संवैधानिक मूल्यों के विपरीत विचार रखने वाले सुप्रीम कोर्ट के जज पंकज मित्तल पर कार्यवाई करें मुख्य न्यायाधीश- शाहनवाज़ आलम
18 अप्रैल 2028. अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सचिव
शाहनवाज़ आलम ने सुप्रीम के जज पंकज मित्तल द्वारा क़ानून के पाठ्यक्रमों
में वेदों और मनुस्मृति को पढाये जाने की मांग की निंदा करते हुए इसे
समतामूलक आधुनिक संविधान को पलटने और बाबा साहब डॉ भीमराव आंबेडकर के सपनों
पर हमला बताया है. पंकज मित्तल ने ये मांग पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट के
75 साल पूरे होने पर भोपाल स्थित नेशनल लॉ इंस्टीट्यूट यूनिवर्सिटी
(एनएलआईयू) में आयोजित सेमिनार में कही थी.
शाहनवाज़
आलम ने कहा कि पंकज मित्तल का अपने भाषण में यह कहना कि इन पुस्तकों में
न्याय, समानता, दंड और नैतिक कर्तव्य के संदेश हैं, उनकी अज्ञानता और
वैचारिक दिवालियेपन को दर्शाता है. उन्होंने कहा कि कोई भी व्यक्ति यह कैसे
भूल सकता है कि हमारा संविधान गौतम बुद्ध से लेकर, ज्योतिबा फुले और डॉ
अंबेडकर तक के मनुवाद विरोधी संघर्ष का नतीजा है. यहां तक कि डॉ अंबेडकर को
25 दिसम्बर 1927 को मनुस्मृति का दहन भी करना पड़ा था.
शाहनवाज़
आलम ने कहा कि पंकज मित्तल वही जज हैं जिन्होंने 2021 में जम्मू कश्मीर के
मुख्य न्यायाधीश रहते हुए सार्वजनिक तौर पर कहा था कि संविधान की
प्रस्तावना में सेकुलर शब्द का होना कलंक है और उसे हटा देना चाहिए.
उन्होंने कहा कि पंकज मित्तल की इस संविधान विरोधी टिप्पणी के बाद उन्हें
पद से हटाने के बजाए सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त कर दिया गया.
उन्होंने
कहा कि इसी तरह पंकज मित्तल उन जजों में भी शामिल थे जिन्होंने दलित
आरक्षण के वर्गीकरण और इसकी ज़िम्मेदारी राज्यों को देने का समर्थन किया
था. जबकि बाबा साहब अंबेडकर ने बहुत प्रयासों से दलितों के आरक्षण को
केंद्र का विषय बनाया था.
शाहनवाज़
आलम ने कहा कि साम्प्रदायिक और असमानता के संघी विचारों से प्रभावित
न्यायपालिका के एक हिस्से की वजह से पूरी न्यायिक व्यस्था पर प्रश्नचिन्ह
लगना लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है. इसलिए सुप्रीम कोर्ट को पंकज मित्तल के
खिलाफ़ विभागीय कार्यवाई करनी चाहिए.
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