कांग्रेस नेता सचिन पायलट व उनके समर्थकों को सत्ता से दूर रखने मे मुख्यमंत्री गहलोत के प्रयास सफल होते नजर आ रहे है।
।अशफाक कायमखानी।
जयपुर।
राजनीति के जादूगर माने जाने वाले मुख्यमंत्री गहलोत अपने ही दल मे अपने मुकाबले खड़े होने वाले नेता व उनके समर्थकों को धीरे धीरे तरीके से अपने पूर्व दो कार्यकाल की तरह इस कार्यकाल मे भी साईड लाईन करके सत्ता सूख से दूर करने मे सफल खिलाड़ी माने जा रहे है। वर्तमान मे जब चुनाव परिणाम के बाद सचिन पायलट अपने आपको मुख्यमंत्री बना हुवा मानकर चल रहे थे। तब जादूगरी के चलते गहलोत ने दिल्ली मे रस्सा कस्सी के मध्य पायलट को पीछे छोडकर मुख्यमंत्री के तौर पर स्वयं घोषित होकर जयपुर मे विधायक नेता की ओपचारिकता पूरी करके राजस्थान के तीसरी दफा मुख्यमंत्री बनने मे कामयाब हो गये।
दिसम्बर 2018 मे सरकार गठित करके सचिन पायलट को उप मुख्यमंत्री व उनके चंद समर्थक विधायकों को मंत्री बनाकर उबलती ज्वाला पर गहलोत द्वारा पानी डालकर ठंडा कर दिया। पायलट सहित उनके समर्थक मंत्रियों के विभाग मे सचिव ऐसे ब्यूरोक्रेट्स को लगा दिया जो गहलोत की अधिक व उनकी कम सूनते थे। जिससे वो खून के घूंट पीकर अंदर ही अंदर मन मसोस कर रहने लगे। जब पानी सर से ऊपर जाने लगा ओर मौका लगा तो पायलट व उनके समर्थक मंत्री-विधायक रुष्ट होकर दिल्ली-गुडगांव जाकर आंख दिखाने लगे तो मुख्यमंत्री गहलोत ने चालाकी से उनको भाजपा से मिलकर सत्ता बदलने की कोशिश करार देने का माहोल बनाकर हाईकमान को पूरी तरह विश्वास मे लेकर पायलट को उपमुख्यमंत्री व प्रदेश अध्यक्ष पद से उनके समर्थकों को मंत्री व पार्टी पदो से बर्खास्त कराने मे सफल हो गये। उन सभी को करीब 18-महीने सत्ता से दूर रखकर सरकार चलाई फिर पायलट को छोड़कर बर्खास्त मंत्रियों को मंत्री तो बनाया पर कम भार वाले विभागों का मंत्री बना दिया। मूल विभागों को तोड़कर उनके साथ लगे अपने खास राज्य मंत्रियों को लगाकर उनका असर कम कर दिया। साथ ही उनके विभाग मे सचिव के तौर पर उन ब्यूरोक्रेट्स की नियुक्ति करदी जो मुख्यमंत्री गहलोत के अति विश्वसनीय माने जाते है।
आम मतदाताओं मे गहलोत की पकड़ चाहे कमजोर व उनका भाषण प्रभावशाली ना हो। लेकिन प्रदेश मे राज्य व जिला एवं ब्लॉक स्तर पर दिखते कांग्रेस नेता व कार्यकर्ता आज भी गहलोत की गिरदावली बांचते रहने के साथ साथ उनके यहां चक्कर लगाते नजर आते है। पायलट के प्रदेश दौरे मे चाहे भीड़ जूटती होगी पर अधीकांश विधायक व कांग्रेस नेता उनसे खुले मे मिलने से आज भी कतराते है। वो मानकर चलते है कि गहलोत व पायलट खेमा द्वारा एक दुसरे खेमे पर पूरी नजर रखने के कारण अगर वो पायलट के यहां जाते नजर आये तो वर्तमान सरकार मे सत्ता सूख से उन्हें महरुम होना पड़ सकता है। प्रत्येक राजनीतिक कार्यकर्ता का सत्ता रुख पाना राजनीति मे आने का पहला उद्देश्य माना जाता है।
प्रभावशाली भाषण कला व हिन्दी-अंग्रेजी भाषा का अच्छा ज्ञान होने के बावजूद सचिन पायलट के पास सत्ता की चाबी नही होने के कारण व प्रदेश मे किसी को सत्ता मे हिस्सेदारी दिलवाने मे वर्तमान समय मे गहलोत के मुकाबले किसी भी स्तर पर नही ठहरने के कारण उनकी बजाय कांग्रेस नेता व कार्यकर्ता गहलोत से ही कुछ उम्मीदें बांध कर चल रहा है। अधीकांश लोग मानकर चल रहे है कि गहलोत मुख्यमंत्री पद से हटने वाले नही है। उन्हीं की मंशा मुताबिक राजनीतिक नियुक्तिया होना है तो फिर उन्हीं के कृपा पात्र बनने का प्रयास करते रहे। वही मुख्यमंत्री उन्हें अब तक ललचाये रखा ओर अब धीरे धीरे शुरुआत करके अपने चहतो को नियुक्ति देने लगेंगे।
कुल मिलाकर यह है कि अगले 17-18 महीने बाद प्रदेश पूरी तरह चुनावी मोड पर आ चुका होगा। तबतक मुख्यमंत्री गहलोत अपनी राजनीतिक जादूगीरी के बल पर पायलट व उनके समर्थकों को साईड लाईन करे रखने मे सक्षम नजर आ रहे है। मुख्यमंत्री बची राजनीतिक नियुक्तियो मे से एक एक करने का सीलसीला इसी महीने से शुरू करके उसे अगले तीन चार महीने तक चलाकर नेताओं को ललचाये रखने की स्थिति मे रख सकते है। वहीं विधानसभा व लोकसभा मे हारे उम्मीदवारों मे से अधीकांश नेताओ ने जनता मे जाकर आगामी चुनावों की तैयारी शुरु कर दी है। वही कांग्रेस व सरकार को समर्थन दे रहे सभी विधायक अपनी टिकट पुख्ता मानकर अभी सत्ता का भरपूर आनंद ले रहे है।
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