2023-राजस्थान का आम विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिये खतरा साबित हो सकता है।  गहलोत के मुकाबले जनता मे पायलट की अधिक चाहत आज भी बरकरार।




                   ।अशफाक कायमखानी।
जयपुर।

             1998 के आम विधानसभा चुनाव मे कांग्रेस को भारी बहुमत मिलने पर जनता की चाहत के विपरीत दिल्ली हाईकमान की इच्छानुसार अशोक गहलोत के नेतृत्व मे प्रदेश मे कांग्रेस सरकार का गठन हुवा। उसके बाद गहलोत के मुख्यमंत्री रहते जब जब चुनाव हुये तब तब कांग्रेस प्रदेश मे बूरी तरह हारी ओर बहुमत के साथ भाजपा सरकार का गठन होता चला आ रहा। मुख्यमंत्री गहलोत द्वारा कूर्शी के चिपके रहने के अलावा विधायकों को उनके विधानसभा क्षेत्र का पूरी तरह मिनी मुख्यमंत्री बनाने के अलावा आम कांग्रेस कार्यकर्ताओं को सत्ता से दूर रखने की गहलोत की नीति के कारण इसी साल 2023 के आखिर मे होने वाले विधानसभा चुनाव मे कांग्रेस की लूटिया बूरी तरह डूबने के आसार अभी से साफ नजर आ रहे है। चुनाव के नजदीक आते आते कांग्रेस मे भगदड़ मचने की सम्भावना साफ नजर आ रही है। शेखावाटी क्षेत्र के सीकर जिले की सभी आठो सीटो से चुनावी इतिहास मे पहली दफा भाजपा व माकपा सहित पूरे विपक्ष को दूर रखकर कांग्रेस के पाले मे सीट डालने वाले पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुभाष महरिया सहित प्रदेश के अनेक कांग्रेस नेताओं की मुख्यमंत्री गहलोत द्वारा लगातार उपेक्षा करने से फरवरी माह मे भाजपा मे जाने की सम्भावना जताई जा रही है।
                 राजस्थान मे परशराम मदेरणा का चेहरा दिखाकर 1998 मे कांग्रेस के चुनाव लड़ने पर 156 सीट के साथ कांग्रेस को बहुमत मिला। पर हाईकमान ने जनता की चाहत के विपरीत राज्य की कमान अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बना कर उनके हाथ मे कमान सौंप दी। उसके बाद गहलोत के मुख्यमंत्री रहते 2003 मे चुनाव होने पर कांग्रेस 156 से 56 सीट पर आकर लूढक गई। 1998 मे जब कांग्रेस की सरकार बनी तब भाजपा के मुकाबले कांग्रेस को 11.75 प्रतिशत अधिक वोट मिले थे।
           2003 मे कांग्रेस के हारने के बाद 2008 मे कांग्रेस ने सीपी जोशी को सामने रखकर विधानसभा चुनाव लड़ा पर बहुमत ना सही पर भाजपा से अधिक सीट जीतने पर कांग्रेस की फिर सरकार बनी। जोशी स्वयं एक वोट से विधानसभा  चुनाव हार गये एवं हाईकमान ने किसी जातीय व मतदाताओं मे पेट रखने वाले जनाधार वाले नेता की बजाय फिर अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बना गया। तब कांग्रेस व भाजपा मे 1998 मे सरकार बनने के मुकाबले वोट प्रतिशत लूढकर मात्र 1.5 वोट प्रतिशत का अंतर रह गया। इसके बाद 2013 का विधानसभा चुनाव भी गहलोत के मुख्यमंत्री रहते हुये हुवा तो भाजपा फिर सत्ता मे आ गई। तब कांग्रेस को 1977 के जनता राज से भी कम मात्र 21 सीट ही मील पाई। उसके बाद दिल्ली से पार्टी ने सचिन पायलट को राजस्थान पीसीसी चीफ बना कर राजस्थान भेजा। पायलट ने पूरे पांच साल भाजपा का मुकाबला करते हुये जनता मे कांग्रेस की पेठ जमाने मे कड़ी मेहनत की। 2018 का आम विधानसभा चुनाव सचिन पायलट के चेहरे पर लड़ा गया। लेकिन पहले की तरह जनता की चाहत के विपरीत हाईकमान मेनेजमेंट के कारण कांग्रेस सरकार बनने पर फिर अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बन गये। 2018 के चुनाव मे कांग्रेस व भाजपा मे वोट प्रतिशत का अंतर 1998 मे 11.75 व 2008 मे 1.5 के मुकाबले लूढकर मात्र 0.5 प्रतिशत का ही रह गया। जो लगातार कम होते वोट प्रतिशत अंतर 2023 के चुनाव के परिणाम की तरफ इशारा करता है।
