कि सरकारी
रिकॉर्ड वाली ज़मीन वक़्फ़ की प्रॉपर्टी नहीं हो सकती इस सामान्य समझ को
नकारने वाली है कि भारत में मुसलमान सरकारों के गठन के बाद नहीं आए थे. ये
उससे हज़ारों साल पहले से हैं इसलिए उनकी मस्जिदें और मदरसे स्वाभाविक वज़हों
से रिकॉर्ड में हो ही नहीं सकते. जबकि वो ज़मीन ज़रूर सरकार की हो सकती है.
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के इस तर्क का इस्तेमाल मुस्लिम विरोधी
सत्ता सरकारी ज़मीनों पर बनी मस्जिदों पर बुलडोज़र चलवाकर बहुसंख्यकवादी
कुंठाओं का तुष्टिकरण करेगी.
शाहनवाज़
आलम ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का यह कहना कि सरकार द्वारा बनाए गए क़ानून को
संवैधानिक मानना उसकी परम्परा है, पूरे प्रकरण का गलत और गुमराह करने वाला
विश्लेषण है. जिसका मकसद भाजपा सरकार को बहुमत के बल पर कोई भी क़ानून बना
लेने का हौसला देना है. जिसका अंतिम मकसद मौलिक ढांचे के सिद्धांत को ख़त्म
करना है जो यह स्थापित करता है कि समाजवादी और सेक्युलर शब्दों वाले
संविधान के प्रस्तावना में संसद कोई बदलाव नहीं कर सकती. उन्होंने कहा कि
मोदी के 2014 में सत्ता में आने के बाद से ही संविधान की प्रस्तावना में से
समाजवादी और सेक्युलर शब्दों को हटाने के उद्देश्य से मौलिक ढांचे के
सिद्धांत को ख़त्म करने के लिए संसद, सड़क और कोर्ट तक में भाजपा के लोग मांग
कर चुके हैं.
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