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राजस्थान की देहाती मुस्लिम बिरादरियों को अपने अस्तित्व के लिये शिक्षा को हथियार बनाकर आगे बढने पर विचार करना होगा। आला तालीम व दक्षता की कमी के कारण मुस्लिम बहुल गावों के गुवाड़ (चोपाल) पर बेरोजगार युवकों के झूंड के झूंड बैठे नजर आयेगे।



             ।अशफाक कायमखानी।
जयपुर।

            राजस्थान के शेखावाटी, मारवाड़ व मेवात एवं हाड़ोती मे मूल रुप से रहने वाली कायमखानी, सिंधी मुस्लिम, मेव, व खेलदार-गद्दी बिरादरियों को फिर से अपने खानदानी काम खेती व सरकारी सेवा को अपनाते हुये फिर से अपना अस्तित्व कायम करने के लिये शिक्षा को हथियार बनाकर आगे बढने पर गम्भीरता से विचार करना होगा। घर घर से आला तालीम याफ्ता बच्चो को तैयार करना होगा जो आज के मुकाबलाती दौर मे अपनी नैया को आसानी से नैतिकता के साथ पार लगाने मे सक्षम हो पाये।
              उक्त देहाती बिरादरियों के अलावा खासतौर पर शहरो मे रहने वाली मुस्लिम बिरादरियां अपने बच्चों को पेरेंटल काम से जोड़कर अपनी आजीविका चलाने मे अधिक विश्वास करती है। अगर यह बिरादरियां भी अपने पेरेंटल काम से बच्चों को जोड़े रखने के साथ साथ उनको अच्छी तालीम से जोड़ दे तो उनके पेरेंटल काम मे आवश्यकता व समयानुसार उचित बदलाव आकर या लाकर ऊपरी सीढी पर आसानी से चढा जा सकता है।
              राजस्थान के अलवर व भरतपुर जिलो मे खासतौर पर रहने वाली मुस्लिम मेव बिरादरी के बच्चे जेहनी तौर पर काफी मजबूत होने के साथ साथ मेहनतकश एवं डेरिंगबाज होते है। लेकिन उनकी काबलियत का उपयोग जहां होना चाहिए वहां ना होकर अन्य जगह हो रहा है। शिक्षा की कमी व समय पर दिशा तय नही होने के कारण अधीकांश मेव बच्चे दिशाहीन होकर अपनी योग्यता का उपयोग क्राइम मे करने लगते है। जिसके चलते उनकी भोतिक आवश्यकताओं मे भारी इजाफा होने लगता है। इसी के चलते कुछ समय बाद उनकी खेती की जमीने ओनेपौने दामो मे बिकने लगती है। कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगाते लगाते एक दिन वो जमीन पर आकर ऐसे गिरते है, जहां से उठ पाना बहुत कठिन माना जाता है।
               खासतौर पर शेखावाटी के सीकर, चूरु, झूंझुनू जिलो के अलावा नागौर जिले मे रहने वाली मुस्लिम कायमखानी बिरादरी आज भी इस बहम व खुश फहमी मे जी रही है कि उनमे अन्य मुस्लिम बिरादरियों के मुकाबले शिक्षा व सरकारी सेवा का प्रतिशत जरा ठीक है। लेकिन उनको जरा इस तरफ झांकना होगा कि एक एक करके उनके अधिकारी व कर्मचारी सेवानिवृत्त हो रहे है एवं नये सेवा मे उतने आ नहीं रहे है। बीस-तीस साल पहले के समय की आबादी के तनासूब के मुकाबले अब की आबादी के तनासूब मे कितने बच्चे अधिकारी-कर्मचारी व पुलिस-फौज सेवा मे जा रहे है। एक एक गावं मे हजार-दो हजार लड़के लड़की दसवीं या बारवीं पास करके लड़के गुवाड़ की व लड़कियां घर की शोभा बढाते नजर आ जाते है। रीट-नीट-जेईई सहित पब्लिक सर्विस कमीशन व कर्मचारी चयन बोर्ड की विभिन्न सर्विसेज की तैयारी करने कितने लोग विभिन्न कोचिंग मे कोचिंग पा रहे है। इस तरफ झांककर मुल्यांकन कर लिया जाये तो हकीकत सामने आ जायेगी। विदेश मे मजदूरी करने जाने के चांसेज अब काफी धीमे पड़ चुके है। वहां भी ट्रेंड (दक्ष) व शिक्षित मजदूर की आवश्यकता हो चुकी है। वहां अब आला तालीम याफ्ता लोगो की ही जरूरत है। कायमखानी बिरादरी को गांवों मे साथ रहने वाली जाट बिरादरी को मध्य नजर रखकर 1980 के बाद से लेकर अबतक के चालीस साल के उतार-चढाव  पर मंथन करना चाहिए। ओर देखना चाहिए की शिक्षा की ताकत पर कौन कहा से कहा उपर गया ओर कोन उपर से नीचें आया।
