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मुख्यमंत्री गहलोत व सचिन पायलट के मध्य छिड़े विवाद की जड़ राजद्रोह की धारा 124-A लगाना बताया जा रहा है!


जयपुर।
               राजस्थान की कांग्रेस सरकार मे कमोबेश सबकुछ ठीक ठाक चलते रहने के बावजूद जुलाई माह के मध्य मे राजस्थान की आला मुकाम रखने वाली इनवेस्टीगेशन ऐजेंसी SOG व ACB मे दो अलग अलग रिपोर्ट कांग्रेस नेताओं सहित अन्य नेताओं व कुछ अन्य लोगो के खिलाफ दर्ज होती है या मानो कि करवाई जाती है। जिन रिपोर्ट मे से जो SOG मे रिपोर्ट दर्ज हुई उसमे अन्य धाराओ के साथ राजद्रोह की धारा 124-A भी लगाई गई थी। जिसके धारा के भय के कारण सचिन पायलट व कुछ नेताओं को राजस्थान से करीब एक माह बाहर रहकर एक तरह से अण्डरग्राउण्ड होना पड़ा था। यहां तक कि एसओजी की टीम आवाज का नमूना लेने व जांच करने के नाम पर आरोपियों के छिपने के सम्भावित ठिकाने हरियाणा के मानेसर तक जाकर हरियाणा पुलिस तक एक तरह से भीड़ गई थी। उसके बाद न्यायालय मे मामला जाने पर राजद्रोह की धारा 124-A हटानी ही नही पड़ी बल्कि एसओजी ने तो उस रिपोर्ट पर एफआर भी लगा दी है।
          हालांकि एसओजी ने कांग्रेस मेन महेश जोशी की शिकायत पर रिपोर्ट दर्ज करके अपने स्तर पर जांच करके पाया होगा कि जो रिपोर्ट उनके यहां लिखवाई गई थी या दर्ज की गई वो पुरी तरह सत्य से परे पाई गई होगी। तभी एसओजी ने उस रपट पर एफआर लगा कर भेजा है। लेकिन उक्त प्रकरण को लेकर जिस तरह से प्रदेश मे राजनीतिक अस्थिरता का माहोल बनाया गया व एसओजी की टीम का मानेसर सहित अन्य जगह जांच करने को लेकर जाकर आने मे सरकारी धन का खर्चा भी आया होगा। अब इसमे देखने वाली बात है कि उक्त रिपोर्ट एसओजी मे दर्ज क्यो ओर किसके इशारे पर हुई ओर जांच के नाम पर सरकारी धन का कितना खर्च आया होगा। फिर उस रिपोर्ट का परिणाम भी शुन्य आकर एफआर लगना। यह सबकुछ काफी सोचने पर मजबूर करता है।
             मुख्यमंत्री अशोक गहलोत SOG व ACB मे दर्ज रिपोर्ट के पक्ष मे अनेक तरह के दावे लगातार करते रहै है। अगर रिपोर्ट मे आरोपियों पर लगाये गये आरोप सही थे ओर उन पर 124-A का मामला बनता था तो उन पर मामला बनाया जाना चाहिए था। अगर इसमे वो दोषी थे तो उन्हें सजा तक पहुंचाने तक लेकर जाना चाहिए था। अन्यथा जनता मे संदेश जायेगा कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपनी पार्टी के अंदर मोजूद विपरीत विचार रखने वालो को दवाब मे लाने के लिये उक्त तरह से पावर व सत्ता का गलत रुप मे उपयोग किया होगा। मुख्यमंत्री को इस मामले मे जनता के सामने पूरी तरह स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए।
          कुल मिलाकर यह है कि हमारी जांच ऐजेंसियों की बन चुकी उजली छवि व उनके अधिकारियों का वकार हर परिस्थितियों मे कायम रखने के लिये हर राजस्थानी का कर्तव्य बनता है। अगर कोई राजनेता व व्यक्ति अपने सत्ता के पावर के सहारे ऐजेंसियों की इंसाफाना छवि पर चोट करने की कोशिश करे तो उसके खिलाफ हर इंसाफ पसंद को संवेधानिक दायरे मे रहकर विरोध मे आगे आना चाहिए। पिछले एक महिने मे राजस्थान मे घटे राजनीतिक घटनाटक्रम के हर जिम्मेदार पर जिम्मेदारी तय होनी चाहिए ताकि आगे उक्त तरह की पुनरावृत्ति ना हो पाये। उक्त प्रकरण मे हुये खर्च की भरपाई निरर्थक शिकायत दर्ज कराने वाले व्यक्ति महेश जोशी की निजी आय से भरपाई होकर कड़ा संदेश जाना चाहिए।


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