शेखावाटी का मुस्लिम समुदाय शिक्षा-फिजुलखर्ची व सूद को लेकर किधर जा रहा है।



              
जयपुर। ।अशफाक कायमखानी।
                    हालांकि भारत भर के मुस्लिम समुदाय के अधीकांश परीवारों की शिक्षा-फिजुलखर्ची व सूद को लेकर इस्लामी आदेशो के विपरीत जीवनशैली अपनाने के बन चुके तरीके की तरह शेखावाटी का मुस्लिम समुदाय भी उनमे घुलमिल चुका है। लेकिन पीछले कुछ सालो से बनते बिगड़ते हालातो पर नजर दोड़ाये तो हालात चिंताजनक स्थिति की चरम सीमा को छुने लगा है।
                इसी महीने मैं अपने बच्चे का दिल्ली की एक यूनिवर्सिटी मे दाखले के लिये मुस्लिम समुदाय की एक कामकाजी बिरादरी के मौजीज शख्स व मेहरबान साथी के जो अपने भतीजे को भी वही प्री टेस्ट दिलवाने दिल्ली गये, उन्हीं के साथ मै भी गया। उन्हीं के बदौलत उनके रिस्तेदार के यहां रहने व खाने का बेहतरीन इंतजाम भी मिला। प्री टेस्ट देने के बाद व उसी शाम को ट्रैन पकड़ने के पहले मिले समय मे उनके साथ उनकी बिरादरी के कुछ आर्थिक तौर पर ठीक ठाक लोगो के साथ बैठने का मौका मिला। उनके मध्य बैठने को मिले उस डेढ़ घंटे के समय मे उस कामकाजी बिरादरी के लोगो ने केवल ओर केवल बिरादरी के लोगो द्वारा शेखावाटी मे हुई उनकी बिरादरी मे अनेक शादियो मे खाने के अच्छे व कमजोर इंतजाम पर ही चर्चा हुई। इन बातो के अतिरिक्त उन लोगो ने मेहरबान साथी से यहां तक नही पुछा कि तूम किस चीज का टेस्ट दिलवाने आये हो। इसके अतिरिक्त परीक्षा केंद्र पर बच्चों के परीक्षा केंद्र मे जाने पर अन्य अभ्यर्थियों के परिजनों से बात होने पर उन्होंने बडे दुख व चींता का इजहार किया कि आपके राजस्थान के बच्चे इस यूनिवर्सिटी मे दाखले के लिये आते क्यो नही? जबकि सुना है कि वहां के लोगो की आर्थिक स्थिति कुछ बेहतर भी है। मेहरबान साथी ने बच्चों की शिक्षा पर खर्च करने की आदत मे इजाफा करके अपने परिवार मे बनते चिकित्सकों की लम्बी लाईन खींचने के अलावा बच्चों की तालीम के लिये वो सबकुछ कर रहे है, जो आज आवश्यक होता जा रहा है।


                     शेखावाटी जनपद की जाट बिरादरी ने 1980 के बाद अपना पहला कर्तव्य मानकर अपने बच्चों की शिक्षा पर धन खर्च करना शुरू करके आज सबकुछ बदल कर रख दिया है। उन्होंने इसके साथ जगह जगह देवरा बनाने की बजाय स्कूल को देवरा समझ कर उससे वो सबकुछ पाया जो उनके बच्चों के लिये जरूरत थी। इसके विपरीत मुस्लिम समुदाय तंगहाली मे पहले शिक्षा पर खर्च किया करता था। 1980 के पहले मुस्लिम समुदाय का सरकारी नौकरी व शेक्षणिक संस्थाओं मे ठीक ठाक प्रतिनिधित्व था। लेकिन 1980 के बाद से जब अरब मे मजदूरी करने के बाद कुछ पैसा उनके पास आने लगा तो  उनमे शिक्षा पर खर्च करने का चलन कम हुवा ओर शादी-भात- छूछक सहित अन्य रीति रिवाजों पर फिजुलखर्ची बढने लगी।साथ ही पहले बीड़ी व चीलम का कुछ कुछ समुदाय मे चलन मात्र था। अब तो युवाओं व महिलाओं मे गुटखा व खासतौर पर जवानो मे शराब का चलन परवान चढने लगा है।
                 इस्लाम मे सूद के लेन-देन करने के अलावा उसके हिसाब करने की मनाही होने के बावजूद शेखावाटी के मुस्लिम समुदाय के अधीकांश परिवारों तक सूद का कारोबार किसी ना किसी रुप मे पहुंचता नजर आ रहा है। कुछ मुस्लिम सूद के कारोबार को अपना चुके है तो कुछ इस कारोबार मे ऐजेंट की भुमिका अदा करने लगे है।
                 हालांकि शेखावाटी जनपद मे वाहिद चोहान सहित कुछ लोगो ने समुदाय मे महिला शिक्षा को बढाने की भरपूर कोशिश की है। लेकिन इन सबकुछ कोशिशों के बावजूद मुस्लिम समुदाय की पहली प्राथमिकता शिक्षा पर खर्च करने की अभी तक नही बन पाई है। जबकि अन्य मौको पर फिजूलखर्ची की आदत मे लगातार इजाफा हो रहा है। क्षेत्र के समुदाय के लोगो द्वारा हर साल निकलने वाली जकात को पता नही कौन लूटकर लेजा रहा है। अगर जकात का ही ठीक से इंतजाम हो जाये तो शैक्षणिक बदलाव आ जाये। दिल्ली मे कायम "जकात फाऊंडेशन" ने बदलाव लाकर सबकी आंखे खोल दी है।
                 कुल मिलाकर यह है कि कुछ लोग जदीद तालीम का विरोध अपना पेट पालने के लिये विरोध का तांडव करर सकते है। लेकिन कम से कम शेखावाटी के मुस्लिम समुदाय को शिक्षा पर खर्च करने की आदत को क्षेत्र की जाट बिरादरी को सामने रखकर अपनाने पर विचार करना चाहिए। शिक्षा ही बदलाव की कुंजी मानी जाती है।

                                    शेखावाटी के युवा अरब मे मजदूरी करते हुये।

                              शेखावाटी के मजदूर अरब मे मजदूरी के समय मिले समय मे आराम करते हुये।


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