टीले वाली मस्जिद को मन्दिर बताने वाली याचिका का स्वीकार किया जाना गैर क़ानूनी- शाहनवाज़ आलम
लखनऊ,
4 मार्च 2024। पूजा स्थल अधिनियम 1991 की अवमानना करते हुए लखनऊ की
ऐतिहासिक टीले वाली मस्जिद को मन्दिर बताने वाली याचिका को लखनऊ ज़िला
अदालत द्वारा स्वीकार कर लिए जाने के विरोध में अल्पसंख्यक कांग्रेस ने
प्रदेश के विभिन्न ज़िलों से मुख्य न्यायाधीश को ज्ञापन भेजा है। ज्ञापन के
माध्यम से ज़िला जज के खिलाफ़ अनुशासनात्मक कार्यवाई की मांग की गयी है।
उत्तर
प्रदेश अल्पसंख्यक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज़ आलम ने जारी बयान
में कहा कि पूजा स्थल अधिनियम 1991 स्पष्ट करता है कि 15 अगस्त 1947 के दिन
तक पूजा स्थलों का जो भी चरित्र है उसमें कोई बदलाव नहीं हो सकता और ना ही
बदलाव की मांग करने वाली कोई याचिका किसी कोर्ट, ऑथोरिटी या न्यायाधिकरण
में स्वीकार की जा सकती है। ऐसे में लखनऊ ज़िला अदालत द्वारा हिंदुत्ववादी
पक्ष द्वारा दायर याचिका को स्वीकार किया जाना पूजा स्थल अधिनियम 1991 की
अवमानना है जिसके खिलाफ़ मुख्य न्यायाधीश को अपनी ज़िम्मेदारी निभाते हुए
अनुशासनात्मक कार्यवाई करनी चाहिए।
उन्होंने
कहा कि ऐसा देखा जा रहा है कि मौजूदा मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ के
कार्यकाल में पूजा स्थल अधिनियम के खिलाफ़ जाकर निचली अदालतों में फैसले
देने की प्रवित्ति बढ़ी है। जिसपर सुप्रीम कोर्ट भी चुप रह रहा है। इससे
जनता में यह संदेश जा रहा है कि न्यायपालिका का एक हिस्सा सरकार के दबाव
में काम कर रहा है। यह स्थिति क़ानून के शासन के लिए खतरनाक है।
शाहनवाज़
आलम ने कहा कि लखनऊ का प्राचीन और मध्यकालीन इतिहास इतिहासकारों और
शोधकर्ताओं ने दर्ज किया है। टीले वाली मस्जिद का भी इतिहास दर्ज है कि इसे
मुग़ल शासक औरंगजेब के गवर्नर फ़िदा खान कोका ने 1658 से 1660 के बीच
बनवाया था। लखनऊ के विश्व प्रसिद्ध इमामबाड़े से सटे इस खूबसूरत मस्जिद को
देखने पूरी दुनिया से पर्यटक आते हैं। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी
पूजा स्थल अधिनियम 1991 की रक्षा करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है।
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