लखनऊ, 13 जुलाई 2025. यूपी सरकार द्वारा काँवाड़ यात्रा के
दौरान ढाबों, होटलों और ठेलों के मालिकों से अपनी पहचान उजागर करने का आदेश
सुप्रीम कोर्ट द्वारा पिछले साल ऐसे ही आदेश पर लगाई गयी रोक की अवमानना
है. जिसपर सुप्रीम कोर्ट को स्वतः संज्ञान लेकर कार्यवाई करनी चाहिए. ये
बातें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सचिव शाहनवाज़ आलम ने साप्ताहिक स्पीक
अप कार्यक्रम की 203 वीं कड़ी में कहीं.
शाहनवाज़
आलम ने कहा कि पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने 22 जुलाई को अपने आदेश में योगी
सरकार की ऐसे ही साम्प्रदायिक और विभाजनकारी आदेश पर रोक लगाते हुए इसे
क़ानून विरोधी माना था. ऐसे में उसी साम्प्रदायिक उद्देश्य से नए सिरे से
अगर सरकार कोई आदेश जारी करती है तो यह सुप्रीम कोर्ट की अवमानना है. लेकिन
सुप्रीम कोर्ट अपनी अवमानना पर स्वतः संज्ञान नहीं ले पाया. जिसके कारण उन
व्यक्तियों में से एक को दुबारा सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करनी पड़ी
जिसकी याचिका पर पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश पर रोक लगाया था.
उन्होंने
कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट अपनी अवमानना पर चुप रहे और याचिकाकर्ता को ही
बार बार कोर्ट जाना पड़े तो इससे सुप्रीम कोर्ट की कार्यशाली पर सवाल उठना
स्वाभाविक है. उन्होंने कहा कि यह संयोग दुर्भाग्यपूर्ण है कि 2014 के बाद
से ही अल्पसंख्यकों के हितों पर होने वाले प्रत्यक्ष हमलों की घटनाओं पर
अदालतों द्वारा स्वतः संज्ञान लेने के उदाहरण न के बराबर दिख रहे हैं.
शाहनवाज़
आलम ने कहा कि दुकान मालिकों की धार्मिक पहचान उजागर करवाकर योगी सरकार
उनके ख़िलाफ हिंसक तत्वों को उकसा रही है. ऐसे में अगर किसी के भी ख़िलाफ
हिंसा होती है तो इसके लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपने आदेश की अवमानना पर
स्वतः संज्ञान न लिया जाना भी कारण होगा.
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