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जस्टिस डीके उपाध्याय की टिप्पणी मोदी सरकार की तानाशाही प्रवित्ति को उजागर करती है- शाहनवाज़ आलम

 


नयी दिल्ली, 23 फरवरी 2025. दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी के उपाध्याय की यह टिप्पणी कि किसी देश में संविधान का होना और वहां संविधान पर अमल किया जाना दोनों अलग स्थितियां हैं, देश के बिगड़ते हुए मौजूदा हालात पर महत्वपूर्ण टिप्पणी है. इस स्थिति को बदलने के लिए राजनीतिक दलों और जनता को संघर्ष करना होगा.

ये बातें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सचिव और बिहार सह प्रभारी शाहनवाज़ आलम ने साप्ताहिक स्पीक अप कार्यक्रम की 183 वीं कड़ी में कहीं.

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश का अपनी टिप्पणी में हिटलर का उदाहरण देते हुए यह कहना कि वो भी चुनावी व्यवस्था से जीत कर आया था और जर्मनी में भी संविधान था लेकिन हिटलर संविधान को कमज़ोर करके तानाशाह बन गया आज के मोदी सरकार को आईना दिखाने जैसा है. जस्टिस डीके उपाध्याय ने यह भी टिप्पणी की है कि हिटलर ने संविधान में अपने हितों के लिए संशोधन करके विपक्षी दलों को कमज़ोर किया था. शाहनवाज़ आलम ने कहा कि ठीक ऐसा ही मोदी सरकार ने कांग्रेस पार्टी के नेताओं को फंसा कर और चुनाव से पहले उसके खाते को सीज़ करके किया था. 

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि न्यापालिका, कार्यपालिका और विधायिका के बीच शक्तियों के प्रीथक्कीकरण के सिद्धांत के कमज़ोर होने से तानाशाही के खतरे पर भी जस्टिस डीके उपाध्याय की चिंता मोदी सरकार की कार्यशैली की तरफ ही संकेत करती है. शाहनवाज़ आलम ने कहा कि प्रस्तावित वक़्फ़ संशोधन बिल इसका उदाहरण है जिसमें जिला अधिकारी को वक़्फ़ के विवाद पर फैसला देने का अधिकार दे दिया गया है. जबकि डीएम कार्यपालिका का हिस्सा होता है उसे फैसला सुनाने का अधिकार नहीं है.

शाहनवाज़ आलम ने उमर खालिद, शर्जिल इमाम का उदाहरण देते हुए कहा कि ये दोनों युवा बिना आरोप तय हुए ही साढ़े चार साल से जेल में बन्द हैं. जबकि सुप्रीम कोर्ट कई बार कह चुका है कि बेल नियम और जेल अपवाद है. लेकिन इस नियम के बावजूद इन दोनों युवाओं को इसलिए जमानत नहीं मिल रही है क्योंकि न्यायपालिका पर विधायिका का नियंत्रण मोदी सरकार में बढ़ा है. उन्होंने कहा कि न्यायपालिका को ख़ुद भी तानाशाही प्रवित्तियों पर लगाम लगाने के लिए हस्तक्षेप करना चाहिए.

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