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सुप्रीम कोर्ट का अपनी अवमानना पर चुप रहना आश्चर्यजनक - शाहनवाज़ आलम

 


नई दिल्ली, 30 मार्च 2025. सुप्रीम कोर्ट द्वारा मकानों के ध्वस्तिकरण पर रोक के बावजूद भाजपा शासित राज्यों में प्रशासन अवैध तरीके से लोगों के घरों को तोड़ रहा है. आश्चर्य की बात है कि सुप्रीम कोर्ट अपनी ही अवमानना पर स्वतः संज्ञान नहीं ले रहा. जिसका सीधा मतलब है कि न्यायपालिका का एक हिस्सा सरकार और कार्यपालिका के साथ मिलकर आरएसएस के एजेंडे पर काम कर रहा है. ये बातें कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव शाहनवाज़ आलम ने साप्ताहिक स्पीक अप कार्यक्रम की 188 वीं कड़ी में कहीं.

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 14 सितम्बर 2024 को देश भर में सरकारों द्वारा बुल्डोज़र से मकान तोड़े जाने पर रोक लगाते हुए ऐसा करने वाली राज्य सरकारों के खिलाफ़ सख़्त टिप्पणी की थी. लेकिन बावजूद इसके भाजपा शासित राज्यों की सरकारें सुप्रीम कोर्ट की अवमानना करते हुए विरोधी वोटरों और वैचारिक विरोधियों के घरों को अवैध तरीके से तोड़ रही हैं. लेकिन सुप्रीम कोर्ट अपने ही आदेश की अवमाननाओं पर स्वतः संज्ञान नहीं ले रहा है. इसी तरह सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 12 दिसंबर को पूजा स्थल अधिनियम से संबंधित किसी भी मामले में सुनवाई पर रोक लगाई थी. लेकिन कुछ दिनों की शांति के बाद फिर से निचली अदालतें इन मामलों में टिप्पणीयां करने लगी हैं. इन मामलों में भी आश्चर्यजनक तरीके से सुप्रीम कोर्ट अपनी अवमानना पर संज्ञान नहीं ले रहा है. उसने केंद्र सरकार को 12 दिसंबर को ही पूजा स्थल अधिनियम पर एक महीने के अंदर अपना पक्ष रखने का नोटिस दिया था. लेकिन ढ़ाई महीने बीत जाने के बाद भी सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार पर नोटिस का जवाब नहीं देने पर कोई कार्यवाई नहीं की. जिससे यह संदेश जा रहा है कि न्यायपालिका का एक हिस्सा सरकार के खिलाफ़ कोई सख़्त कार्यवाई करने के बजाए सिर्फ़ दिखावे के लिए टिप्पणी कर रहा है.

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि जो काम ख़ुद सरकार नहीं कर पा रही है उसे न्यायपालिका के एक हिस्से से करवा रही है. सब कुछ पहले से तय पटकथा के अनुसार नागरिकों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के नाम पर न्यायपालिका भी मौखिक टिप्पणी करके चुप बैठ जा रही है. उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति उत्पन्न की जा रही है कि विधायीका और कार्यपालिका की तरह नागरिकों का न्यायपालिका पर से भी ख़ुद भरोसा उठ जाए ताकि आरएसएस देश पर अपनी तानाशाही थोप सके. उन्होंने कहा कि विपक्षी दलों और नागरिक समाज को न्यायपालिका की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए आवाज़ उठानी होगी.


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