लखनऊ 15 अप्रैल। - मौलाना आज़ाद मेमोरियल
अकादमी एवं राजकीय तकमिलुतिब चिकित्सा महाविद्यालय द्वारा भारत के निर्माता
भारत रत्न बाबा साहब डॉ भीमराव अंबेडकर की 135वीं जयंती के अवसर पर
"सामाजिक न्याय: डॉ अंबेडकर" विषय पर दो दिवसीय परिचर्चा का आयोजन किया
गया। 13 अप्रैल की परिचर्चा के मुख्य अतिथि भारतीय वायु सेना के पूर्व
ग्रुप कैप्टन श्री दिनेश चंद्रा थे तथा 14 अप्रैल की परिचर्चा के मुख्य
अतिथि मौलाना आज़ाद मेमोरियल अकादमी के महासचिव डॉ अब्दुल कुदूस हाशमी थे।
इसके अलावा अंबेडकर विश्विद्यालय से प्रो रुद्र प्रसाद, साहू राजकीय
तकमिलुतिब चिकित्सा महाविद्यालय से प्रो सफिया लुखंडे, डॉ मनी राम, डॉ
मलिक, समाजसेवी सुश्री इंदु प्रसाद, अशफाक अहमद मुहम्मद जमा आदि ने इस विषय
पर विद्वत्तापूर्ण चर्चा की।
चर्चा की शुरुआत करते
हुए डॉ अब्दुल कुद्दूस हाशमी ने बाबा साहब भीमराव अंबेडकर को श्रद्धांजलि
अर्पित करते हुए कहा कि डॉ अंबेडकर दूरगामी व्यक्तित्व के मालिक थे,
उन्होंने कहा कि देश के पिछड़े वर्गों का विकास तब तक संभव नहीं है जब तक
उन्हें बुनियादी शिक्षा नहीं मिलेगी। उनका मानना था कि शिक्षा ही विकास
की मुख्य कुंजी है, किसी भी राष्ट्र का सामाजिक और आर्थिक विकास शिक्षा के
बिना संभव नहीं है। विकास के सभी दरवाजे इसी रास्ते से होकर गुजरते हैं।
अम्बेडकर का आर्थिक विकास का मूल दर्शन समाज के हर वर्ग के विकास पर आधारित
था न कि कुछ लोगों के विकास पर आधारित समाज के आधार पर। . स्वास्थ्य,
शिक्षा. और असमानता पर ध्यान देना होगा।
ग्रुप
कैप्टन दिनेश चंद्र ने कहा कि बाबा साहब ने हमें सदैव आत्मनिर्णय का पाठ
पढ़ाया। उन्होंने कहा कि हमें रोटी, कपड़ा और मकान के साथ-साथ समान अधिकार
और आर्थिक विकास पर भी जोर देना होगा।
प्रोफेसर
रुद्र प्रसाद साहू ने कहा कि आज देश में भ्रष्टाचार एक बड़ी समस्या है।
हम कैसा समाज बनाना चाहते हैं, भ्रष्ट या सृजनशील, यानि रचनात्मक, सामाजिक
न्याय और समानता तभी संभव है जब हम भ्रष्ट और रचनात्मक के बीच का अंतर
समझने लगेंगे। जब हम वर्तमान स्थिति की बात करते हैं तो हमें भविष्य की भी
बात करनी होगी जहां आज से पहले समानता की कोई अवधारणा नहीं थी, जहां अमीर
और गरीब दो वर्ग हुआ करते थे, जहां एक वर्ग को जानवर से भी बदतर माना जाता
था। उन्होंने कहा कि विजन और मिशन के बिना समाज और देश का विकास संभव नहीं
है।
प्रो. सफिया लू खांडे ने सामाजिक न्याय के लिए
अंबेडकर के संस्कारों और महिलाओं के अधिकारों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि
हिंदू कोड बिल के विरोध के कारण उन्होंने अपना मंत्रालय छोड़ दिया था। आज
महिलाओं के सुधार के लिए जो भी प्रयास किए जा रहे हैं, वे उनके द्वारा बनाए
गए कानूनों पर आधारित हैं। आज महिलाओं के लिए मातृत्व अवकाश की सुविधा,
श्रमिकों के अधिकार और बच्चों के अधिकार और समानता का अधिकार उनकी देन
है।
डॉ. मणि राम ने कहा कि सामाजिक न्याय और समानता
तभी संभव है जब हम अपने विकास के आधार के रूप में शिक्षा को प्राथमिकता
देंगे। परिवार और पड़ोस के विकास के साथ-साथ देश में रहने वाले 80% गरीब
लोगों को लोकतांत्रिक अधिकारों के साथ रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा,
स्वास्थ्य और रोजगार के समान अवसर मिलने चाहिए। तभी हम डॉ. अंबेडकर के
सपनों को साकार कर सकेंगे।
सामाजिक कार्यकर्ता इंदु
ने कहा कि हमें बाबा साहब की सभी शिक्षाओं और न्याय को अपने घर से शुरू
करके स्थानीय और ग्राम स्तर पर लागू करना होगा। इन वार्ताओं का लाभ तभी
होगा जब सामाजिक विकास के लिए छोटे-छोटे व्यावहारिक निर्णय लिए जाएंगे। इस
अवसर पर डॉ. अब्दुल कुदुस हाशमी ने कहा कि इन दो दिवसीय वार्ताओं का लाभ
उठाते हुए अकादमी आठवीं से बारहवीं कक्षा तक के विद्यार्थियों को मौलाना
आजाद लाइब्रेरी में पठन-पाठन की सुविधा देकर समान शैक्षणिक सुविधाएं प्रदान
करेगी तथा समय-समय पर व्याख्यान, चर्चा और प्रतियोगी कार्यक्रमों के
माध्यम से उनके रचनात्मक प्रदर्शन में सुधार लाएगी। उनकी क्षमताओं को भी
जागृत किया जा सकता है। दो दिवसीय वार्ता में छात्रों एवं छात्राओं के
अलावा बड़ी संख्या में गणमान्य व्यक्तियों ने भाग लिया। अंत में डॉ. मलिक
ने धन्यवाद दिया।
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