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साप्रदायिक टिप्पणी करने वाले बरेली के अपर जिला जज रवि दिवाकर का पद पर बने रहना चिंता का विषय- शाहनवाज़ आलम

 


लखनऊ, 6 अक्टूबर 2024. बरेली के अपर ज़िला जज रवि कुमार दिवाकर लगातार अपनी टिप्पणीयों में आरएसएस की भाषा बोल रहे हैं. उनके इस आचरण से न्यायपालिका की छवि धूमिल हो रही है और ऐसा संदेश जा रहा है कि जजों का एक हिस्सा सीधे सरकार के सांप्रदायिक एजेंडे पर काम कर रहा है. ऐसे जज का अपने ओहदे पर बने रहना चिंता का विषय है. ये बातें कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव शाहनवाज़ आलम ने साप्ताहिक स्पीक अप कार्यक्रम की 163 वीं कड़ी में कहीं. 

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि विगत 30 सितंबर को बरेली के अपर ज़िला जज रवि कुमार दिवाकर ने मुस्लिम युवक और हिंदू युवती की शादी के मामले में फैसला देते हुए इसे 'लव जिहाद' का मामला बताया था. जबकि लड़की ने अपने बयान में स्पष्ट तौर पर कहा था कि उसने आलिम नाम के युवक पर प्रेम में बहलाकर बलात्कार करने का आरोप अपने परिजनों और हिंदुत्ववादी संगठनों के दबाव में लगाया था क्योंकि ये लोग युवती के मुस्लिम व्यक्ति से शादी करने के खिलाफ़ थे. जिसपर जज रवि कुमार दिवाकर ने लड़की के बयान को खारिज़ करते हुए कहा कि लड़की मुस्लिम युवक के प्रभाव में ऐसा बोल रही है. 

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि जब लड़की ख़ुद बयान देकर कह रही है कि उसने दबाव में तहरीर दिया था तो फिर स्थापित विधिक व्यवस्था के अनुसार उसके बयान को ही कानूनन सही माना जाना चाहिए. लेकिन जज ने इस स्थापित न्यायिक सिद्धांत के खिलाफ़ जाते हुए अपनी व्यक्तिगत कुंठा और विचार का प्रदर्शन किया जो उन्हें जज के पद पर बने रहने के लिए अयोग्य साबित करता है. 

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि उक्त मामले में मोहम्मद आलिम और उसके पिता के खिलाफ दर्ज एफआईआर में गैरकानूनी धर्मांतरण के आरोप शामिल नहीं थे लेकिन जज ने यह कहते हुए कि यह "लव जिहाद के माध्यम से गैरकानूनी धर्मांतरण का मामला" है पुलिस पर धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत आरोप नहीं लगाने के लिए पुलिस की आलोचना की। जिससे यह साबित होता है कि वो पुलिस की जांच को अपने राजनीतिक विचार के अनुरूप प्रभावित करने की कोशिश करते हैं. यह जज के बजाए ख़ुद उनके मुकदमे में एक पार्टी बनने के समान है जो जज के स्थापित मानक और आचरण के विपरीत है.

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि इस मामले में जज ने आरोपी पर 'लव जिहाद' के अपराध के तहत भी मुकदमा दर्ज करने का आदेश दिया. जबकि 2021 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा धर्मांतरण पर बनाये गए कानून में कहीं पर भी 'लव जिहाद' शब्द का इस्तेमाल ही नहीं हुआ है. उन्होंने कहा कि जब कानून में कोई शब्द है ही नहीं तो उसे कोई जज अपने फैसले में इस्तेमाल कैसे कर सकता है.

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि रवि कुमार दिवाकर इससे पहले भी एक फैसले में मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ को दार्शनिक राजा बताने के साथ ही सांप्रदायिकता को विपक्षी पार्टियों द्वारा मुस्लिम समाज के तुष्टिकरण का परिणाम बता चुके हैं. जिसपर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उनकी आलोचना करते हुए फैसले से उक्त टिप्पणियों को हटाने का आदेश दिया था. उन्होंने कहा कि बार-बार सांप्रदायिक टिप्पणी करने के बाद भी उनका पद पर बने रहना साबित करता है कि उन्हें हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट से किसी भी कार्यवाई का डर नहीं है. उन्हें शायद लगता है कि जब मुख्य न्यायाधीश ख़ुद प्रधानमंत्री के साथ निजी कार्यक्रमों में मिलते हैं और अपने फैसलों में आरएसएस के एजेंडों को बढ़ाते हैं तब उनपर भी ऐसी टिप्पणियों के बावजूद कोई कार्यवाई नहीं होगी. 


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