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उमर खालिद मामले का फैसला न्यायिक कम राजनीतिक ज़्यादा है- शाहनवाज़ आलम

 


नयी दिल्ली  2 सितम्बर 2025. कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव शाहनवाज़ आलम ने दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा उमर खालिद, शरजील इमाम, गुल्फिशा फातिमा, मीरान हैदर समेत अन्य मुस्लिम युवकों का दिल्ली दंगों के मामले में ज़मानत ख़ारिज कर दिए जाने को न्याययिक फैसले के बजाये राजनीतिक फैसला बताया है. 

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले ने बेल नियम और जेल अपवाद के सिद्धांत का मज़ाक उडाने वाला फैसला देकर न्यायालय पर बढ़ते राजनीतिक दबाव को स्पष्ट कर दिया है. क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ख़ुद अपने फैसलों में कह चुका है कि यूएपीए जैसे मामलों में भी बेल नियम और जेल अपवाद के सिद्धांत से समझौता नहीं किया जा सकता. उन्होंने कहा कि सरकार ने उमर खालिद और अन्य छात्रनेताओं को किसी अन्य द्वारा बनाए गए वाट्सऐप ग्रुप के ऐसे सदस्य होने जिसने कभी कोई मैसेज भी नहीं किया जैसे सतही आरोपों में बिना बेल के 5 साल से कैद कर रखा है. जबकि दिल्ली दंगे के असली दोषियों दिल्ली पुलिस के अधिकारियों, आरएसएस और भाजपा नेताओं को कभी गिरफ्तार नहीं किया गया और न तो ऐसा करने में विफल रहने पर न्यायपालिका ने कोई सख़्ती ही दिखाई.

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि जब कॉलेजियम वरिष्ठता क्रम में 57 वें नंबर पर रहने वाले सरकार समर्थक जजों को सुप्रीम कोर्ट में प्रमोशन देगा तो निचली अदालतों के जजों में न्याययिक के बजाये सरकार को ख़ुश करने वाले राजनीतिक फैसले देने का चलन और दबाव बढेगा. उमर खालिद और अन्य के मामले में आया फैसला ऐसा ही उदाहरण प्रतीत होता है. उन्होंने कहा कि इससे पहले भी देश देख चुका है कि 'गोली मारो सालों को' जैसे हत्या के लिए उकसाने वाले नारे लगाने के बावजूद केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर को दिल्ली हाईकोर्ट के जज सीडी सिंह ने यह कहते हुए बरी कर दिया था कि ये नारे उन्होंने मुस्कुराते हुए लगाए थे इसलिए यह अपराध की श्रेणी में नहीं आता. उन्होंने कहा कि ऐसे फैसलों से न्यायपालिका की छवि लगातार ख़राब होती जा रही है. 

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि 2014 के बाद से कॉलेजियम ने ऐसे कई लोगों को उच्च न्यायालयों में जज नियुक्त किया है जिसमें विक्टोरिया गौरी और आरती साठे जैसी भाजपा पदाधिकारी भी हैं, जिनसे आरएसएस और भाजपा का अपने एजेंडे को सूट करने वाले राजनीतिक फैसले लेते रहने का खतरा बढ़ा है. उन्होंने कहा कि भले मुख्य न्यायाधीश अपने कुछ फैसलों से कार्यपालिका को न्यायपालिका की जगह न लेने देने के लिए अपनी पीठ थपथपा लें लेकिन सच्चाई यही है कि उनके कार्यकाल में आरएसएस के राजनीतिक एजेंडे के सामने न्यायपालिका लगातार झुकता जा रहा है.


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