सीकर जिले की मुस्लिम सियासत कभी मजबूत बनकर नही उभर पाई।



                    ।अशफाक कायमखानी।
सीकर।

                 आजादी के बाद 1952 मे चुनावी सिस्टर शूरू होने के बाद सीकर जिले की सियासत मे मुस्लिम सियासत कभी भी मजबूत बनकर नही उभर पाई। समय समय पर कांग्रेस मे मुसलमान नेता उभरे पर पर वो स्वयं कुछ कर पाने की बजाय अपने आकाओं की इच्छा अनुसार व दिग्गज सियासी घरानो के आशिर्वाद के बल पर सीमित समय तक पानी के बूलबूलै की तरह उभरे वहीं कांग्रेस के खिलाफ भी मुस्लिम नेतृत्व समय समय पर उभरने की कोशिश करता रहा लेकिन उनकी काट के लिये एक रणनीति के लिये उनके स्वयं मुस्लिम समुदाय से पहले जनसंघ व फिर भाजपा का एजेंट बताकर उन्हें बदनाम करने की भरपूर कोशिशे की गई।
                

              कांग्रेस के खिलाफ फतेहपुर से पहले एक दफा स्वतंत्र पार्टी व फिर जनता पार्टी के निशान पर आलम अली खा विधायक बने वही 1980 मे सीकर विधानसभा से मोहम्मद हुसैन लोकदल की टिकट पर मजबूती से चुनाव लड़ा। जिनमे से मोहम्मद हुसैन पठान अभी भी अपने गावं खीरवा रहकर ग्रामीण राजनीति मे सक्रिय है। उनके बाद शैक्षणिक क्षेत्र मे सफलतम तौर पर बडा काम करने वाले वाहिद चोहान ने पहले 2013 मे एनसीपी व फिर 2018 मे रालोपा के निशान पर सीकर विधानसभा से चुनाव लड़ा। श्री चोहान के 2013 मे चुनाव लड़ने के बाद कुछ समय भाजपा जोईन करने के कारण अगले चुनाव 2018 के समय रणनीति के तहत कांग्रेस जनो ने उनको भाजपा का एजेंट बताकर उनके समर्थक मजबूत मतदाता मुस्लिम मे उन्हें काफी डेमेज करने की कोशिशे की गई। इसी के साथ यह भी रहा की समुदाय को रोजाना सियासत करने वाले नेतृत्व की जरूरत है, जबकि चौहान चुनावी समय मे आंधी की तरह आते है एवं तुफान की तरह चुनाव बाद चले जाते है। हां चोहान ने सीकर मे शैक्षणिक क्षेत्र मे बेहतरीन काम किया है। एवं चिकित्सा क्षेत्र मे करने की तरफ चल पड़े है। पर सियासत इससे जूदा फिल्ड माना जाता है।
            

          जिले मे कांग्रेस से फतेहपुर से गफ्फार खा, अश्क अली टांक व भंवरु खा के बाद हाकम अली विधायक बने है। जो कांग्रेस के मुस्लिम विधायक तो कहलाये पर जिले मे मजबूत नेतृत्व के तौर पर कभी उभर नही पाये। जिसके अनेक कारण हो सकते है। उनपर कभी बाद मे बात करेगे। सियासत व ब्यूरोक्रेसी से आंख से आंख मिलाकर बात करने वाले व क्षेत्र की बडी बिरादरी कुरैशी से तालूक रखने वाले मोहम्मद हनीफ खत्री को फतेहपुर से कांग्रेस ने दो दफा विधानसभा चुनाव मे उतारा पर वो जीत नही पाये। बाद मे वो सीकर नगरपरिषद के दो दफा सभापति जरूर रहे। खत्री को टिकट दिलवाने व फिर सभापति बनाने मे चोधरी नारायण सिंह का बडा रोल माना जाता है। इसके अतिरिक्त माकपा से उसमान खान एक दफा धोद पंचायत समिति के प्रधान रहे है। वही कय्यूम कुरेशी ने सीकर से एक दफा मजबूती से चुनाव लड़ा है। वर्तमान मे फतेहपुर से हकम अली खान विधायक है। उनके अलावा फतेहपुर, लक्ष्मनगढ, सीकर, लोसल व खण्डेला मे मुस्लिम चैयरमैन भी बने हुये है। सभी चेयरमैन कांग्रेस पार्टी से तालूक रखते है। जो अपने अपने स्थानीय विधायक की पसंद है।
         


        

           किसी समुदाय से सियासत मे मजबूत नेतृत्व अव्वल तो स्वयं की काबिलियत से उभरता है। या फिर जिले की सियासत मे जिलास्तरीय दबदबा रखने वाले मजबूत सियासी घरानो की मंशानुसार उभर पाता है। कांग्रेस मे चौधरी नारायण सिंह व महरिया परिवार सालो से कायम है। वही फतेहपुर मे शीशराम ओला परिवार का खासा दखल रहता आया है। माकपा मे कामरेड अमरा राम के उदय के बाद लगातार ही उनका दबदबा बरकरार है। कामरेड अमरा राम ने धोद पंचायत समिति मे उसमान खा को प्रधान बनाया। जबकि चोधरी नारायण सिंह ने मोहम्मद हनीफ खत्री को अपने बलबूते दो दफा फतेहपुर से टिकट दिलवाई। ओला परिवार ने पहले भंवरु खां को चार दफा व एक दफा हाकम अली को टिकट दिलवाई है। विधानसभा स्तरीय नेताओं ने अपने क्षेत्र मे मुस्लिम चेयरमैन बनाने की कभी सफल तो कभी असफल कोशिशे की है।
           

         कुल मिलाकर यह है कि सियासत मे मजबूत किरदार अदा करने के लिये मजबूत मुस्लिम नेतृत्व उभारने के लिये  शेक्षणिक-सामाजिक व साम्प्रदायिक सद्भाव के तौर पर काबिल व्यक्ति को  समुदाय स्तर पर या जिला स्तरीय दिग्गज सियासी घरानो की तरफ से कोशिश की जाये तो यह काम आशानी से हो सकता है।

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