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राजस्थान के विधानसभा उपचुनावों मे इंडिया गठबंधन टूटने का असर पंचायत-स्थानीय निकाय व कोपरेटिव सेक्टर के चुनावो पर भी पड़ सकता है!

 




 ।अशफाक कायमखानी।

जयपुर।
            हालांकि विपत्ति व अनुकूलता के चलते राजनीतिक दल कब गठबंधन करके या तोड़कर चुनाव लड़ने लग जाये यह ऐन वक्त की वास्तविकता पर निर्भर करता है। लेकिन हाल ही हुयै लोकसभा चुनावों मे गठबंधन करके चुनाव लड़ने पर एक दुसरे घटक दलो की मदद से इंडिया गठबंधन को प्रदेश के कुल पच्चीस लोकसभा सीटो मे से ग्यारह सीटो पर जीत मिली। 
       लोकसभा चुनाव मे गठबंधन से इंडिया गठबंधन को मिली सफलता के थोड़े दिन बाद प्रदेश मे हो रहे सात विधानसभा उपचुनावों मे गठबंधन टूटकर घटक दलो के अलग अलग एक दुसरे के सामने चुनाव लड़ने से एकता को ठेस पहुंचने से दलो के कार्यकर्ता अचम्भित है।इसका फायदा सीधै तौर पर भाजपा को मिलेगा।
                 अगर सरकार प्रस्तावित पंचायत व स्थानीय निकाय चुनाव समय पर करवाती है तो इस साल के अंत व अगले साल मे चुनाव हो सकते हैः। लेकिन मिल रहे संकेतो के साथ सरकार एक चुनाव एक प्रांत के तहत अगले साल आखिर मे एक साथ चुनाव निश्चित करवायेगी। जिसमे घटक दलो मे समझोता होना अब उपचुनावों की तरह सम्भव नजर नही आता।
             इंडिया गठबंधन के बाप-रालोपा व माकपा के राज्य मे एक एक सांसद है। जिनकी पार्टियों का राज्य के अलग अलग हिस्सों मे मजबूर प्रभाव है। जो उन क्षेत्रो मे कांग्रेस का खेल बना व बिगाड़ सकने मे सक्षम है। इनमे से बाप व रालोपा विधानसभा उप चुनाव लड़ रहे है। जबकि माकपा गावं-तहसील व जिला कमेटियों के चुनाव करके नये तरीकें से संगठन गठित करने मे लगी हुई है। राजस्थान के आदिवासी क्षेत्र मे बाप व मारवाड़-बीकाणा मे रालोपा के अलावा शेखावाटी-बीकाणा मे माकपा का अच्छा प्रभाव है। जिनका उक्त क्षेत्रों मे पंचायत व स्थानीय निकाय चुनाव मे रंग दिखता हैः यह घटक दल इन क्षेत्रो मे कुछ हद तक कांग्रेस का खेल बनाने व बिगाड़ने मे सक्षम है। आदिवासी क्षेत्र बांसवाड़ा-डूंगरपुर से बाप के सांसद राजकुमार रोत है। वही मारवाड़ के नागौर से रालोपा के हनुमान बेनीवाल व शेखावाटी के सीकर से माकपा के कामरेड अमरा राम सांसद है।
         हालांकि उक्त दलो का पंचायत चुनावों के हिसाब से ग्रामीण क्षेत्रो के मुकाबले स्थानीय निकाय चुनाव के हिसाब से शहरी क्षेत्रो मे प्रभाव कम है।साथ ही लोकसभा चुनाव से कांग्रेस नेता इन दलो के सांसदों के साथ साथ तो घूमते रहते है। लेकिन राजनीतिक रणनीति के तहत शहरी क्षेत्र मे प्रभाव जमाने के डर से इन्हें शहरी क्षेत्र से दूर रख रहे हैः जबकि खासतौर पर शहरी मुस्लिम व दलित मतदाताओ के साथ मजदूर तबका इन दलो के नेताओं के प्रति आकर्षण रखता हैः पीछले दिनो माकपा सांसद कामरेड अमरा राम के क्षेत्र के सीकर शहर के वार्ड स्तर के जनप्रतिनिधि व सामाजिक वर्कर अमरा राम को वार्ड स्तर पर बूलाकर स्वागत-सत्कार की योजना बनाने लगे तो कांग्रेस नेताओं ने उसे रोकने के संगठन स्तर पर कांग्रेस नेताओं ने एक विवाह स्थल मे सांसद कामरेड अमरा राम का सम्मान सत्कार रणनीति के तहत ओपचारिकता पूरी की। माकपा के स्वयं का संगठन शहरी क्षेत्र मे ग्रामीण क्षेत्र के मुकाबले काफी कमजोर है। अगर माकपा की शहरी क्षेत्र मे ठीक से  इंट्री हो जाती है तो स्थानीय निकाय चुनाव मे वो कांग्रेस के सामने मजबूती से खड़ा हो सकती है। दोनो दलो का मतदाता एक ही सेक्टर का है। सीकर जिले की धोद व दांतारामगढ़ से माकपा के विधायक रहे है। 2008 मे लक्ष्मनगढ व सीकर विधानसभा चुनाव मे माकपा उम्मीदवारों ने अच्छे वोट लिये थे। खण्डेला मे भी माकपा का एक आधार कायम है। पर शहरी सरकार मे माकपा की भागीदारी ना के बराबर रहती रही है। जबकि धोद पंचायत समिति मे माकपा के प्रधान बन चुके है। 2024 के लोकसभा चुनाव को छोड़कर बाकी चुनावों मे माकपा को कांग्रेस-भाजपा मिलकर घेरती रही है।
         कांग्रेस नेताओं के मुकाबले माकपा नेता सांसद कामरेड अमरा राम रालोपा नेता सांसद हनुमान बेनीवाल व बाप नेता सांसद राजकुमार रोत अच्छे रणनीतिकार व तेजतर्रार होने के अलावा हाईफाई रहने के बजाय आम आदमी की तरह आम मतदाताओं मे हमेशा रहते है। इन तीनो सांसदों की संघर्षशील नेता की छवि है। तीनो सांसद आंदोलनों व स्टुडेंट्स पोलिटिक्स से तप कर निकले हुये नेता है। जो आंदोलनों को आवश्यकता अनुसार मोड़ देने के साथ विपत्ति मे भी संयम से काम लेने मे माहिर माने जाते है।
               कांग्रेस चाहे इंडिया गठबंधन के दलो के साथ वर्तमान मे गठबंधन तोड़कर खुश हो जाये लेकिन घटक दल उनके लिये काफी मददगार साबित हो रहे थे। गठबंधन टूटने का असर आगामी पंचायत-स्थानीय निकाय व कोपरेटिव सेक्टर के चुनावों पर भी आया तो सभी घटक दलो मे टकराव के चलते नुकसान व भाजपा को फायदा पहुंच सकता है।

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