संविधान की प्रस्तावना पर संकट: भारत के बुनियादी सिद्धांतों के समक्ष चुनौतियां " विषय पर दिल्ली में संगोष्ठी संपन्न
12 जुलाई नई दिल्ली. संविधान की प्रस्तावना को लेकर देश
में छिड़ी धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद पर बहस के बीच कॉन्स्टिट्यूशन क्लब
ऑफ़ इंडिया, नई दिल्ली के डिप्टी चेयरमैन हॉल में आज, शनिवार, 12 जुलाई को
*"संविधान की प्रस्तावना पर संकट: भारत के बुनियादी सिद्धांतों के समक्ष
चुनौतियाँ*" विषय पर एक महत्वपूर्ण संगोष्ठी आयोजित की गई। इस संगोष्ठी का आयोजन "हम भारत के लोग" द्वारा किया गया.
सुप्रीम
कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े इस कार्यक्रम में बतौर अतिथि शामिल
हुए। उन्होंने अपनी बात साझा करते हुए कहा कि संविधान की प्रस्तावना से
सेक्युलर और समाजवादी शब्द हटाना समावेशी भारतीय संस्कृति और स्वतंत्रता
आंदोलन के मूल्यों पर हमला है. जिन लोगों को इन शब्दों से दिक़्क़त है उनकी
विचारधारा विभाजकारी है.
वरिष्ठ
पत्रकार अनिल चमडिया ने कहा कि प्रस्तावना ये कहता है कि हम एक नागरिक
बनने की तरफ आगे बढ़ रहे हैं और समानता लाना चाहते हैं। हमें ये समझना होगा
कि देश की जड़ें बहुत गहरी हैं और उसका आधार यही दो शब्द हैं.
उन्होंने
कहा कि आज संघ इन शब्दों को हटाने की मांग कर रहा लेकिन इस से पहले 2005
में संसद में एक प्राइवेट बिल लाया गया था और प्रस्तावना से ये शब्द हटाने
की मांग की गई थी। पूर्व में भी समय समय पर ऐसी मांग की जाती रही है। यह
आरएसएस और कारपोरेट लॉबी का पुराना एजेंडा है जिसका विरोध किया जाना चाहिए.
कांग्रेस
के राष्ट्रीय सचिव शाहनवाज़ आलम ने कहा कि आरएसएस शुरू से ही देश को
साम्प्रदायिक आधार पर बांटने और गौर बराबरी बनाए रखने की कोशिश करता रहा
है. सेक्युलर और समाजवादी शब्द इसीलिए उसे खटकता है. जो लोग भी बराबरी और
राज्य के धर्मनीरापेक्ष चरित्र के समर्थक होंगे वो भाजपा के इस साज़िश के
खिलाफ़ खड़े होंगे.
उन्होंने
कहा कि जो पार्टियां अंबेडकर के नाम पर सियासत कर रही हैं, जैसे मायावती,
रामदास आठवले, चिराग पासवान आदि सभी प्रस्तावना की बहस में खामोश हैं और
कोई भी संविधान की प्रस्तावना पर आवाज़ नहीं उठा रहा है, ये पार्टियां
अंबेडकर की वैचारिक वारिस होने का दावा तो करती हैं लेकिन कहीं भी अंबेकर
को डिफेंड नहीं कर पा रहीं हैं।
सुप्रीम
कोर्ट के अधिवक्ता शारिक़ अब्बासी ने कहा कि संविधान की मूल भावना यानि
प्रस्तावना से कुछ शब्दों को हटाना संविधान को कमज़ोर करने के समान है।
मानवी
वर्मा ने कहा कि हमें अंबेडकर के समाजवादी और सेक्युलर दृष्टिकोण को
अप्रासंगिक बनाने की भाजपा की साज़िश को नाकाम करते हुए अपनी बात निडरता से
और निरंतर कहना होगा।
कार्यक्रम
में बोलते हुए पत्रकार मसीहुज़्ज़मा अंसारी ने कहा कि यह संगोष्ठी ऐसे समय
में आयोजित हो रही है जब संविधान की आत्मा और लोकतांत्रिक मूल्यों को लेकर
गहन बहस और चिंता का माहौल है। यह मंच नागरिक समाज, युवाओं और विशेषज्ञों
को एक साथ लाकर भारत के संवैधानिक मूल्यों को बचाने के लिए प्रयास करेगा।
हम
भारत के लोग मंच के संस्थापक सदस्य अख़लाक़ अहमद ने कार्यक्रम के प्रारंभ
में मंच का परिचय कराया और इसके उद्देश्यों पर प्रकाश डाला।
कार्यक्रम
का संचालन डॉ खालिद मोहम्मद खान ने किया।इस संगोष्ठी में वरिष्ठ अधिवक्ता,
अनुभवी पत्रकार, संवैधानिक विशेषज्ञ और जागरूक नागरिकों ने भाग लिया। साथ
ही देशभर के छात्र, युवा नेता और विभिन्न छात्र संगठनों के प्रतिनिधि भी
अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
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