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सर्वोच्च अदालत पूजा स्थल अधिनियम 1991 के उल्लंघन पर चुप क्यों है- शाहनवाज़ आलम




लखनऊ, 21 मई 2023। केंद्र और राज्य की भाजपा सरकारें न्यायपालिका के एक हिस्से के सहयोग से साप्रदायिक एजेंडा सेट करवा रही हैं। इसके तहत निचली अदालतें सुप्रीम कोर्ट तक के निर्देशों के खिलाफ़ जाकर फैसले दे रही हैं। जिसपर सुप्रीम कोर्ट की चुप्पी निराशाजनक है। ये बातें उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज़ आलम ने स्पीक अप कार्यक्रम की 97 वीं कड़ी में कहीं।

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बुरी तरह हारने के बाद भाजपा ध्रुविकरण के काम में लग गयी है। इसी के तहत संघ से जुड़े लोगों से निचली अदालतों में ऐतिहासिक मस्जिदों के मन्दिर होने के दावों वाली याचिकाएं डलवाई जा रही हैं। जैसे कि पिछले दिनों आगरा की जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे किसी मूर्ति के होने के दावे के साथ उसकी खुदाई की मांग वाली एक
कथावाचक की याचिका को अदालत ने स्वीकार कर लिया। इसी तरह ज्ञानवापी मस्जिद के फव्वारे को कथित तौर पर शिवलिंग बताते हुए उसकी जाँच की मांग पर बनारस की ज़िला अदालत ने पूरे मस्जिद परिसर की ही एएसआई से सर्वे कराने का आदेश दे दिया।

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि यह सभी फैसले पूजा स्थल अधिनियम 1991 के खिलाफ़ हैं जिसमें स्पष्ट कहा गया है कि 15 अगस्त 1947 के दिन तक जिस धार्मिक ढांचे का जो चरित्र है वो वही रहेगा। उसमें कोई तब्दीली नहीं हो सकती। यहाँ तक कि इसकी मांग वाली कोई याचिका किसी भी अदालत, ट्रिब्यूनल या प्राधिकार में भी स्वीकार नहीं की जा सकती।

उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट अपने ही क़ानून के खिलाफ़ की जा रही निचली अदालतों के इस अवमानना पर चुप्पी साधकर अपनी विश्वसनीयता संदिग्ध कर रही है। यह रवैय्या लोकतंत्र और क़ानून के राज के खिलाफ़ है।

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि एक मदरसे के शिक्षक द्वारा अपनी सैलरी के मुद्दे पर कोर्ट जाना और इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा मदरसों की वैधता पर सवाल उठाते हुए सरकार को नोटिस भेजना यहाँ तक कि राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) की दखल को स्वीकार करना जो मदरसों में पढ़ने को बच्चों के मौलिक अधिकारों का हनन मानता है, साबित करता है कि इस केस के बहाने यूपी में भी असम जैसा माहौल बनाने की कोशिश सरकार कर रही है। जहाँ भाजपा सरकार ने हज़ारों मदरसों को बन्द कर दिया है। जबकि यही हाई कोर्ट सामाजिक कार्यकर्ता राजीव यादव की याचिका जिसमें उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा रामनवमी मनाने के लिए हर ज़िले में सरकार की तरफ से दिये गए पैसों की वैधता पर सवाल उठाया था, पर बिल्कुल चुप्पी साधे हुए है।

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि अदालतों के बारे में यह आम धारणा है कि इसके फैसलों पर सवाल नहीं उठाया जा सकता। सरकार इसी का फ़ायदा उठाकर अदालतों के एक हिस्से के सहयोग से मनचाहे फैसले दिलवा रही है। जबकि यह धारणा बिल्कुल गलत है। न्यायालय का अवमानना अधिनियम, 1971 इसका अधिकार देता है कि नागरिक गलत फैसलों पर सवाल उठा सकें। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र और क़ानून के राज को बचाने के लिए ज़रूरी है कि अदालतों के गलत फैसलों पर नागरिक समाज सवाल उठाए। 



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