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मुस्लिम समुदाय मे खण्डितव बरबाद होते परिवारो की समस्या को रोकने के लिये डोमेस्टिक पार्लियामेंट सिस्टम अपने पर जोर देना चाहिए।



                 ।अशफाक कायमखानी।
जयपुर।

                इस्लाम धर्म मे हर बालिग को दिन मे कम से कम पांच समय की सामुहिक नमाज व हफ्ते मे एक जुमे की विशेष नमाज अदा करने के हुक्म का एक फायदा यह भी था कि परिवार के लोग किसी ना किसी रुप मे इकठ्ठा होने से उनमे हर मुद्दे पर आपसी विचार विमर्श भी होता था। नाना नानी व दादा दादी या फिर घर का बूजुर्ग बच्चो को कहानियां सुनाते थे जिनमे नैतिक जीवन जीने का सार भरा रहता था। जो आज पूरी तरह समाप्ति की तरफ बढ चुका है। इससे छुटकारा पाने के लिये फिर से परिवारो मे एक साथ बैठकर विचार विमर्श करने के लिये डोमेस्टिक पार्लियामेंट सिस्टम के फार्मूले को अपनाने से सभी सदस्यों को हर नये काम व प्लानिंग मे अपनी अपनी भागीदारी नजर आयेगी। एवं सबको यह भी पता चलेगा कि एक दुसरे सदस्य के मन मे क्या चल रहा है।
        हर देश की पार्लियामेंट होती है। उसमे बहुमत सदस्यों वाली सरकार होती है। उस सरकार का एक मुखिया होता है। चाहे तो मुखिया बहुमत के आधार पर जो चाहे वो कर सकता है। लेकिन हर कदम उठाने से पहले वो संसद मे उस प्लान पर बहस करवाते है कि जिससे पक्ष विपक्ष के सदस्यो को उस कदम मे अपनी भागीदारी का ऐहसास होता है। एवं सबको पता रहता है कि अब यह कदम उठाया जा रहे है। ऐसा ही हर घर मे छोटे बडे परिवार मे डोमेस्टिक पार्लियामेंटसिस्टम कम से कम हफ्ते -या महिने मे एक दिन जरूर हो। या फिर हर नये कदम से पहले उस विषय पर जरूर हो। चाहे कुछ नया खरीदना हो या पुराना बेचना हो। बच्चों की पढाई की स्थिति का आंकलन हो या उनके विषय चयन का मामला। रिस्ता करना हो या शादी। यानि जब इकठ्ठा बैठेगे तो हर कदम पर चर्चा होगी ओर सबको अपनी अपनी भागीदारी का अहसास व एक दुसरे को एकदूसरे की स्थिति का ठीक से आंकलन होगा।उससे  बच्चे गलत संगत से दूर रहेगे। आज ऐसा नही होने के परिणाम यह निकल रहे है कि वालदैन को यह मालूम नही की बच्चे की मित्र मण्डली के सदस्य कैसे है। बच्चा देर रात तक बाहर झूण्ड मे बैठकर या अकेला मोबाइल पर क्या कर रहा है। इसी तरह बच्चों को वालदैन के बारे मे मालूम नही रहता कि वो क्या कर रहे एवं मोबाइल पर क्या कुछ करते रहते है।कोराना काल मे आन लाईन कक्षाओं के चलने से अनेक परिवारों के बच्चे तो मोबाइल मिलने की झूट से उसके इस तरह चिपके रहते है मानो सबकुछ मोबाइल से हो रहा है।
               कुल मिलाकर यह है कि खण्डित व बरबादी की तरफ जाते मुस्लिम परिवारों मे अब दादा दादी व नाना नानी द्वारा कहानियों के मार्फत नैतिक शिक्षा देने का चलन खतम हो जाने के बावजूद एक दुसरे पर वाच रखने व सामजस्य बनाकर तरक्की की राह पर सरपट दौड़ लगाने के लिये डोमेस्टिक पार्लियामेंट सिस्टम को डवलप करना ही एक उपाय साबित हो सकता है।

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