उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी: कार्य बहिष्कार के पीछे की सच्चाई
लखनऊ : उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी के
कार्यों में हो रही अनियमितताओं का एक गंभीर मामला हाल ही में सामने आया
था। जिस प्रकरण ने न केवल अकादमी की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए बल्कि
यह भी स्पष्ट किया है कि अंदरूनी राजनीति और निजी स्वार्थी मंसूबे किस तरह
संस्थानों की छवि को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
सूत्रों
के अनुसार, यह मामला उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी के आउटसोर्स एजेंसी
कर्मचारी, मीडिया को-ऑर्डिनेटर आलोक श्रीवास्तव से जुड़ा हुआ है। सूत्रों
के अनुसार आलोक श्रीवास्तव ने अकादमी के विभिन्न कार्यक्रमों में अपने
परिवार के सदस्यों, जिनमें उनकी पत्नी माधवी निगम, भाई अनुराग श्रीवास्तव
और अन्य रिश्तेदार शामिल थे, के खातों में हर माह धनराशि स्थानांतरित
करवाई। जब ये गोरखधंधा वर्तमान अकादमी के सचिव शौकत अली के संज्ञान में आया
तब उन्होंने इस पर समय रहते रोक लगाई।
साजिश का पर्दाफाश : जानकारी
के अनुसार, मीडिया को-ऑर्डिनेटर आलोक श्रीवास्तव ने अपने प्रभाव का
इस्तेमाल करते हुए अकादमी के कार्यक्रमों से जुड़ी धनराशि को ग़लत तरीके से
अपनी पत्नी माधवी निगम (बैंक ऑफ़ इंडिया ब्रांच तिवारीगंज), भाई अनुराग
श्रीवास्तव (बैंक ऑफ़ बड़ौदा ब्रांच मुंशीपुलिया) और अन्य रिश्तेदार व
परिवारवालों के नाम पर आवंटित कराया। यह प्रक्रिया लंबे समय से चल रही थी,
लेकिन सचिव शौकत अली के संज्ञान में आने के बाद इसे तत्काल प्रभाव से रोक
दिया गया। इस कदम से आलोक श्रीवास्तव बौखला गए और उन्होंने सचिव के खिलाफ
अभियान छेड़ दिया।
कार्य बहिष्कार की साजिश : सचिव
द्वारा मामले पर कार्रवाई के बाद, आलोक श्रीवास्तव ने अकादमी के अन्य
कर्मचारियों को अपने पक्ष में लाने की कोशिश की। उन्होंने कर्मचारियों को
भड़काकर एक फोटो खिंचवाई और इसे कार्य बहिष्कार धरने का रूप दे दिया ताकि
अकादमी के सचिव की छवि को धूमिल किया जा सके।
आलोक
श्रीवास्तव ने अपने निजी स्वार्थ के लिए न केवल संस्थान का दुरुपयोग किया,
बल्कि अन्य कर्मचारियों को भी अपने साथ जोड़कर एक झूठा नरेटिव गढ़ा।
कार्यक्रमों की गुणवत्ता में सुधार : आलोचनाओं
और विवादों के बीच, अकादमी के सचिव शौकत अली ने अपने काम को जारी रखा और
अकादमी के कार्यक्रमों में सुधार के लिए नए कदम उठाए। उन्होंने विशेषज्ञों
की मदद से कार्यक्रमों का आयोजन शुरू किया, जिससे उनकी गुणवत्ता में
उल्लेखनीय सुधार हुआ है।
सचिव का बयान : इस
मामले में अकादमी के सचिव शौकत अली का कहना है कि "जो भी विभागीय कार्रवाई
होगी, वह नियमानुसार की जाएगी। फिलहाल पूरे मामले में और भी पहलुओं को
ध्यान में रखते हुए गहनता से जाँच की जा रही है ।
सचिव का यह रुख संस्थान में अनुशासन और नियमों को प्राथमिकता देने की ओर अग्रसर है।
आउटसोर्स सिस्टम पर सवाल : इस
पूरे प्रकरण ने आउटसोर्स सिस्टम पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। अक्सर सरकारी
और अर्ध-सरकारी संस्थानों में आउटसोर्स कर्मचारी भर्ती किए जाते हैं,
लेकिन कई बार इनकी निगरानी में ढिलाई बरती जाती है। इससे न केवल संस्थानों
की साख पर असर पड़ता है, बल्कि कार्यों की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है।
विशेषज्ञों
का मानना है कि ऐसे मामलों से निपटने के लिए सख्त निगरानी तंत्र और
जवाबदेही सुनिश्चित करना आवश्यक है। सचिव द्वारा उठाए गए कदम इस दिशा में
सराहनीय माने जा सकते हैं, लेकिन यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि इस विवाद के
समाधान के लिए आगे क्या कार्रवाई होती है।
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