जस्टिस चंद्रचूड़ से पहले इतने खुलेआम आरोप किसी भी मुख्य न्यायाधीश पर नहीं लगे थे- शाहनवाज़ आलम
लखनऊ,
21 जनवरी 2023। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ पर जिस
तरह सरकार के हितों और प्रतिष्ठा से जुड़े मामलों में सरकार को लाभ
पहुंचाने के लिए बेंच बदल देने का आरोप सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता
लगाने लगे हैं वो मुख्य न्यायाधीश की विश्वस्नियता और गरिमा को कटघरे में
खड़ा करता है। ऐसी स्थितियां लोकतंत्र को खतरे में डालती हैं। जिस पर
नागरिकों और राजनीतिक दलों को मुखर होकर बोलना चाहिए। ऐसी स्थिति में
विपक्षी सांसदों को महाअभियोग के विकल्प पर भी सोचना चाहिए।
ये बातें अल्पसंख्यक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज़ आलम ने साप्ताहिक स्पीक अप कार्यक्रम की 131 वीं कड़ी में कहीं।
शाहनवाज़
आलम ने पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील और सुप्रीम कोर्ट बार
एसोसिएशन के पूर्व सचिव अशोक अरोड़ा के उस इंटरव्यू का हवाला दिया जिसमें
उन्होंने बाबरी मस्जिद पर दिये गए फैसले पर किसी भी जज के नाम के न होने पर
आश्चर्य व्यक्त करते हुए इसे भविष्य में की जाने वाली समीक्षा से डर कर की
गयी कायराना हरकत बताई है। उन्होंने अपने इंटरव्यू में देश के मौजुदा
सामाजिक बदहाली के लिए चंद्रचूड़ के कई फैसलों को ज़िम्मेदार बताया था।
शाहनवाज़
आलम ने कहा कि अंबानी, अदानी से जुड़े मुकदमों, मुख्य चुनाव आयुक्त की
नियुक्ति, एलेक्टोरल बॉन्ड, राज्यपालों की भूमिका, पूजा स्थल अधिनियम 1991
जैसे कई मुद्दे हैं जिसपर कई जज और क़ानूनविद लगातार डी वाई चंद्रचूड़ के
फैसलों पर सार्वजनिक सवाल उठा रहे हैं। लेकिन वो कोई भी जवाब नहीं देते।
यहाँ तक कि संवैधानिक बेंचों के औचित्य को खत्म करने के भी आरोप लगने लगे
हैं।
उन्होंने कहा कि
सुप्रीम कोर्ट के वकील बलराज मलिक ने अभी हाल ही में एक इंटरव्यू में
खुलासा किया है कि सुप्रीम कोर्ट के वकीलों में अब यहाँ तक बातें होने लगी
हैं कि मोदी जी और उनके प्रायजकों से जुड़े मुकदमे चंद्रचूड़ जी दो विशेष
जजों के पास भेज देते हैं। जिन्हें गोदी मीडिया की तरह 'गोदी जज' कहा जाने
लगा है।
शाहनवाज़ आलम ने
कहा कि सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश संविधान का अभिरक्षक होता है। ऐसे
में अगर उसकी छवि ही सरकार के सक्रिय समर्थक की हो जाएगी तो चेक एंड
बैलेंस के सिद्धांत का कोई मतलब ही नहीं बचेगा। उन्होंने कहा कि नागरिकों
में यह धारणा तेजी से बढ़ रही है कि न्यायपालिका सरकार का अभिन्न अंग बनती
जा रही है और बहुत सारे काम सरकार अपने पसंद के जजों से फैसलों के ज़रिये
करवा रही है। ऐसे में विपक्षी दलों को ऐसी स्थिति से निपटने के लिए संविधान
में दिये गए महा अभियोग के विकल्प पर गंभीरता से विचार करने की ज़रूरत
है।
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