हाईकोर्ट के निर्देश के अनुसार अब अपात्र अफसर नहीं लग सकेंगे निकायों में आयुक्त। विशेष परिस्थिति में भी 15 दिन से अधिक कार्यभार नहीं


     ।अशफाक कायमखानी।
जयपुर।

           राजस्थान उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण व्यवस्था दी है कि अपात्र अधिकारी निकायों में आयुक्त नहीं बन सकेंगे। केवल राजस्थान नगर पालिका सेवा (प्रशासनिक एवं तकनीकी) नियम-1963 के अनुसार आयुक्त के रूप में परिभाषित योग्यताधारी को ही नियुक्त किया जा सकेगा।
          न्यायाधीश दिनेश मेहता ने याचिकाकर्ता श्रवणराम एवं अन्य की ओर से दायर याचिका की सुनवाई के बाद कहा कि किसी विशेष परिस्थिति में आयुक्त से इतर किसी व्यक्ति को कार्यभार देने की अपरिहार्यता हों, तो यह अवधि पंद्रह दिन से ज्यादा की नहीं होगी।
       याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता कुलदीप माथुर ने कहा कि याची राजस्थान नगर पालिका सेवा (प्रशासनिक एवं तकनीकी) नियम-1963 के तहत अपेक्षित सेवा व पात्रता के बाद आयुक्त पद पर पदोन्नत हुए थे, लेकिन उन्हें आयुक्त पद पर पदस्थापित नहीं किया गया। जबकि अन्य पदों पर कार्यरत कई व्यक्तियों, जो राजस्थान म्यूनिसिपल सर्विस के अधिकारी नहीं हैं, उन्हें नगर पालिकाओं में आयुक्त का कार्यभार दे दिया गया है। माथुर ने कहा कि भिवाड़ी, भीलवाड़ा, नागौर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, सिरोही, रानी, जालोर, सांचौर और बाड़मेर के शहरी निकायों मे ऐसे ही व्यक्ति आयुक्त के पद पर काबिज हैं।
          एकलपीठ ने अपना मत प्रकट करते हुए कहा कि अपेक्षित पात्रता विहीन लोगों को आयुक्त पद का कार्यभार देने से न केवल याचिकाकर्ताओं के हित प्रभावित होते हैं, बल्कि यह बेहतर नगर पालिका प्रशासन के विपरीत है। कोर्ट ने राज्य सरकार को याचिकाकर्ताओं को अगली सुनवाई से पहले शहरी निकायों में आयुक्त के पद पर पदस्थापित करने के निर्देश दिए हैं।

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