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जिस राजनीतिक दल को मुस्लिम समुदाय अछूत बनाने मे लगा रहा, उस दल ने वर्तमान मे मुस्लिम को राजनीतिक अछूत जरूर बना दिया है।


                        ।अशफाक कायमखानी।
जयपुर।

                   अधीकांश प्रभावशाली कांग्रेस नेताओं की साजिश व उनके स्वार्थ के चलते मुस्लिम समुदाय के बडे तबके को साथ लेकर आजादी के बाद से चुनावी राजनीति की शुरुआत से लेकर आजतक पहले जनसंघ व फिर भाजपा को राजनीतिक तौर पर अछूत मानकर उसको छोड़कर पहले कांग्रेस फिर कांग्रेस सहित अन्य कथित सेक्युलर दलो के पक्ष मे मतदान करने का जेहन बनाया। जिसका परिणाम आज यह आया है कि भाजपा तो देश मे अछूत राजनीतिक दल नही बन पाया लेकिन मुस्लिम समुदाय को भाजपा ने राजनीतिक तौर पर अछूत बनाने मे काफी हद तक सफलता पा ली है।
                 हालांकि मुस्लिम उम्मीदवार भाजपा से आने पर कुछेक जगह मुस्लिम मतदाता उसके पक्ष मे मतदान कर दिया करते थे। लेकिन अन्य जगह मुस्लिम मतदाता अन्य भाजपा उम्मीदवारों के पक्ष मे मतदान नही करने के साथ साथ यह भी बढचढकर दर्शाते थे कि वो मानो भाजपा को हराने का ठेका  उन्होंने ले रखा हो।जबकि कांग्रेस व अन्य कथित सेक्यूलर दलो ने पक्ष मे मतदान करने के बदले मे वो दल चिकनी चुपड़ी बाते ही करते रहे। उन्होंने अपनी सत्ता काल मे मुस्लिम समुदाय के शेक्षणिक-सामाजिक व आर्थिक तरक्की के लिये केवल मृगमरीचिका की तरह पोलिसी बनाने का दिखावा किया। कथित सेक्यूलर दलो ने मुस्लिम समुदाय के शोला ब्यानी करने वाले धार्मिक लीडर व कमजोर से कमजोर कम पढे लिखे लोगो को राजनीतिक तौर पर आगे लाने का दिखावा किया। यहां तक कि माफियाओं को भी आगे लाये ताकि आम मुस्लिम की दूसरे तबके मे उन माफियाओं जैसी तस्वीर बने। जो आज के राजनीतिक पटल पर मुस्लिम समुदाय भूगत रहा है।
              मुस्लिम समुदाय ने कथित सेक्यूलर दलो मे मोजूद कथित धर्मनिरपेक्ष लीडर व भाजपा मे कुछ हद तक मुस्लिम दोस्त लीडरस मे फर्क नही समझा। जिसके चलते कांग्रेस मे कथित सेक्युलर जेहन के यानि छुपे चेहरों की तादाद बढती गई, ओर भाजपा मे मुस्लिम दोस्त कम होते चले गये। यानि भाजपा आज राजनीतिक तौर पर मुस्लिम समुदाय से किनारा सा कर लिया है।
                  हाल ही मे राजस्थान मे भाजपा ने चुनाव प्रचार मे दर्दनाक कन्हैयालाल हत्याकांड को उछाल कर खासतौर पर मेवाड़ से कोटा-भरतपुर रीजन से लेकर जयपुर तक खूब राजनीतिक लाभ उठाया। वही कांग्रेस ने बाबा बालकनाथ के मुख्यमंत्री बनने का मुस्लिम समुदाय मे डर बैठाकर खासतौर पर श्रीगंगानगर, हनुमानगढ व शेखावाटी रीजन मे उनके जमकर वोट खींचे।
