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एआईएमआईएम सदर सांसद ओवैसी के राजस्थान मे उम्मीदवार खड़े कर चुनाव लड़ने के ऐहलान से कुछ मुस्लिम तंजीमे पेशोपेश मे।

 



                   ।अशफाक कायमखानी।
जयपुर।

               कहने को चाहे कोई अपने आपको राष्ट्रीय व राज्य स्तरीय संगठन बताये लेकिन हकीकत मे राज्य मे मात्र जयपुर शहर तक कागजों या अखबारों तक सक्रिय रहकर सत्ता के साथ पर्दे के पीछे सांठगांठ करने वाली कुछ मुस्लिम तंजीमो के सामने एआईएमआईएम के आने से पेशोपेश के हालात बन गये है कि वो अब मुस्लिम समुदाय के नाम पर सत्ता के शीर्ष से गलबहियां कैसे कर पायेगे। एक तरफ कुछ सेक्यूलर दल ओवैसी के राजस्थान मे एआईएमआईएम द्वारा उम्मीदवार खड़े करने की घोषणा से बैचेन है वही सत्ता के शीर्ष के साथ समय समय पर गलबहियां रहने वाले वो मुस्लिम तंजीमे व उनके कुछ लोग भी खासे पेशोपेश मे नजर आ रहे है कि ओवैसी अब उन्हीं मुद्दों को उठायेंगे जिन मुद्दों पर वो पर्दे के पीछे कुछ अपने हिसाब से सत्ता शीर्ष के साथ तय करते है।
               पीछले साल एक जवलंत मुद्दे को लेकर कुछ मुस्लिम तंजीमो व कथित मुस्लिम लीडरान ने जयपुर मे एमडी रोड़ स्थित मुस्लिम मुसाफिर खाना से रैली निकलकर प्रदर्शन करने का ऐहलान किया था। लेकिन जब लगा कि मुस्लिम समुदाय उक्त जज्बाती मुद्दे को लेकर रैली मे भारी तादाद मे जमा होगा तो उन्होंने अचानक सत्ता के शीर्ष के इशारे पर स्थान बदलकर रामनिवास बाग से रैली के रवाना होने का ऐहलान कर दिया। सत्ता की चापलूसी की हद तो तब हो गई जब मुख्यमंत्री गहलोत सहित अनेक कांग्रेस नेताओं की अगुवाई मे रैली निकालकर एक तरह से उस रैली को कांग्रेस की रैली का रुप दे दिया था। तब के रैली आयोजन से जुड़े कुछ लोग अभी कल सांसद ओवैसी से होटल मे मिलकर अपनी फोटो सोशल मीडिया पर वायरल करने से भी चुके नही है।
                    हालांकि किसी एक जाति-बिरादरी के नाम से चुनाव कभी जीते नही जाते है। कभी कभार कुछ सीटे जीत भी गये तो वो स्थायी नही होता है। लेकिन एआईएमआईएम जैसे दल चुनाव लड़ने को राज्य मे आते है तो पक्ष-विपक्ष पर हित व अहित के लिये एक प्रैसर बनता है। जो प्रैसर उन मतदाताओं की अहमियत को जरा बढा देता है। वहीं चुनाव लड़ने के शौकीन या फिर चुनाव के बहाने अपने आपको हाईलाइट करके कुछ अपने निजी या सामुहिक हित साधने वालो को पहले के मुकाबले ओर अवसर मिल जाते है। ओवैसी के एआईएमआईएम के निशान पर उम्मीदवार खड़े कर अपनी पतंग उडाने व अनेक जगह दुसरो की पतंग काटने मे सहायक बनने का असर सबसे अधिक अपने आपको सेक्यूलर बताने वाले दलो पर होता है। मुख्यमंत्री गहलोत इसके स्वयं भूक्तभोगी रहे है। 1989 के लोकसभा चुनाव मे जोधपुर से जब गहलोत कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे तब उनके सामने इंसाफ पार्टी के बैनर पर अब्दुल गनी सिंधी के चुनाव लड़ने पर गहलोत को हार का मचा चखना पड़ा था। उस हार से सबक लेकर आगे लड़े सभी विधानसभा चुनावो मे गहलोत ने अपने चुनाव मे किसी मुस्लिम को उम्मीदवार बनने नही दिया। कभी कभार किसी ने पर्चा भर भी दिया तो उसको वापस करवा दिया। साथ ही अब्दुल गनी को तत्तकालीन समय मे चुनाव लड़वाने मे प्रमुख भूमिका निभाने वाले विशेष ग्रूप से उस चुनाव मे मात खाने के बाद से लेकर आजतक गहलोत ने दोस्ती बना रखी है।
                 हालांकि राजस्थान मे जमात ए इस्लामी की सियासी तंजीम वैलफेयर पार्टी आफ इण्डिया व एक अन्य एसडीपीआई नामक राजनीतिक दल कार्यरत है। जिसमे से कोटा रिजन मे एसडीपीआई कुछ विधानसभा सीटो पर चुनाव लड़ती है। पर वो अभी तक विधानसभा चुनाव जीत नही पाई है।
              कुल मिलाकर यह है कि एआईएमआईएम के राजस्थान मे आने को कुछ मुस्लिम नेता समुदाय के राजनीति की मुख्यधारा से अलग थलग पड़ने की सम्भावना जता कर वजूद पर सवालिया निशान लगाते है। जबकि कुछ सामाजिक व राजनीतिक लोग इसे राजनीति मे प्रैशर पोलटिक्स के लिये प्रैसर ग्रूप के रुप मे उपयोग मे आना बता रहे है। खासतौर पर मुस्लिम समुदाय का युवा तबका कांग्रेस को उन्हें वोटबैंक के रुप मे इस्तेमाल करना मात्र बता रहे है। ऐसे हालात मे वो एआईएमआईएम का राजस्थान मे आना व तेज तर्रार व राजनीतिक सूझबूझ रखने वाले नेता ओवैसी के राजस्थान मे आना एक नया विकल्प मान रहे है।

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