राजस्थान मे गहलोत सरकार के खिलाफ मुस्लिम समुदाय की बढती नाराजगी अब चरम पर पहुंचती नजर आने लगी।

 



                ।अशफाक कायमखानी।
जयपुर।
             हालांकि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा शुरुआत से लेकर अबतक लगातार सरकारी स्तर पर लिये जा रहे फैसलो मे मुस्लिम समुदाय को हिस्सेदारी के नाम पर लगातार ढेंगा दिखाते आने के बावजूद कल जारी भारतीय प्रशासनिक व पुलिस सेवा के अलावा राजस्थान प्रशासनिक व पुलिस सेवा की जम्बोजेट तबादला सूची मे किसी भी स्तर के मुस्लिम अधिकारी को मेन स्टीम वाले पदो पर लगाने के बजाय तमाम बर्फ वाले माने जाने वाले पदो पर लगाने से समुदाय मे मुख्यमंत्री गहलोत व उनकी सरकार के खिलाफ शुरुआत से जारी नाराजगी बढते बढते अब चरम सीमा पर पहुंचती नजर आ रही है। फिर भी कांग्रेस नेताओं से बात करने पर उनका जवाब एक ही आ रहा है कि सामने आने वाले वाले उपचुनाव मे मतदान तो कांग्रेस उम्मीदवार के पक्ष मे करने के अलावा अन्य विकल्प भी समुदाय के पास नही है। तो सो प्याज व सो जुतो वाली कहावत हमेशा की तरह आगे भी कहावत समुदाय के तालूक से सही साबित होकर रहेगी। तो गहलोत फिर समुदाय की परवाह क्यो करे।
              मुख्यमंत्री गहलोत के पूर्ववर्ती सरकार मे भरतपुर जिले के गोपालगढ मे मस्जिद मे नमाजियों को पुलिस गोली से भूंद कर मोत के घाट उतारने के बावजूद पीडितों को ही जैल मे ढूंसने के अलावा थानेदार फूल मोहम्मद को सवाईमाधोपुर जिले के सूरवाल मे सरकारी ड्यूटी करते हुये भीड़ द्वारा सरेआम जलाकर शहीद करने की घटना के बाद गहलोत व उनके मंत्रीमण्डल के किसी भी सदस्य द्वारा उनके घर जाकर शहीद परिवार को सहानुभूति के दो शब्द तक नही कहने से समुदाय मे आजतक आक्रोश व्याप्त है। इसी तरह अब जबसे गहलोत मुख्यमंत्री बने है उसी दिन से मुस्लिम समुदाय को सत्ता की हिस्सेदारी से पूरी तरह दूर रखने की शुरुआत की वो लगातार धीरे धीरे बढती जा रही है।बढती ही नही जा रही बल्कि यह कहे कि उनका मुस्लिम विरोधी चेहरा अब खुलकर सामने आने लगा है, जिसकी शायद समुदाय ने कभी कल्पना तक नही की होगी।
               वसुंधरा राजे सरकार बनाने मे मुसलमानो का कोई खास रोल नही रहने के बावजूद राजे ने यूनूस खान को केबिनेट मंत्री बनाकर परिवहन व पीडब्ल्यूडी जैसे दो महत्वपूर्ण विभागो के अतिरिक्त अनेक अन्य विभागों का प्रभार दे रखा था। राजे के विपरीत गहलोत की सरकार बनाने मे मुस्लिम समुदाय ने अहम किरदार अदा किया। उसके बावजूद गहलोत ने शाले मोहम्मद को मंत्री तो बनाया लेकिन उसको यूनुस खा की तरह महत्वपूर्ण विभाग का प्रभार देने की बजाय केवल मात्र अल्पसंख्यक मामलात विभाग का प्रभार देकर समुदाय को रबड़ की गोली मुंह मे चूसते रहने को दे दी। वसुंधरा राजे ने 2008 मे मदरसा पैराटीचर्स को परमानेंट करके उन्हें पहले प्रबोधक बनाया फिर थर्ड ग्रेड टीचर बनाया। इसके विपरीत गहलोत ने मुख्यमंत्री रहते मदरसा पैराटीचर्स को वादा करने के बावजूद परमानेन्ट करना तो दूर की कोढी बनाकर रख रखा है, साथ मे उन्हें कमजोर करने के अनेक तरह के हथकंडे भी अपनाये जा रहे है। उर्दू को गहलोत सरकार ने लगातार नुकसान पहुचाया है। व विभिन्न तरह के उर्दू व मदरसा पैराटीचर्स के आंदोलन को ऐनकेन सरकार द्वारा कुचला जा रहा है।
            राजस्थान के गहलोत के तीसरी दफा मुख्यमंत्री बनने के बाद एक एक करके उनके द्वारा किये गये राजनीतिक कामो पर नजर दोड़ाये तो मुस्लिम समुदाय के तालुक से पाते है कि मंत्रीमंडल मे एक मात्र मुस्लिम विधायक शाले मोहम्मद को मंत्री बनाया। फिर राजस्थान हाईकोर्ट मे सरकार की तरफ से पैरवी करने के लिये एक महाधिवक्ता व सोलह अतिरिक्त अधिवक्ताओं की नियुक्ति की जिसमे एक भी काबिल मुस्लिम एडवोकेट गहलोत को नही मिला। उसके बाद राजस्थान लोकसेवा आयोग के एक चेयरमैन व चार सदस्यों को मनोनीत किया उसमे भी गहलोत को एक काबिल मुस्लिम नही मिला। वही नगर निगमो मे बहुमत मे मुस्लिम पार्षदों के जीतने के बावजूद एक भी मुस्लिम को महापौर का कांग्रेस की तरफ से गहलोत ने उम्मीदवार तक नही बनने दिया। इसके बाद एक मुख्य सुचना आयुक्त व दो सुचना आयुक्त बनाये गये उनमे भी एक भी मुस्लिम चेहरा गहलोत को फिर भी नही मिला। गहलोत के दो साल के कार्यकाल मे मुस्लिम अधिकारियों को लगातार बर्फ वाले पदो पर पोस्टींग देने का सीलसीला जारी रखा एवं रखे हुये है।
               कुल मिलाकर यह है कि मुस्लिम मतदाताओं की भाजपा के मुकाबले कांग्रेस के पक्ष मे ही सो प्याज खाने व सो जुते खाने वाली कहावत को चरितार्थ करते हुये मतदान करने की मजबूरी को गहलोत भलीभांति समज चुके है। अगर जल्द होने वाले तीन विधानसभा उपचुनावो मे समुदाय कांग्रेस को सबक सीखा देता है तो दिल्ली तक के कांग्रेस नेताओं को दिन मे तारे नजर आने लग जायेगे। वरना हालत दिन ब दिन बदतर होते नजर आयेगे। कुछ पाने के लिये कुछ खोना भी पड़ता है।

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