                2018 मे प्रदेश सरकार बनने के बाद  से लगातार मुख्यमंत्री गहलोत व पायलट मे मध्य छत्तीस का आंकड़ा  चला आ रहा है। गहलोत लगातार पायलट पर हमलावर व उसके राजनीतिक अस्तित्व मिटाने मे लगे हुये है। कभी कभी तो गहलोत ने मर्यादाओं को तोड़ते हुये पायलट पर नकारा-निकम्मा सहित अनेक अशोभनीय शब्दबाण चलाये जो सियासत मे उचित नही माना जाता। मुख्यमंत्री की उपेक्षा से त्रस्त होकर पायलट कुछ विधायकों को लेकर गुडगांव के होटल मे डेरा डाला तो गहलोत ने जादूगीरी के बल पर हाईकमान को विश्वास मे लेकर  पायलट से प्रदेश अध्यक्ष व उपमुख्यमंत्री का पद से दूर करवा देने मे सफल हो गये। तब से मुख्यमंत्री गहलोत के हमलो को पायलट टालते रहे। लेकिन केन्द्रीय परवेक्षको के जयपुर आने पर 25 सितंबर 22 को विधायकों के त्यागपत्र देने के नाटक से कांग्रेस की काफी किरकिरी हुई है।
          राजस्थान की वास्तविक राजनीतिक स्थिति व अपने द्वारा करवाये गये सर्वे के मुताबिक हाईकमान गहलोत को हटाकर सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने की अनेक दफा कोशिश करने पर बदले मे हर दफा लगातार गहलोत द्वारा हाईकमान को चुनोती मिलने से दिल्ली नेता बेबस नजर आ रहे है। इन दावपेंचो के मध्य गहलोत इस सरकार का पांचवा बजट 8-फरवरी को पैश करने जा रहे है। विधानसभा सत्र 23-जनवरी से आहूत होने की घोषणा उपरांत 14-जनवरी को मलमास खत्म के बाद 16-जनवरी से सचिन पायलट राज्य भर मे अलग अलग जगह किसान सम्मेलन करके पहली दफा वो गहलोत पर हमलावर हो रहे है। सम्मेलनों मे गहलोत सरकार व उनपर व्यक्तिगत हमलावर भी हो रहे है। यानि गहलोत-पायलट टकराव अब खूलकर सड़क पर आ गया है। जिससे कांग्रेस व गहलोत सरकार की छवि पर विपरीत असर डालेगा।
             कुल मिलाकर यह है कि अच्छी योजनाओं की घोषाणाओ के बावजूद गहलोत की छवि मे धरातल पर सुधार नही हो पा रहा है। कांग्रेस कार्यकर्ता अवल तो नजर नही आते है। अगर कभी कभार कही पर कुछ नजर आते है तो वो सभी सरकार की योजनाओं का बखाण करने की बजाय स्वयं की स्थानीय विधायकों द्वारा  उपेक्षा व दमन करने से त्रस्त होने का दुखडा रोते नजर आते है। दूसरी तरफ गहलोत व पायलट की टसल एवं गहलोत द्वारा किसी भी सूरत  मे गद्दी नही छोड़ेने व सत्ता से हर हाल मे चिपके रहने के अतिरिक्त कमजोर हाईकमान को आइना दिखाते रहने पर कांग्रेस निरंतर निचे आती जायेगी। अगर यही हालात चुनावो तक रहे तो कांग्रेस का दो अंको मे सीट जीतना मुश्किल है। राजनीतिक समीक्षक कहते है कि कमजोर हाईकमान के चलते गहलोत अपना कार्यकाल पूरा करेगे। वही एआईसीसी मे चुनाव के समय गांधी परिवार के साथ खड़गे व गहलोत बैठ कर खुले तौर पर आम विधानसभा चुनाव पायलट के चेहरे पर लड़ने का एहलान करेगे। टिकट वितरण पर पायलट की इच्छाओं को पूरा वेट दिया जायेगा। लेकिन तबतक रायता इतना बिखर जायेगा कि पायलट को आगे पांच साल फिर भाजपा सरकार का मुकाबला करना होगा। तब उनका भविष्य आगे जाकर तय होगा।

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