सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले मुस्लिम विरोधी हिंसक तत्वों का मनोबल बढ़ाने वाले हैं- शाहनवाज़ आलम

 


नयी दिल्ली, 9 मार्च 2025. न्यायालयों द्वारा पिछले कुछ दिनों से दिए गए विवादित फैसलों से यह संदेश जा रहा है कि मई में आने वाले सुप्रीम कोर्ट के नए मुख्य न्यायाधीश पर आरएसएस और भाजपा अपने सांप्रदायिक एजेंडे के पक्ष में दबाव डालने की रणनीति पर काम कर रहे हैं. सेकुलर सियासी दलों और नागरिक समाज को इन मुद्दों पर मुखर होने की ज़रूरत है.

ये बातें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सचिव शाहनवाज़ आलम ने साप्ताहिक स्पीक अप कार्यक्रम की 185 वीं कड़ी में कहीं.

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के जज का किसी को मियां तियाँ और पाकिस्तानी कहने को अपराध नहीं मानना साबित करता है कि सुप्रीम कोर्ट के कुछ जज मुस्लिम विरोधी हिंसा में हिंसक तत्वों द्वारा प्रतुक्त होने वाली इन टिप्पणियों को एक तरह से वैधता देने की कोशिश कर रहे हैं. इस फैसले के बाद ऐसे तत्वों का न सिर्फ़ मनोबल बढ़ेगा बल्कि वो इसे एक ढाल की तरह इस्तेमाल करेंगे और पुलिस में शिकायत दर्ज कराने जाने वाले पीड़ित मुस्लिमों का मुकदमा भी पुलिस नहीं लिखेगी.

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि इससे पहले भी मस्जिद के अंदर जबरन घुसकर जय श्री राम के नारे लगाने को भी अपराध मानने से इनकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सांप्रदायिक अपराधियों का मनोबल बढ़ाने वाला फैसला दिया था. फैसला देने वाले जजों में एक पंकज मित्तल भी थे जिन्होंने जम्मू कश्मीर के मुख्य न्यायाधीश रहते हुए सार्वजनिक तौर पर कहा था कि संविधान की प्रस्तावना में सेकुलर शब्द का होना कलंक है. 

इसके अलावा एक और मामले में सुप्रीम कोर्ट के जज हेमंत गुप्ता ने फैसला दिया था कि चार दिवारी के अंदर किसी दलित को जाति सूचक गाली देना दलित उत्पीड़न निवारण क़ानून के तहत अपराध नहीं है. यह फैसला भी दलित विरोधी सामंती तत्वों का मनोबल बढ़ाने वाला था. यह भी संज्ञान में रखा जाना चाहिए कि रिटायर होने के बाद हेमंत गुप्ता विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रमों में लगातार जाते हैं. 

उन्होंने कहा कि इन दोनों उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि न्यायपालिका का एक हिस्सा अब खुलकर राज्य सरकार प्रायोजित सांप्रदायिक और सामंती तत्वों के अपराध को वैधता देने के काम में लगा है. 

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि ऐसा लगता है कि मौजूदा मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की सख़्ती के कारण न्यायपालिका के अंदर के जो सांप्रदायिक तत्व शिथिल पड़ गए थे वो मई में आने वाले नए मुख्य न्यायाधीश पर दबाव बनाने के लिए फिर से सक्रिय हो गए हैं. अगर ऐसा नहीं होता तो सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूजा स्थल अधिनियम को कमज़ोर करने के लिए दायर याचिकाओं पर सुनवाई और निर्देश देने पर लगाई गयी रोक के बावजूद निचली अदालतें इसपर सुनवाई क्यों करतीं. उन्होंने कहा कि देश के संविधान को कमज़ोर करने का असली खेल आरएसएस और भाजपा न्यायपालिका के अंदर के अपने स्लीपर सेल के माध्यम से खेल रहे हैं. जिसपर जनता को कड़ी नज़र रखने की ज़रूरत है.

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