नयी दिल्ली, 6 जुलाई 2025. भाजपा बिहार की तय चुनावी हार
को चुनाव आयोग के दुरूपयोग से टालना चाहती है. लेकिन कांग्रेस बिहार के
गरीब, दलित, अल्पसंख्यकों और पिछड़े लोगों के मताधिकार को छीनने की कोशिश
सफल नहीं होने देगी.
ये बातें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के राष्ट्रीय सचिव शाहनवाज़ आलम ने साप्ताहिक स्पीक अप कार्यक्रम की 202 वीं कड़ी में कहीं.
शाहनवाज़
आलम ने कहा कि भाजपा सरकार चुनाव आयोग को अपने फ्रंटल संगठन की तरह
इस्तेमाल कर रही है. स्पेशल इंटेंसिव रिव्युव 20 प्रतिशत गरीबों से मतदान
का अधिकार छीनने की कोशिश है. इन लोगों में सबसे ज़्यादा दलित, मुसलमान,
पिछड़े और आदिवासी होंगे. जिन्हें पहले मताधिकार से वंचित किया जाएगा और
उसके बाद सरकारी योजनाओं और आरक्षण से भी वंचित किया जाएगा.
शाहनवाज़
आलम ने कहा कि चुनाव आयोग का यह तुगलकी फरमान सुप्रीम कोर्ट के 1995 के
लाल बाबू हुसैन बनाम इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर (इआरओ) में दिए गए फैसले
की अवमानना है जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के ऐसे ही दो आदेशों को
ख़ारिज कर दिया था. जिसमें चुनाव आयोग ने पहले आदेश में सभी जिलाधिकारियों
को पुलिस जांच के जरिए ये पता लगाने का अधिकार दिया था कि कोई व्यक्ति
विदेशी है या नहीं। दूसरे आदेश में इआरओ को विदेशी नागरिकों की पहचान कर
उनके नाम मतदाता सूची से हटाने का अधिकार दिया था.
1995
में सुप्रीम कोर्ट ने आयोग के दोनों आदेशों को रद्द करते हुए कहा था कि
आयोग के नियमों के हिसाब से नागरिकता साबित करने की जिम्मेदारी उस व्यक्ति
पर है, जबकि कई लोग पहले भी वोट डाल चुके थे। कोर्ट ने कहा था कि इसका मतलब
है कि आयोग ने पहले ही उनकी जांच कर ली थी, तभी उनके नाम मतदाता सूची में
शामिल किए गए थे।
कोर्ट ने
अपने फैसले में कहा था कि अगर ईआरओ को लगता है कि किसी ऐसे व्यक्ति का नाम
मतदाता सूची में है जिसकी नागरिकता संदिग्ध है, तो नोटिस जारी करने से
पहले उसे पिछली मतदाता सूची की जांच करनी चाहिए.
उन्होंने
कहा कि सुप्रीम कोर्ट के तर्क इस मामले में आज भी प्रासंगिक हैं क्योंकि
लोगों ने साल भर पहले ही लोकसभा चुनाव में इसी मतदाता सूची से वोट डाला था.
शाहनवाज़
आलम ने कहा कि यह आश्चर्य की बात है कि सरकार के दबाव में चुनाव आयोग
सुप्रीम कोर्ट की अवमानना कर रहा है. इस पर सुप्रीम कोर्ट को स्वतः संज्ञान
लेते हुए कार्यवाई करनी चाहिए.
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