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पंजाब मे कांग्रेस का मुकाबला शिरोमणि अकाली दल बसपा से समझोता करके करेगी। - जतिन के भाजपा मे आने की उपलब्धि का बखान करने पर मुकुल राय के भाजपा छोड़ने से पानी फेरा।

 
                ।अशफाक कायमखानी।
जयपुर।

                यूपी मे पूर्व केन्द्रीय मंत्री जतिन प्रसाद को भाजपा मे शामिल करके मीडिया का एक तबका भाजपा की बडी उपलब्धि व ब्राह्मण मास्टर स्ट्रोक चलना बता रहा था। तो बंगाल मे 2017 मे तृणमूल छोड़कर भाजपा मे जाकर वहां भाजपा को खड़ा करने वाले मुकुल राय का भाजपा छोड़कर फिर से तृणमूल मे शामिल होने को नहले पर दहला मारने से भाजपा नेताओं के बगले झांकने जैसे हालात बन गये है। 2022 की शुरुआत मे होने वाले विधानसभा चुनाव वाले प्रदेशो मे से एक पंजाब की वर्तमान सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी का मुकाबला करने के लिये प्रमुख विरोधी दल शिरोमणि अकाली दल अब भाजपा के बजाय बसपा से समझोता करके चुनाव लड़ने जा रही है।
             केन्द्र सरकार द्वारा कृषि सम्बंधित तीन काले कानून बनाने को लेकर भाजपा गठबंधन से अलग होने वाला अकाली दल अब भारत मे सबसे अधिक अनुसूचित जाति वाले प्रदेश पंजाब मे बसपा से समझोता करके चुनाव लड़ने का फारमूला लगभग तय कर चुकी है। कुल 117 विधानसभा सीटो मे से 18-20 बीस सीटे बसपा लिये छोड़कर चुनाव लड़ने का मानस बादल परिवार बना चुका है।
             बसपा संस्थापक काशीराम की जन्म व कर्मभूमि पंजाब होने के कारण वहा बसपा का मतदाता आज भी किसी ना किसी रुप मे कायम है। फरवरी-2017 को हुये विधानसभा चुनाव मे बसपा को एक भी सीट नही मिली थी। 2017 के आम चुनाव मे कांग्रेस ने 77 सीट जीतकर पूरे विपक्ष को मात्र 40 सीट पर समेट कर बडे अंतर से सरकार बनाई थी। विपक्ष मे आम आदमी पार्टी को 20, अकाली दल को 15, भाजपा को मात्र 3 सीट, व लोक इंसाफ पार्टी (LIP) को-2 सीट मिली थी।
                हालांकि भाजपा से अकाली दल के अलग होने के बाद वहां भाजपा का पंजाब मे खाता खुलना नामुमकिन है। जबकि किसान आंदोलन ने पंजाब से भाजपा की जड़े उखाड़ने का पुख्ता बंदोबस्त कर दिया बताते है। किसान आंदोलन से पंजाब मे सबसे अधिक फायदा कांग्रेस को हुवा है।
           कुल मिलाकर यह है कि सात महीने बाद पंजाब मे होने वाले आम विधानसभा चुनाव मे केप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली सरकार के अच्छे काम काज का उनकी पार्टी कांग्रेस को फायदा मिलेगा। वहीं भाजपा का जीरो पर आऊट होना लगभग तय बताया जा रहा है। वही आम आदमी पार्टी की स्थिति भी पहले से अच्छी नही बताई जा रही है।

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