लखनऊ, 30 अगस्त 2025. कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव शाहनवाज़
आलम ने कहा है कि सम्भल हिंसा पर योगी सरकार द्वारा गठित जांच रिपोर्ट में
सम्भल में पिछले साल हुई हिंसा के बजाये अतीत में हुए 1947, 1953, 1958,
1962, 1976 और 1984 के दंगों का ज़िक्र होना साबित करता है कि योगी सरकार ने
जांच के नाम पर अपनी नाकामियों को छुपाने का प्रयास किया है. इसलिए
इलाहबाद हाईकोर्ट को पूरे घटना की अपने देखरेख में न्यायिक जांच करानी
चाहिए.
शाहनवाज़ आलम ने
जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि मानवाधिकार संगठन एपीसीआर ने संभल दंगे के
समय इलाहाबाद हाईकोर्ट में पिटीशन दायर कर न्यायिक जांच की माँग की थी.
जिसके बाद आनन-फ़ानन में उत्तर प्रदेश सरकार ने इलाहबाद हाईकोर्ट के
रिटायर्ड जज देवेंद्र कुमार अरोड़ा की अध्यक्षता में एक आयोग बना दिया. जिसे
मुख्यमंत्री को रिपोर्ट सौंपनी थी. क्योंकि सरकार को डर था कि कहीं
हाईकोर्ट न्यायिक आयोग बनवाकर सीधे अपने पास न रिपोर्ट मंगवा ले. उसके बाद
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से कहा था कि एक जांच कमेटी बन गई है
तो हम दूसरी कमेटी नहीं बना सकते.
शाहनवाज़
आलम ने कहा कि योगी सरकार और उसके राजनीतिक एजेंडे के पक्ष में काम करने
वाली पुलिस की आपराधिक भूमिका को छुपाने के लिए ही जांच कमेटी ने अतीत के
दंगों और बहुसंख्यक तबके के पलायन की तथ्यहीन, अप्रामाणिक और हिन्दुत्वादी
अफवाहों को रिपोर्ट की शक्ल दी है. जिसकी इस तथ्य से भी पुष्टि होती है कि
योगी सरकार गोदी मीडिया के माध्यम से रिपोर्ट के कुछ कथित अंशों को लीक कर
रही है और जांच कमेटी के एक सदस्य अरविन्द जैन मीडिया में रिपोर्ट को
गोपनीय भी बता रहे हैं. यानी रिपोर्ट का मकसद हिंसा में मारे गए चार
नागरिकों को न्याय देने के बजाये पुलिस की आपराधिक संलिप्तता को जायज
ठहराना है.
उन्होंने कहा
कि बहुसंख्यकों के कैराना से पलायन की ऐसी ही झूठ आरएसएस और भाजपा पहले भी
फैला चुके हैं. जिसे बाद में स्वतंत्र मीडिया ने पकड़ लिया था. उन्होंने कहा
कि यह भी हो सकता है इस फ़र्ज़ी और मनगढ़न्त रिपोर्ट पर भाजपा के प्रचार के
लिए विवेक अग्निहोत्री ने सम्भल फाइल्स नाम से कोई फ़िल्म भी बनानी शुरू कर
दी हो.
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