                जब हर मुमकिन कोशिश के बावजूद मुस्लिम समुदाय के मत नही आने को नजर मे रखते हुये. 2014 से मुस्लिम समुदाय को राजनीतिक तौर अछूत बनाने के लिये भाजपा ने धीरे धीरे कोशिश शुरू की। जिसका परिणाम यह है कि 6-जुलाई-2022 से केन्द्रीय सरकार मे कोई भी मुस्लिम मंत्री है। भाजपा ने विधानसभा व लोकसभा मे अपने दल से मुस्लिम उम्मीदवार नही बनाने का सीलसीला शुरू किया। जिसका परिणाम है कि भारत के 28-राज्यों मे से 09 को छोड़कर पर बाकी राज्यों की सरकारों मे मुस्लिम मंत्री नही है। 08 केन्द्र शाशित प्रदेशों मे से दिल्ली व लक्षद्वीप को छोड़कर बाकी जगह भी मुस्लिम मंत्री नहीं हैः कशमीर मे राज्यपाल का शासन है।
         कुछ राज्य सरकारों के गठन मे कथित सेक्युलर कांग्रेस भी अब भाजपा की तरह अपने मंत्रिमंडल को मुस्लिम मुक्त बनाने लगी है। तेलंगाना व हिमाचल मे कांग्रेस सरकार के ताजा उदाहरण है। कांग्रेस का कहना है कि उक्त दोनो प्रदेशों मे मुस्लिम विधायक नही है, मंत्री बनाना मुश्किल है। जबकि तत्तकालीन समय मे मध्यप्रदेश मे दिग्विजय सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस मे मोहम्मद इब्राहिम कुरेशी को बिना विधायक होने के बावजूद मंत्री बनाया गया था। यह सब नियत व सोच पर निर्भर करता है।
             देश मे इमरजेंसी के बाद हुये लोकसभा चुनाव मे उस समय के दिल्ली जामा मस्जिद के शाही इमाम अब्दुल्ला बुखारी ने कांग्रेस के खिलाफ जनता पार्टी को वोट करने की अपील व प्रचार किया था। तब भारत मे पहली दफा गैर कांग्रेस सरकार बनी थी। उस जनता पार्टी मंत्रिमंडल मे मुस्लिम समुदाय को अहमियत मिली थी। इसके बाद 1989 मे जनता दल व अन्य दलो की मिलीजुली सरकार मे भी मुस्लिम को मंत्रिमंडल ये खास महत्व मिला था। उस सरकार मे मुफ्ती मोहम्मद सईद भारत के पहले व अबतक के अंतिम मुस्लिम गृहमंत्री बने थे।
                     भारत के मुस्लिम इबादतगाहो - सामाजिक स्कूल-कालेज व संस्थाओं मे से अधीकांश पर कम पढे लिखे लोगो की हकुमत चलती है। पढे लिखे उनके सामने बैठकर उनका भाषण सूनते है। उसी तरह राजनीति मे भी अधीकांश लीडर ऐसे ही हैः तारीफ करनी होगी कि हाल ही मे राजस्थान सरकार के गठित मंत्रिमंडल मे दो एससी वर्ग के सदस्य जो दोनो यूनिवर्सिटी मे प्रोफेसर रहे है। उपमुख्यमंत्री प्रैमचंद व मंजू बाघमार दोनो डाक्ट्रेट है।
                       कुल मिलाकर यह है कि वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति व मुस्लिम मुक्त होती केन्द्र व राज्य सरकारे को लेकर मुस्लिम समुदाय को अपनी पूरानी घीसी पीटी राजनीतिक व्यू रचना पर मनन-मंथन करके नये राजनीतिक समिकरण बनाने पर विचार करना चाहिए। साथ ही समुदाय से अच्छी लीडरशिप को उभारने पर विचार करना चाहिए। किसी दल को सत्ता मे आने से वो अकेले रोक नही सकते ओर ना ही वो अकेले किसी दल को सत्ता मे ला सकते है। देश का 18-20 प्रतिशत वाला मुस्लिम समुदाय राजनीतिक तौर पर धीरे धीरे प्रभावहीन होता जा रहा है।

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