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राजस्थान का मुस्लिम समुदाय उच्च सेवा से सेवानिवृत्त अधिकारियों की काबिलियत व उनके अनुभव का दोहन करने मे अभी तक सफल नही हो पा रहा है।


                 ।अशफाक कायमखानी।
जयपुर।
                  राजस्थान के मुख्य सचिव पद से सेवानिवृत्त अधिकारी सलाऊद्दीन अहमद खान , राजस्थान हाईकोर्ट से सेवानिवृत्त जस्टिस मोहम्मद असगर अली चोधरी व जस्टिस भंवरु खान, आईजी पुलिस पद से सेवानिवृत्त मुराद अली अब्रा, नीसार अहमद फारुकी, कुवर सरवर खान, राजस्थान लोकसेवा आयोग के चैयरमैन रहे आईपीएस हबीब खान गौरान,  भारतीय प्रशासनिक सेवा से सेवानिवृत्त अधिकारी एम एस खान, ऐ.आर खान, मोहम्मद हनीफ खान एवं अशफाक हुसैन जैसे अनेक सेवानिवृत्त अधिकारियों का राजस्थान का मुस्लिम समुदाय शेक्षणिक सहित अनेक क्षेत्रो मे उनकी काबलियत व अनुभव का दोहन करने मे अभी तक सफल नही हो पा रहा है। जिसके कारण अनेक हो सकते है लेकिन उक्त सेवानिवृत्त अधिकारियों सहित अन्य अधिकारियों की सेवानिवृत्ति के बाद उनकी योग्यता व अनुभव का दोहन अगर समय समय पर किया जाता तो शेक्षणिक तौर पर पिछड़े व सरकारी सेवाओं से एक तरह से हट चुके समुदाय की दशा व दिशा प्रदेश मे आज निश्चित बदली बदली नजर आती। उक्त अधिकारियों मे मात्र एक अधिकारी ऐ.आर खान ने सामाजिक संस्था बनाकर अपने स्तर पर कुछ सामाजिक काम जरूर कर रहे है।
              उक्त चंद सेवानिवृत्त अधिकारियों के अलावा राज्य स्तर की प्रशासनिक व पुलिस एव न्यायिक सेवा से सेवानिवृत्त अधिकारियों की भी प्रदेश मे लम्बी सूची मोजूद है। जिनकी काबलियत व उनके सेवाकाल मे पाये अनुभवों का लाभ समुदाय उठाने मे अभी तक किसी भी स्तर पर कामयाब नही हो पा रहा है। उक्त सेवा के अलावा भारतीय फौज के सेवानिवृत्त अधिकारियों की भी प्रदेश भर मे लम्बी सूची मोजूद है। लेकिन उनके मुकाबले फौज से सिपाही व सुबेदार पद से सेवानिवृत्त कर्मियों मे से कुछ कर्मी गांवो-ढाणियों मे युवाओं को सुबह सवेरे निस्वार्थ भाव से फौज मे भर्ती की शारिरीक तैयारी कराते जरुर देखे जा सकते है। जिनकी मेहनत का ही परिणाम है कि पीछले सात-आठ साल मे युवाओं का फौज मे जाने का रुझान बढा है।
                 हालांकि उच्च स्तर की सेवा से सेवानिवृत्त प्रदेश मे निवास कर रहे अधिकारियों की काबलियत व उनके सेवाकाल के अनुभवों का दोहन करने मे समुदाय अभी तक सफल नही होने के अनेक कारण गिनाये जाते है। जिनमे दो प्रमुख कारण यह बताये जाते है कि अवल तो उक्त अधिकारी सेवानिवृत्ति के तूरंत बाद सरकार से अन्य पदो पर पदस्थापित होने की कोशिश मे लगा रहता है। दूजा यह है कि प्रदेश मे ऐसी संस्था या समुदाय स्तर पर कोई निजाम कायम नही है जो सेवानिवृत्त होने वाले अधिकारियों से सम्पर्क साद करके उनको प्रेरित करके उनके लिये मिल्ली खिदमात का मैदान कायम कर सके। जिस मैदान मे वो बीना किसी आर्थिक नुकसान उठाये अपनी काबलियत व अनुभवों के बल पर सम्मान के साथ खुले तौर पर खेलकर फायदा पहुंचा सके। समुदाय के अधिकांश शैक्षणिक संस्थानों पर कम पढे लिखे लोगो का पहले से मजबूत कब्जा होता है। वो किसी भी सूरत मे इन सेवानिवृत्त अधिकारियों का दखल या किसी भी रुप मे  इंतजामिया मे प्रवेश पाने के खिलाफ मोर्चा खोलने से कभी पीछे हटने को तैयार नही होते है। 









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