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राजस्थान मे वर्चस्व को लेकर जाट लीडरशिप के आपसी टकराव के चलते इंडिया गठबंधन के दल अलग अलग उपचुनाव लड़ेंगे।

 



।अशफाक कायमखानी।

जयपुर।
             हालांकि 1989 मे चोधरी देवीलाल के राष्ट्रीय स्तर पर उदय होने से लेकर उसके थोड़े दिन बाद एचडी देवेगौडा के प्रधानमंत्री काल तक जाट लीडरशिप देश भर मे काफी मजबूत थी। लेकिन उसके बाद धीरे धीरे राष्ट्रीय स्तर से लेकर प्रदेश स्तर तक जाट लीडरशिप कमजोर से कमजोर होती जा रही है। जिनमे पार्टियों के उच्च लीडरशिप के साथ साथ जाट लीडरशिप के वर्चस्व के चलते आपसी टकराव प्रमुख माना जा रहा है। आपसी टकराव के चलते हरियाणा मे जाट मुख्यमंत्री बनने के दस बारह साल से लाले पड़े है। जबकि राजस्थान मे अभी तक जाट मुख्यमंत्री बन ही नही पाया है। उत्तर प्रदेश मे जाट मुख्यमंत्री बनने की उम्मीदें क्षीण हो चली है।
            राजस्थान मे आम विधानसभा चुनाव-23 मे कांग्रेस के अनेक नेता छोटे छोटे दलो से समझोता करके चुनाव लड़ना चाहते थे। कुछ बडे नेताओं की जीद्द व अहंकार के चलते समझोता नही हो पाया था। जिसके परिणाम मे आती सरकार चली गयी। फिर लोकसभा-24 मे केन्द्रीय नेताओं ने इण्डिया गठबंधन बनाकर चुनाव लड़ा तो राजस्थान मे पच्चीस मे से ग्यारह सीट गठबंधन जीत गया।
          कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद डोटासरा व रालोपा अध्यक्ष हनुमान बेनीवाल मे बडा जाट नेता बनने को लेकर वर्चस्व की लड़ाई खुलकर सामने आ चुकी है। जिनमे हनुमान बेनीवाल ही रालोपा है। लेकिन डोटासरा ही कांग्रेस नही बन सकते। बेनीवाल ने अपनी पार्टी बनाकर राज्य भर मे ताकत दिखाई है। लोकसभा चुनाव मे हरीश चोधरी व डोटासरा की कोशिशों से हनुमान बेनीवाल के दायें हाथ उम्मेदा राम को तोड़कर बाडमेर से कांग्रेस टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़वा ओर वो जीत कर सांसद बन गये। अब विधानसभा उपचुनाव मे बताते है कि पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत गठबंधन के पक्ष मे थे। लेकिन डोटासरा गठबंधन ना करके सभी सातो जगह चुनाव लड़ने पर अड़े हुये थे। 21-अक्टूबर को कांग्रेस कोर ग्रूप की गठबंधन को लेकर बैठक हुई। जिसमे बताते है कि दिग्विजय सिंह दिल्ली से गठबंधन के पक्ष मे आये। पर डोटासरा के अड़ने से गठबंधन नही हो सका। 
                 कुल मिलाकर यह है कि बेनीवाल व डोटासरा के जाट लीडरशिप को लेकर वर्चस्व की जारी जंग मे उपचुनाव मे कांग्रेस व रालोपा को नुकसान उठाना पड़ सकता है। जबकि भाजपा को फायदा होगा। झूंझुनू व देवली-उनियारा सीट पर कांग्रेस को मुश्किल व खींवसर मे रालोपा को दिक्कत होगी। जाट नेताओं मे लीडरशिप को लेकर जारी संघर्ष मे खरबूजा व चाकू वाली कहावत सिद्ध होती नजर आयेंगी।

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