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आप के पतन के बाद क्षेत्रीय दलों को सैद्धांतिक मुद्दों पर कंफ्यूजन की रणनीति छोड़नी पड़ेगी- शाहनवाज़ आलम

 



लखनऊ, 9 फरवरी 2025. दिल्ली में आम आदमी पार्टी की हार के बाद विचारहीन राजनीतिक दलों को सैद्धांतिक मुद्दों पर अपना स्टैंड क्लीयर करना होगा. अब उन्हें खुलकर गाँधी और गोडसे की वारिस पार्टियों के बीच अपना पक्ष चुनना होगा. इससे कांग्रेस के फिर से सत्ता में आने का रास्ता खुलेगा.

ये बातें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सचिव शाहनवाज़ आलम ने साप्ताहिक स्पीक अप कार्यक्रम की 181 वीं कड़ी में कहीं.

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि आम आदमी पार्टी आरएसएस द्वारा बनवाई गयी थी. जिसका मकसद कथित गैरराजनीतिक व्यक्तियों और संगठनों द्वारा कांग्रेस को बदनाम करवाना था. क्योंकि आरएसएस और भाजपा के पास ऐसा कोई चेहरा नहीं था जो खुद मनमोहन सिंह जी को चुनौती दे सके. उन्होंने कहा कि कांग्रेस विरोधियों का यह तीसरा प्रयोग था. पहला प्रयोग जय प्रकाश नारायण को दूसरा गाँधी के बतौर पेश करके 1974 में संघ और सोशलिस्ट धारा की पार्टियां कर चुकी थीं. उस समय सामंती वर्ग 1971 में राजाओं के प्रीवी पर्स खत्म करने, 1969 में बैंकों के राष्ट्रीयकरण और 1973 में खदानों के राष्ट्रीयकरण से नाराज़ था. इन वर्गों ने जेपी के चेहरे को आगे करके इंदिरा गाँधी सरकार के इन प्रगतिशील निर्णयों को बेअसर करने की कोशिश की थी.

वहीं दूसरा प्रयोग 1989 में वीपी सिंह को आगे करके संघ ने राजीव गाँधी सरकार को बदनाम करने के लिए किया. उस समय वीपी सिंह सभाओं में एक खाली फाइल लहराते हुए उसमे राजीव गाँधी के स्विस बैंक का एकाउंट नम्बर होने का दावा करते थे. लेकिन कभी भी उस फाइल को उन्होंने खोलकर कुछ नहीं दिखाया था. उनका मकसद राजीव गाँधी की सरकार को बोफोर्स भ्रष्टाचार में उलझाकर धार्मिक और जातिगत अस्मिता को राजनीति का केंद्रीय मुद्दा बना देना था. इसी सरकार में आडवाणी ने बाबरी मस्जिद को तोड़ने के लिए सोमनाथ से यात्रा निकाली थी. जिसके बाद कांग्रेस कमज़ोर हुई और भाजपा की लोकसभा में सीटें 2 से बढ़ कर 85 हो गयीं. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि बोफोर्स तोप खरीद में कोई घोटाला ही नहीं हुआ था.

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि नागरिकों को अधिकार संपन्न बनाने, कमज़ोर तबकों को शिक्षा, भोजन और काम का अधिकार देने के कारण मनमोहन सिंह सरकार सामाजिक परिवर्तन की तरफ बढ़ रही थी. जिसे रोकने के लिए कैग से भ्रष्टाचार के फर्जी आरोप लगवाए गए. अन्ना हज़ारे को आगे करके एनजीओ, उद्योगपतियों, बाबाओं, रिटायर्ड पुलिस अधिकारीयों, गायकों, जुमलेबाजों को आगे करके संघ ने मनमोहन सिंह सरकार को बदनाम किया और मोदी के सत्ता में आने का रास्ता तैयार किया.

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि केजरीवाल ने दिल्ली में एक ऐसा वोट बैंक तैयार किया जो लोकसभा चुनाव में भाजपा को वोट करता था और विधानसभा चुनाव में आप को वोट करता था. उत्तर प्रदेश में भी एक विपक्षी पार्टी के वोटर 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के साथ थे जबकि 2017 में अपनी पार्टी के साथ थे. समर्थकों की इसी चारित्रिक समानता के कारण इस क्षेत्रीय दल के नेता इसबार भी केजरीवाल का समर्थन करने दिल्ली तक गए थे. केजरीवाल घोषित तौर पर आरक्षण और जातिगत जनगणना के विरोधी रहे हैं जबकि उनके समर्थन में खड़ी पार्टी आरक्षण समर्थक होने का दावा करती रही है. यानी वो सिर्फ़ इसलिए दिल्ली में केजरिवाल के साथ थी कि कांग्रेस को किसी भी तरह उभरने से रोक सके. 

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि अब आम आदमी पार्टी के पतन के बाद सपा, बसपा, आरजेडी, तृणमूल कांग्रेस, एनसीपी को यूनिफॉर्म सिविल कोड, वक़्फ़, पूजा स्थल अधिनियम जैसे
सैद्धांतिक मुद्दों पर अपना स्टैंड रखना होगा.

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