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राजस्थान में उपचुनाव की तारीखों का ऐलान होने के साथ राजनीतिक सरगर्मी शुरु।

 


               ।अशफाक कायमखानी।
जयपुर।
             हालांकि राजस्थान मे भाजपा की बहुमत से सरकार होने के कारण आगामी 13-नवम्बर को सात उपचुनावों के लिये मतदान होने की घोषणा के साथ खासतौर पर भाजपा व कांग्रेस के अलावा बाप व रालोपा जैसे राजनीतिक दलो मे राजनीतिक सरगर्मी शुरु हो गई है।
               उपचुनाव होने वाली विधानसभा सीट संलूबर, चौरासी, दौसा, देवली-उनियारा, झुंझुनूं, रामगढ़ और खींवसर सीट है। जिनमे से झूंझुनू, देवली- उनियारा व दौसा से जीते कांग्रेस विधायकों के लोकसभा सदस्य बनने व रामगढ़ सीट पर कांग्रेस विधायक के देहांत होने पर चुनाव होगे। यह चारो सीट कांग्रेस के खाते की है। वही चौरासी से बाप विधायक व खीवंसर से रालोपा विधायक के सांसद बनने पर सीटे रिक्त हुई है। इसके अलावा सलम्बूर सीट के भाजपा विधायक के देहांत होने से रिक्त हुई सीट पर चुनाव होगे।
               चुनाव कार्यक्रम के अनुसार अधिसूचना और नामांकन प्रारंभ 18 अक्टूबर से नामांकन भरने की आखिरी तारीख 25 अक्टूबर नामांकन पत्रों की जांच 28 अक्टूबर नाम वापसी लिए जा सकेंगे 30 अक्टूबर मतदान 13 नवंबर मतगणना 23 नवंबर को होगी।
         कांग्रेस की सभी चारो सीट पर वंशवाद के अनुसार तत्तकालीन विधायकों के बेटी-बेटी व पत्नी को टिकट मिलना लगभग तय माना जा रहा है। वही रालोपा के खींवसर से टिकट भी वंशवाद के अनुसार भाई या पत्नी को उम्मीदवार बनाया जायेगा। व चौरासी से बाप नेता सांसद राजकुमार रोत उम्मीदवार तय करेंगे। भाजपा भी सलम्बूर से मृतक विधायक के परिवार से उम्मीदवार बनाने की चर्चा है। जबकि अन्य छ सीटो पर कुछ पीछले 2023 के उम्मीदवार को व कुछ जगह उम्मीदवार बदल सकती है।
            झूंझुनू से विजेंदर ओला के व देवली- उनियारा से हरीश मीना के एवं दौसा के मुरारी मीणा के विधायक से सांसद बनने व रामगढ़ से कांग्रेस विधायक जुबेर खान के देहांत से सीटे रिक्त हुई है। सलम्बूर से भाजपा विधायक अमृतलाल मीणा के देहांत होने पर यह सीटे खाली हुई है। चौरासी से राजकुमार रोत के बाप टिकट व खींससर से हनुमान बेनीवाल के रालेपा टिकट से जीते विधायक के बाद सांसद बनने पर खाली हुई सीट पर उपचुनाव होने हैः
                 कुल मिलाकर यह है कि उपचुनाव मे लोकसभा चुनाव की तरह कांग्रेस का रालोपा व बाप पार्टी से समझौता होता है या नही यह देखना होगा। समझोता हुवा तो सभी सातो सीटो पर भाजपा उम्मीदवारों के मुकाबले उक्त दलो के उम्मीदवार भारी पड़ेंगे। समझौता नही हुवा तो भाजपा अपनी सीट को कायम रखते हुये अन्य सीटो पर कड़ा मुकाबले मे रहेगी। जिससे भाजपा की सीट बढ सकती है।

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