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राजस्थान की तमाम बकरा-पाडा मंडियां शैक्षणिक क्षेत्र मे चाहे तो बहुत कुछ बडा कर सकती है। उक्त मंडियों को बिरादरी मे बदलाव लाने के लिये अपनी आर्थिक रणनीति बदलने पर विचार करना होगा।


               ।अशफाक कायमखानी।
जयपुर।

                राज्य भर मे करीब करीब जिला व तहसील मुख्यालय पर बकरा-पाडा मंडियों का एक स्थानीय लोगो की बनी एक असरदार कमेटी द्वारा संचालन किया जाता है। जहां पर खाजरु (जानवर) का बेचान व खरीद का कार्य होता है। मंडी मे बेचान व खरीद के लिये आने वाले उक्त जानवरो की खरीद-फरोख्त होने पर प्रत्येक जानवर पर पांच-दस रुपया मंडी को एक बने सिस्टम के तहत आवश्यक रुप से आमद होती है। जिस आमद मे से कुछ रकम तो मंडी रखरखाव व उसके संचालन पर खर्च हो जाती है। कुछ रकम उनके द्वारा संचालित छोटे-बडे शैक्षणिक इदारो पर खर्च होने के बावजूद भी एक अच्छी रकम बचत मे रह जाती बताते है। जिस बचत का स्टुडेंट्स के मयारी हायर ऐजुकेशन व सिविल सेवा की तैयारी पर खर्च करने की मंसूबाबंदी पर अमल किया जाये तो कुछ ही सालो मे मंडी से किसी भी रुप मे जुड़े लोगो मे बडे स्तर पर सकारात्मक बदलाव की बयार बह सकती है।
                  बकरा-पाडा व भेड़ की मंडी मे खरीद-फरोख्त एवं उसके मटन-मीट के कारोबार से जुड़े लोगो को कुरेशी-व्यापारी बिरादरी के नाम से जाना जाता है। जिस बिरादरी मे मयारी ऐजुकेशन का विस्तार जो हो जाना चाहिये था वो अभी तक नही होना दुखदायी साबित हो रहा है। राजस्थान मे जयपुर जोधपुर, कोटा व सीकर सहित कुछ अन्य जगहो की बकरा व पाडा मंडियों मे जानवर की खरीद-फरोख्त अच्छी तादाद मे होती है। जहां से मटन-मीट के अलावा जींदा जानवर राज्य के बाहर एक्सप्रोर्ट करने वाली कम्पनियों तक भी जाता बताते है।
                  उक्त मंडी कमेटियों द्वारा कहीं दीनी तालिमी केंद्र संचालित किये जाते है। तो कुछ जगह बाकायदा हिन्दी माध्यम की स्कूल तक भी जनहित मे बीना फीस या बहुत कम फीस पर संचालित की जा रही है। लेकिन अंग्रेजी माध्यम के शिक्षा केंद्र संचालित होने की जानकारी अभी तक कही से भी नही मिल पा रही है। जबकि अंग्रेजी भाषा की अहमियत को आज किसी भी रुप मे नकारा नही जा सकता। इसके अलावा उक्त शैक्षणिक केंद्रों मे हिंदी-अंग्रेजी-संस्कृत सहित अन्य भाषाओं को समझकर पढाने का इंतजाम कायम होगा। लेकिन जिस कुरान ए पाक को मूल भाषा मे पढने व समझने के लिये अरबी को भाषा के तौर पर पढाने का इंतजाम नही होने से अधीकांश लोग समझ ही नही पाते है कि उनकी धार्मिक पवित्र किताब मे मुकम्मल इंसानियत व जीवनपद्धति के लिये क्या लिखा गया है। अधीकांश लोग अनेक दफा उन कथित धार्मिक विद्वानों की बताई बातो पर विश्वास कर लेते है। जिनका पवित्र किताब मे बताये दिशा-निर्देश से वास्ता तक नही होता है। अगर उक्त तरह के संचालित शैक्षणिक केंद्रों मे अन्य भाषाओं को समझकर पढने के साथ साथ अरबी भाषा को भी समझकर पढने का इंतजाम हो जाये तो परिणाम बेहतर आ सकते है।
                   मंडी कमेटियां को चाहे विस्तारपूर्वक ना सही पर कम से कम प्रत्येक मंडी की तरफ से अपनी कुरेशी बिरादरी से हर साल पांच-दस स्टुडेंट्स को दिल्ली या अन्य उचित उपलब्ध शहर के नामी कोचिंग संस्थान मे सिविल सेवा के तैयारी के लिये मंडी के खर्च पर भेजने का इंतजाम करने पर विचार करना चाहिए। बिजनेस मेनेजमेंट-चार्टेड एकाऊंटटेंट- मेडिकल- इंजीनियरिंग क्षेत्र की टोप कालेज मे प्रवेश पाने की तैयारी के लिये व बिरादरी मे इस तरफ बेदारी लाने के लिये आर्थिक मदद स्टूडेंट्स व सोशल एक्टिविस्ट को करने का तय करना होगा। अगर राज्य की उक्त सभी बकरा व पाडा मंडियां चाहे सबके लिये ना सही पर कम से कम शुरुआती दौर मे अपनी कुरेशी बिरादरी को शैक्षणिक तौर पर ऊंचले पायदान पर लाने के लिये अपनी रणनीति मे सकारात्मक बदलाव लाने का तय करना ही होगा। अगर ऐसा नही हो पाया तो जिम्मेदारो को अगली पीढी कभी माफ नही कर पायेगी।

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