बंगाल विधानसभा चुनाव मे टीएमसी व भाजपा मे कड़ा मुकाबला होने के हालात बने। - आवेसी की एआईएमआईएम की राह कठिन पर अब्बास सिद्दीकी का सेक्युलर फ्रंट असर दिखायेगा।
।अशफाक कायमखानी।
जयपुर।
हालांकि बंगाल विधानसभा चुनाव की तारीख का अभी ऐहलान नही हुवा है। लेकिन वहा चुनावों को लेकर ममता की पार्टी टीएमसी व भाजपा के मध्य जंग छिड़ी हुई है। भाजपा ने ममता पर दवाब बनाने के लिये टीएमसी नेताओं को भाजपा जोईन करवाने का अभियान सा चलाने के अलावा वो सभी तरह के हथियार अपना रही है जो चुनाव जीतने के लिये राजनीति मे आज आवश्यक माने जाने चले है।भाजपा के भारी दवाब व प्रचार के वावजूद मुख्यमंत्री ममता अभी तक दबाव मे आती नजर नही आ रही है। वो उसी आत्मविश्वास से भाजपा की चालो का मुकाबला करते हुये अपने मतो को सुरक्षित रखने लगी हुई है।
बिहार चुनाव मे एआईएमआईएम के पांच विधायक जीतने से उत्साहित होकर सांसद असदुद्दीन आवेसी बंगाल विधानसभा चुनाव लड़ने का कह कर बंगाल की फूरफरा शरीफ के अब्बास सिद्दीकी के पास गये ओर उनके नेतृत्व मे चुनाव लड़ने की कह कर उनके साथ आने की अपील की। बंगाल के मतदाताओं का अलग तरह का मिजाज होने व उर्दू भाषियों से अलग रुख अपनाने के मिजाज को भांप कर अब्बास सिद्दीकी ने आवेसी के साथ आने की बजाय स्वयं ने अलग से सेक्युलर फ्रंट नामक पार्टी बनाकर चुनाव लड़ने का ऐहलान करके आवेसी से अपील की कि वो मोलाना बदरुद्दीन अजमल के लिए आसाम व मुस्लिम लीग के कारण केरल मे चुनाव लड़ने नही जातै रहे है उसी तरह अब्बास सिद्दीकी की सेक्युलर फ्रंट के कारण वो बंगाल चुनाव लड़ने नही आये। इसका जवाब अभी तक आवेसी ने नही दिया है कि वहा एआईएमआईएम चुनाव लड़ेगी या फिर अड़तीस साला अब्बास सिद्दीकी के सेक्युलर फ्रंट के लिये वो बंगाल फ्री छोड़ देगे।
बंगाल के गरीब व अनपढ एवं कम पढे लिखे मुसलमानों पर फूरफरा शरीफ दरगाह की मान्यता व पकड़ काफी मजबूत मानी जाती है। इसीलिए मुस्लिम बहुल सीमावर्ती जिलो के ऐसे मतदाताओं पर अब्बास सिद्दीकी के सेक्युलर फ्रंट की पकड़ मजबूत होने के कारण उनसे अनेक दल गठजोड़ करने मे लगे है। माना जा रहा है कि मतो का बिखराव रोकने के लिये वामपंथी व कांग्रेस एक साथ गठजोड़ करके चुनाव लड़ेंगे।देखना होगा कि सिद्दीकी का वामपंथी दलों व कांग्रेस के बन रहे गठजोड़ से समझोता होगा या फिर टीएमसी से कुछ सीट लेकर उससे गठजोड़ होता है।
टीएमसी के अनेक नेताओं को भाजपा तोड़ने मे कामयाब होने के बावजूद वो अभी तक ममता के जनाधार को कमजोर नही कर पाई है। दो साल पहले हुये लोकसभा चुनावों मे कांग्रेस का अधीकांश मतदाता भाजपा के पक्ष मे मतदान कर गया था। लेकिन इस विधानसभा चुनाव मे कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ने की बजाय वामपंथी दलो के साथ गठजोड़ करने जा रही है। जिसके चलते ममता व भाजपा से नाराज मतदाताओं को एक नया विकल्प मिलेगा। सांसद आवेसी के बंगाल मे नही चलने के अनेक कारणो मे एक प्रमुख कारण यह बताते है कि वहां के मुस्लिम समुदाय मे बंगालियत व बंगाली भाषा काफी भारी है। उनकी उर्दू से खास मोहम्मद नही है। जबकि आवेसी सलील उर्दू बोलने के साथ साथ उर्दू भाषी शहर हैदराबाद से तालूक रखते है। उर्दू भाषा को लेकर बंगलादेश अलग देश बना था। वही टीस आज भी बंगाली मुस्लिम समुदाय मे पाई जाती है।
2016 मे 4 अप्रेल से 5 मई के मध्य छ चरणो मे हुये बंगाल विधानसभा चुनाव मे कुल 294 सीट मे से टीएमसी को 211 व लेफ्ट+कांग्रेस को 76 व भाजपा को मात्र 03 सीट मिली थी। अकेली कांग्रेस को देखे तो उसे 44 सीट व गोरखा जनक्रान्ति मोर्चे को भाजपा के बराबर 03 सीट मिली थी। निर्दलीयों के खाते मे मात्र एक सीट आई थी। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव मे भाजपा ने बडा कमाल करके दिखाया। कुल 42 लोकसभा सदस्यों वाले बंगाल मे भाजपा के 2014 मे भाजपा के मात्र 2 सदस्य जीते थे। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव मे 2 से बढकर भाथपा की संख्या 18 हो गई एवं टीएमसी के 2014 मे जीते 34 सदस्यों के मुकाबले 2019 मे 22 सदस्य ही जीत पाये।
बंगाल की राजनीति के जानकार बताते है कि वाम सरकार के समय संघ परिवार वहां अधिक सक्रिय रहकर काम नही कर पा रहा था। लेकिन 2011 से संघ परिवार ने बंगाल मे अपना दायरा बढाना शुरू किया। पहले वहा बजरंग दल की मात्र 34 इकाइयां गठित थी जो अब बढकर दस हजार से अधिक इकाइयां पुरे बंगाल मे गठित हो चुकी है। वामपंथियों के कमजोर होते ही 2011 से भाजपा व उसके पेरेंटल संगठनों ने वहां जबरदस्त मेहनत की। जिसका ही परिणाम है कि आज भाजपा मुकाबले मे प्रमुख दल बन गया है।
कुल मिलाकर यह है कि बंगाल विधानसभा चुनाव की तारीख शीघ्र घोषित होने वाली है। लेकिन इससे पहले ही चुनाव को लेकर खासते पर भाजपा व टीएमसी के मध्य घमासान मचा हु्वा है। वामपंथी व कांग्रेस के मध्य गठबंधन होना तय माना जा रहा है। वहीं आसाम मे मोलाना बदरुद्दीन अजमल की पार्टी एआईयूडीएफ की तरह फुरफूरा शरीफ दरगाह के अब्बास सिद्दीकी द्वारा बनाये गई पार्टी सेक्युलर फ्रंट का गठबंधन वामपंथी व कांग्रेस गठबंधन से होता है या फिर एनवक्त पर टीएमसी से होता है। अगर सेक्युलर फ्रंट अकेला चुनाव लड़ता है तो मतो का बिखराव होने से भाजपा को फायदा होगा। इतना सबकुछ होने के बावजूद आज भी धरातल पर ममता की पार्टी टीएमसी भारी नजर आ रही बताते है।
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