मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा अच्छा बजट देने व सरकार बचाये रखने के बावजूद उनकी सरकार की छवि उजली नही हो पा रही है।
     
            ।अशफाक कायमखानी।
जयपुर।

            राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा ठीक ठाक बजट पैश करने के अलावा अनेक जनहित कारी योजनाओं को लागू करने के बावजूद उनकी व उनके दल की कार्यशैली के अतिरिक्त सत्तारूढ़ दल के अधीकांश विधायको की मनमर्जी व हठधर्मिता के कारण राज्य मे कांग्रेस पहले के मुकाबले ओर अधिक तेजी से गर्त मे जाती नजर आ रही है। जनता मे इन सब जनहितकारी योजनाओं का प्रचार करके राजनीतिक लाभ उठाने की बजाय आम कांग्रेस मेन सत्ता मे हिस्सेदारी नही मिलने व विधायकों के सामने एक तरह से मुख्यमंत्री द्वारा समर्पण करने की व्यथा गाता जरूर घूमता नजर आता है।
                 मुख्यमंत्री द्वारा चलाई जारही किसी भी अच्छी योजना व बजट घोषणाओं का असर धरातल पर आमजन की जबान पर कतई नजर नही आ रहा है। बजट के बाद मेनेज तरिके से कुछ झूंड अलग अलग रुप मे मुख्यमंत्री का आभार व्यक्त करने उनके आवास गये तो विधायकों ने अपने क्षेत्र मे विकास की घोषणाओं का श्रेय सरकार को देने की बजाय स्वयं के द्वारा लेने की कोशिश के फैर मे गुड़ गोबर कर दिया है। कांग्रेस का मीडिया सेल यानि प्रचार तंत्र इतना कमजोर हो चुका है कि मानो वो कहीं नजर नही आ रहा है। मुख्यमंत्री स्वयं का कोई सीनियर पत्रकार मीडिया सलाहकार ना होकर एक ऐसे युवक को मीडिया का जिम्मा दे रखा है जिसकी कुछेक पत्रकारों को छोड़कर अधीकांश तक अप्रोज तक नही है। स्वय प्रदेश अध्यक्ष डोटासरा के रीट परीक्षा मे धांधली को लेकर बडे विवादों मे होने के कारण जगह जगह उन्हें विरोध का सामना करना पड़ रहा है। विधायक अपने क्षेत्र का मुख्यमंत्री होने के बावजूद अगला चुनाव जीतने की सम्भावना नही जता रहे है।
            राजस्थान मे अशोक गहलोत को दुसरे के नाम चुनाव लड़कर सत्ता मे आने पर मुख्यमंत्री पद हथियाने वाले नेता के तौर पर देखा जाने के चलते उनको सरकार का रिपीटर नही माना जाता है। संगठन के तौर पर राज्य मे कांग्रेस की हालत निरंतर कमजोर होता जा रही है। आधे से अधिक जिलो मे कांग्रेस जिलाध्यक्ष का पद खाली है। एक भी जिले मे जिला कार्यकारिणी नही है। सभी 200 ब्लाक अध्यक्ष के पद खाली है। सवा तीन साल बाद सरकार ने कुछ राजनीतिक नियुक्तियों की घोषणा की है। जिनमे कार्यकर्ताओं को नकार कर लाभ के पद के बावजूद विधायकों व कुछ जनाधारहीन वह लोग जो मुख्यमंत्री के इर्दगिर्द चक्कर लगाते देखे जाते है। कुछ हारे हुये विधानसभा उम्मीदवार व कुछ विधायक पुत्रों को भी राजनीतिक नियुक्ति से नवाजा गया है। उपखण्ड व जिलास्तरीय राजनीतिक नियुक्तियों का सीलसीला शुरू भी नही हो पाया है। सरकार से खासतौर पर महगी बिजली से किसान व आम लोग नाराज है। वही प्रमुख विपक्षी दल अल्पसंख्यक व दलितों के हित वाली सरकार बताने मे लगे है जबकि अल्पसंख्यक व दलित स्वयं भी गहलोत सरकार से खुश नही है।
                 कुल मिलाकर यह है कि मुख्यमंत्री द्वारा अच्छा बजट पैश करने व अच्छी योजनाओं के लागू करने के बावजूद कांग्रेस उनको अपने पक्ष मे भूना नही पा रही है। कार्यकर्ता उदासीन है। विधायकों की हठधर्मिता के चलते सत्ता के साथ रहने वाले एक छोटे झूंड को छोड़कर बाकी जनता काफी आक्रोश मे है। सरकार के खिलाफ प्रचार तेजी के साथ चल रहा है। जबकि इसको काऊंटर करने के कांग्रेस मेन जमीन पर नजर नही आता है। राज्य मे आम धारणा बन चुकी है कि मुख्यमंत्री ने विधायकों के सामने आत्मसमर्पण कर रखा है। इसके विपरीत गहलोत-पायलट के मध्य जारी राजनीतिक संघर्ष  व आम कार्यकर्ताओं के उदासीन हाने से भी पार्टी को बडा नुकसान हो रहा है।

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