नयी दिल्ली, 30 अप्रैल 2025. अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी
के सचिव शाहनवाज़ आलम ने एनसीईआरटी की इतिहास की किताब से मुगलों के
संदर्भो को हटाने को आरएसएस की देश विरोधी कुंठित मानसिकता का ताज़ा उदाहरण
बताया है।
शाहनवाज़ आलम
ने जारी बयान में कहा कि मुगलों का इतिहास छात्रों को समावेशी बनाता है
क्योंकि उन्हें यह पता चलता है कि अकबर के 9 रत्नों में कई हिंदू विद्वान
भी थे। उन्हें यह भी जानने को मिलता है कि औरंगजेब के शासन में 30 प्रतिशत
अहम ओहदों पर हिंदू राजा थे. उन्हें 1604-05 में अकबर के शासन के 50 साल
पूरे होने पर राम और सीता की तस्वीर वाले सिक्के की फोटो भी दिखती थी जिसपर
'राम राज' लिखा हुआ था. उन्हें यह भी जानकारी मिलती थी कि मुगलों के
शासनकाल में दुनिया के कुल जीडीपी का 25 प्रतिशत भारत का होता था. ये सब
पढ़ कर छात्रों के मन में आरएसएस के मुस्लिम विरोधी नैरेटिव पर सवाल उठते
हैं. इसीलिए मुगलों का इतिहास पाठ्यक्रम से हटाया गया है.
शाहनवाज़
आलम ने कहा है कि मुगलों ने दलितों को पढ़ने का अधिकार दिया था और मदरसा
जैसे सर्व शिक्षा के केंद्र स्थापित किए थे जहाँ दलितों को भी पढ़ने का
अधिकार मिला जिनके लिए उससे पहले शिक्षा वर्जित थी. मुगलकाल में पढ़ने का
अधिकार पाए दलितों की तीसरी-चौथी पीढी से ही ज्योतिबा फुले और अम्बेडकर
जैसे दलित चिंतक पैदा हुए. इनमें से फुले ने मनुवाद के खिलाफ़ 'गुलामगिरी'
जैसी किताब लिखी और अम्बेडकर जी ने मनुस्मृति का दहन किया.
उन्होंने
कहा कि यह आश्चर्य की बात नहीं है कि एक तरफ मुगलों का इतिहास किताबों से
हटाया जा रहा है तो उसके साथ ही फुले पर केंद्रित फिल्म का विरोध भी भाजपा
कर रही है और उसके समर्थक देश भर में अंबेडकर जी की प्ररिमाओं को तोड़ रहे
हैं।
शाहनवाज आलम ने कहा
कि कम पढ़े-लिखे और फर्जी डिग्री वाले शासक पढ़े-लिखे लोगों को दुश्मन मानते
हैं। मोदी जी को लगता है कि इतिहास की सही जानकारी वाले छात्र कांग्रेसी हो
जाएंगे, इसलिए गलत इतिहास पढ़ाने की साजिश रची जा रही है।
उन्होंने
कहा कि मुगल बादशाह अकबर महान के कोर्ट का दृश्य तो संविधान के शुरुआती
हिस्से के खंड 14 में भारत की विविधता भरे गौरवशाली इतिहास को रेखांकित
करने के लिए इस्तेमाल किया गया है। इसलिए पाठ्यक्रम से मुगलों के संदर्भ को
हटाना संविधान की भावना पर भी हमला है।
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