विधायक पंडित भंवरलाल शर्मा व पंडित अनिल शर्मा से राजनीति के दावपेंच सीखना चाहिए। विधायकों की जगह अन्यो को उक्त राजनीतिक नियुक्ति दी जाती तो अलग से लीडरशिप उभरकर आती।



                  ।अशफाक कायमखानी।
जयपुर।

                 राजस्थान सरकार के तीन साल गुजरने के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने चार दर्जन के करीब बोर्ड-निगम व समितियों का गठन करते हुये नेताओं व विधायकों को राजनीतिक नियुक्ति देकर उपकृत किया है। जिनमे ओबीसी व दलित समुदाय के तेराह विधायकों को भी अध्यक्ष पद देकर उपकृत किया है। जिन्हें लाभ का पद मानते हुये अध्यक्ष की सुविधाओं से महरुम होना पड़ेगा। जबकि विधायक पंडित भंवर लाल शर्मा की राजनीतिक सूझबूझ से सबको सबक लेना चाहिए जिन्होंने स्वयं के लिये लाभ का पद मानकर चलने के चलते पुत्र पंडित अनिल शर्मा को अध्यक्ष बनवाया जो सभी तरह की सुविधाओं का उपयोग करेगे। यानि पिता विधायक होने की सुविधा व पूत्र अध्यक्ष होने की सुविधाओं का लाभ लेगे।
                   बोर्ड-निगम का अध्यक्ष पाने वाले सभी विधायक ओबीसी व दलित समुदाय से तालूक रखते है।जिनको मुख्यमंत्री अगर मंत्रिमंडल मे जगह देते तो उनको सुविधा भोगने का अवसर मिलता। लेकिन मुख्यमंत्री अपनी सरकार बचाने के लिये इन विधायकों के सामने गाजर लटकाने की तरह बोर्ड/आयोग अध्यक्ष का पद तो दिया। पर वो उस पद की सुविधा पाने से मरहूम रहेगे। विधायक पंडित भंवर लाल शर्मा जो सचिन पायलट खेमे मे रहने के समय ओडियो क्लीप मे फंसने लगे तो बचने के लिये मुख्यमंत्री खेमे मे जा मिले। मिले ही नही ब्लकि अपने पुत्र पंडित अनिल शर्मा के लिये मंत्री दर्जे का जुगाड़ भी कर लिया। अनिल शर्मा को पहले राजस्थान सार्वजनिक प्रन्यास मण्डल का अध्यक्ष बनाया। लेकिन दो दिन बाद ही उनको उनकी पसंद अनुसार बदलकर आर्थिक रुप से पीछड़े वर्ग समिति का अध्यक्ष बनवा लिया।
                कुल मिलाकर यह है कि अबतक तेराह विधायकों को बोर्ड-आयोग अध्यक्ष बनाकर उनको मुख्यमंत्री ने लालीपाप तो दिया है। लेकिन वो जो सुखद अहसास करना चाहते थे। वो अहसास उनको नही होगा। इन तेराह विधायकों से पहले छ विधायकों को मुख्यमंत्री ने अपना सलाहकार भी बनाया था। जो सलाहकार पद पर अन्य सुविधाओं से पूरी तरह वंचित है। ओबीसी-अल्पसंख्यक व दलित समुदाय के तेराह विधायको की जगह अन्य तेराह लोगो को अध्यक्ष बनाया जाता तो कांग्रेस मे नई लीडरशिप उभर कर आती। जिससे कांग्रेस पार्टी व समुदाय को फायदा होता। विधायक के तौर पर तो उन तेराह की लीडरशिप पहले ही उभर चुकी है। वही विधायकों को विधायक होने के नाते विधानसभा की समितियों मे शामिल किया जाता है।

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