अशोक गहलोत के अपने आपको मुख्यमंत्री बनाये रखने की जीद के चलते दर्ज रपट मे दफा 124-A की मामूली चूक से राजस्थान का खेल बिगड़ा।


जयपुर।
                 पार्टी मे पनपने वाले अपने कम्पिटिटर को योजनाबद्ध तरीके से राजनीतिक रुप से निपटाने के जादूगर के तौर पर मशहूर अशोक गहलोत अपने आपको प्रदेश मे सर्वेसर्वा बनाये रखने के लिये जो चाले आज तक चलते रहे है उनमे उनमे अक्सर सफल होते रहने से उत्साहित होने के कारण अबकी दफा अपने साथी तत्तकालीन उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट को राजनीतिक रुप से निपटाने की लम्बे समय से कोशिश करने के चलते उनके खिलाफ दर्ज रपट मे 124-A देश द्रोह लगवाने की मामूली चूक व पायलट के धेर्य व उठे कदम का आंकलन ठीक से नही करने की चूक के चलते मुख्यमंत्री गहलोत को आज यह मुश्किल हालात राजनीतिक जीवन मे पहली दफा देखने पड़ रहे है। मोजुदा राजनीतिक संकट मे उनकी कथित तौर पर अबतक बनाई जाती रही गांधीवादी छवि को भी भारी धक्का लगने के साथ ही उनके केवल स्वयं को मुख्यमंत्री पद पर बनाये रखने के लिये वो सबकुछ राजनीतिक रुप से करने की जीद पर अड़े रहने वाले एक अलग छवि के नेता के तौर पर प्रचलित करके उनको रख दिया है।
               मुख्यमंत्री गहलोत से मिलने के लिये मंत्रियो व उनके दल के विधायको को कई दिनो तक मशक्कत करनी होती थी। आज उपजे राजनीतिक संकट मे समय ने क्या पलटी मारी है कि बाड़ेबंदी मे बंद समर्थक विधायकों से वो स्वयं होटल जाकर साथ बैठ रहे है ओर होटल मे सो रहे है तथा मान मनुहार करने के अलावा उनके बताये कार्यो को हवा की तरह निपटाये जा रहे है। होटल की बाड़ेबंदी मे बंद विधायको की पसंद अनुसार रोजाना अधिकारियों की तबादला सूचीया आने की चर्चा आम जबान पर है। जिस आदेश केनिकलवाने के लिये विधायकों के दौड़ लगाते लगाते उनके जूते घिस जाया करते थे वोही आदेश अब होटल मे बंद विधायकों की पसंद अनुसार जारी हो रहे बताते है।
               राजनीतिक टिप्पणी कार बताते है कि एक पंखवाड़े पहले राज्यसभा चुनाव मे कांग्रेस के खाते मे 123 मत पड़ने के बाद अचानक मुख्यमंत्री गहलोत को पार्टी के अंदर अपने कम्पिटिटर पायलट को कुचलने के लिये महेश जौशी द्वारा ऐसीबी व एसओजी मे रपट विभिन्न धाराओं के साथ 124-A मे दर्ज करवाने की जल्दबाजी करने की जरूरत क्यो पड़ी। साथ ही सचिन पायलट व दो मंत्रियों को बरखास्त करने की जल्दबाजी से लगता है कि गहलोत ने यह सबकुछ करने का मन बहुत पहले से बना रखा था। लेकिन यह सबकुछ अब सूलह सफाई मे सबसे बडी बांधा बनता नजर आ रहा है। मुख्यमंत्री को सोचना चाहिये था कि सभी नेता ताकत से कुचले नही जा सकते है। कभी कभार कछुआ व खरगोश की दौड़ वाली कहानी की भी पुनरावृति होती है।
            मुख्यमंत्री गहलोत व दिल्ली हाईकमान मे उनके खास पदाधिकारी साथियो का समर्थन पाकर व दर्ज रपट के बावजूद जब पायलट खेमा दवाब मे आता नही दिखने के बाद जब विधानसभा सत्र मे पायलट समर्थक विधायकों द्वारा भाग लेने की घोषणा से हाईकमान के हाथ-पैर फूलने लगे है। सदन मे गहलोत खेमा हारे या सचिन पायलट खेमा हारे, तो उस स्थिति मे हारेगी तो कांग्रेस ही। राजस्थान मे अगर ऐसी नजीर पड़ती है तो वो नजीर कांग्रेस को अन्य प्रदेशो मे भी परेशान कर सकती है। ऐसे हालात को भांपकर दिल्ली के जो नेता पहले गहलोत से मिलकर पायलट खेमे को कुचलने की बात करते थे वो नेता ही अब बीच का रास्ता निकलने की भागदौड मे लगे हुये है। अगर समझोता होता है तो उस स्थिति मे एकदफा गहलोत को मुख्यमंत्री पद से हटना होगा ओर पायलट को भी पहले हट चुके पदो से अभी भी दूर होने पर हां करनी होगी। गहलोत के पास उपरी तौर पर 99 के बहुमत का आंकड़ा नजर आने मे काफी पोल होने का स्वयं गहलोत को भी अहसास है। वही हाईकमान  भी उस खतरे का भलीभांति भांप चुका बताते है।
          कुल मिलाकर यह है कि अपनी आदत के मुताबिक मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा पार्टी के अंदर मोजूद अपने कम्पिटिटर को कुचलने के लिये पावर का बेजा उपयोग करते हुये 124-A मे उन्हें गिरफ्तार करने की कोशिश का अहसास पायलट समर्थको को समय रहते होने के बाद उनके राजस्थान छोड़कर SOG व ACB की पहुंच से दूर चले जाने से गहलोत को काफी धक्का लगा है।आहूत विधानसभा सत्र मे पायलट समर्थक विधायकों के भाग लेने की घोषणा के बाद कांग्रेस नेताओं के हाथ-पैर फूलने लगे है। वो अब हर हाल मे बीच का रास्ता निकालने मे भागदौड करने लगे है। पर उस निकाले जाने वाले रास्ते पर गहलोत व पायलट का सहमत होना राजनीतिक संकट से कांग्रेस को उभारने के लिये काफी निर्भर करेगा।


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