              इसी तरह सवाईमाधोपुर जिले मे व उसके आसपास क्षेत्र मे रहने वाली देहाती परिवेश वाली खेलदार व गद्दी बिरादरियों के हालात भी इसी तरह के है। उनका भी राजस्थान प्रशासनिक सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी अबरार अहमद व अलाऊद्दीन आजाद जैसे कुछ परिवारों को छोड़कर बाकी का शैक्षणिक प्रतिशत बढ नही पा रहा है। खेतीबाड़ी के धंधे से आज नोजवान मुहं मोड़ने लगा है। एक दो परिवार के बच्चे कभी कभार प्रशासनिक सेवा मे चयनित हो रहे है। इसी तरह बाडमेर, जैसलमेर, जोधपुर व बीकानेर जिलो के सीमावर्ती क्षेत्र मे रहने वाली मुस्लिम सिंधी बिरादरी के हालत भी शैक्षणिक व आर्थिक तौर पर ठीक नही माने जा सकते है। उनका सरकारी सेवाओ के अतिरिक्त अन्य निजी सेवाओं मे प्रतिशत बढने का नाम नही ले रहा है।
                      हालांकि राजस्थान का पूरा मुस्लिम समुदाय ही शैक्षणिक तौर पर काफी पीछड़ा है। लेकिन इसकी शहरो मे रहने वाली कामकाजी बिरादरी अपनी आजीविका आसानी से कमा लेती है। लेकिन इनके फाइनेंस मेनेजमेंट मे कमजोर होने के कारण इनकी आर्थिक हालत सुधरने का नाम नही ले रही है। फिर भी आज के समय देहाती बिरादरी के मुकाबले शहरी बिरादरी की रोजाना की आय हाथो से पेरेंटल काम करने के कारण कुछ ठीक है। इसी तरह देहाती बिरादरी के जो लोग स्वयं हाथो से कृषि कार्य करते है उनकी आमदनी व जीवनचर्या ठीक है। जो स्वयं खेती नही करते बल्कि मजदूरों से काम करवाते है वो नुकसान मे है।
                उक्त बिरादरियों मे से तुलनात्मक तौर पर देखे तो कायमखानी बिरादरी मे गलर्स ऐजुकेशन ठीक है। उनमे भी झूंझुनू जिले की कायमखानी बिरादरी की लड़कियों मे शिक्षा व शेक्षणिक स्तर अच्छा है।विभिन्न तरह की सरकारी सेवा के साथ    साथ आर्मी व प्रशासनिक सेवाओं मे भी झूंझुनू की बेटियों ने स्थान बनाया है। झूंझुनू के नुआ गांव की इशरत खान ने वायुसेना व फरार खान ने आयकर विभाग एवं जाबासर गावं की रुखसार खान ने नेवी मे अधिकारी बनकर बडा ओहदा पाया है। इसी तरह डीडवाना के बेरी गावं की असलम खान भारतीय पुलिस सेवा की पहली राजस्थान की मुस्लिम महिला अधिकारी है। यानी उक्त चारो कायमखानी महिलाएं अपने अपने फिल्ड की राजस्थान से पहली मुस्लिम अधिकारी महिलाएं है। शेखावाटी व डीडवाना के अलावा भीलवाड़ा, जोधपुर, बीकानेर, हनुमानगढ़ व जयपुर जिले मे भी कायमखानी मुस्लिम रहते है। उनका शैक्षणिक प्रतिशत अन्य मुस्लिम बिरादरियों से तो ठीक है लेकिन उसे संतोषजनक कतई नही कहा जा सकता। आबादी के तनासूब मे यह आंकड़ा ऊंट के मुहं मे जीरे की कहावत सिद्ध करता है।
          कुल मिलाकर यह है कि राजस्थान के मुस्लिम समुदाय की अगुवा माने जाने वाली देहाती बिरादरी मेव, कायमखानी, सिंधी, गद्दी व खेलदार नामक बिरादरियों के कर्मचारियों अधिकारियों के सेवानिवृत्ति होने के मुकाबले नये तौर पर अधिकारी व कर्मचारी का सेवा मे नही आने का सीलसीला यूही चला तो अगले दस साल मे मुस्लिम अधिकारी-कर्मचारी प्रदेश मे ढूढे नही मिलेगे।ऐसे हालात बनने से पहले सतर्क होकर इस तरफ गम्भीरता से विचार करते हुये सकारात्मक रास्ता अपना लेना होगा। हरियाणा मे जिस तरह गावो के गुवाड़ मे कुवारे लड़को के झूंड के झूंड बैठे नजर आते बताते है उसी तरह राजस्थान के मुस्लिम बहुल गावो मे आला तालीम की कमी के कारण बेरोजगारों के झूंड के झूंड बैठे नजर आयेगे

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