अपने आपमे शिक्षा मे अगुवा होने का दावा करने वाली कायमखानी बिरादरी को जाट समुदाय से कुछ तो सीख लेनी चाहिये।


जयपुर।
                 राजस्थान के शेखावाटी जनपद के अलावा डीडवाना क्षेत्र मे रहने वाले या यहां के पलायन कर अन्यत्र जाकर निवास करने वाली मुस्लिम समुदाय की कायमखानी बिरादरी वैसे तो अपने आपको मुस्लिम समुदाय की अन्य बिरादरियों के मुकाबले शिक्षा मे अगुवा मानकर चलने का दावा करती है लेकिन भारतीय सीविल सेवा परीक्षा के कल आये परीक्षा परिणाम पर नजर डालते हुये कहना आवश्यक हो जाता है कि इसी क्षेत्र मे रहने वाली जाट बिरादरी से कायमखानी बिरादरी को आगे बढने के लिये कुछ तो सीख लेनी चाहिए।
                 शेखावाटी जनपद व डीडवाना क्षेत्र मे सालो से निवास करने वाली कायमखानी बिरादरी से भारतीय सिविल परीक्षा परिणाम मे सफल अभ्यर्थियों मे अपना नाम दर्ज करवानें मे अबतक सफल होने वालो मे बेरी छोटी की असलम खान, बलारा के जाकीर खान व नुआ की फरहा हुसैन का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। जबकि पीछले एक अर्शे से भारतीय सिविल सेवा परीक्षा मे जाट बिरादरी के बडी तादाद मे अभ्यर्थी विजयी परचम लहराते आ रहे है। कल आये भारतीय सिविल सेवा परीक्षा परिणाम मे शेखावाटी जनपद व डीडवाना क्षेत्र से कुल 829 पदो मे से एक दर्जन से अधिक जाट बिरादरी के अभ्यर्थी सफल हुये है। उनके मुकाबले एक भी कायमखानी अभ्यर्थी का नाम कल कै परिणाम मे दर्ज नही हो पाया है।
        हालांकि कायमखानी समुदाय का भारतीय सिविल सेवा परीक्षा परिणाम से गायब होने का कुछ लोग एक कारण यह बताते है कि केन्द्रीय सेवा के लिये पिछड़ा वर्ग सूची मे कायमखानी का शामिल नही होना प्रमुख बाधा बताते है जबकि जाट बिरादरी को केन्द्रीय सेवा मे ओबीसी जाति के तौर पर आरक्षण का लाभ मिला हुवा है।
       जनपद की कायमखानी बिरादरी को 1980 से लेकर अब तक अपने आपको जाट बिरादरी से तुलनात्मक विश्लेषण करना चाहिए कि कितनी मेहनत की, कितना कमाया, कितनी फिजूलखर्ची की ओर कितनी शिद्दत से शिक्षा की रस्सी को पकड़ कर कामयाबी की मंजिल को पाया ओर पाने की कोशिश की। इसके विपरीत अगर हम नजर दोड़ाये तो पाते है कि मुस्लिम समुदाय फिरको मे बंटकर इबादतगाहो का निर्माण खूब किये लेकिन अपने आपको इबादत गाहो व शैक्षणिक संस्थानों से जोड़े रखने की कोशिशें कम की एवं साथ ही घर को इबादत गाह व पाठशाला कभी बनने नही दिया। मुकाबले मे जाट समुदाय ने इबादत गाहो की जगह शेक्षणिक संस्थाओं का निर्माण खूब किया ओर घर (खेत-जावं) को इबादतगाह व पाठशाला बनाने को अहमियत अधिक दी। जाट समुदाय ने जिस लगनता , एकाग्रता व विश्वास के साथ शिक्षा को सर्वोपरि मानकर उसको सीढी बनाकर कामयाबी का परचम लहराने की लगातार कोशिशे की उसमे वो लगाते है कि काफी हद तक कामयाब भी रहे व हो रहे है। जबकि कायमखानी बिरादरी शिक्षा को सर्वोपरी मानने के रास्ते को दिन ब दिन अपनाने की बजाय इससे दूर भागती जा रही है। कम से कम कायमखानी बिरादरी को 1980 से लेकर 2020 तक के चालीस साल के काल मे अपने व जाट समुदाय मे तुलनात्मक विश्लेषण जरुर करना चाहिए। उसके बाद किसी निष्कर्ष पर पहुंच कर किसी ना किसी रुप मे कार्ययोजना बनाकर उस पर काम करना होगा।
           कुल मिलाकर यह है कि जाट समुदाय के मुकाबले कायमखानी बिरादरी मे शेक्षणिक तोर मजबूत होकर कामयाबी का परचम लहराने के लिये किसी स्तर पर सामाजिक सिस्टम नही है। इसके अलावा हाल ही मे सीनियर सेकेंडरी कक्षा के परिणाम मे सेंकड़ो कायमखानी छात्र-छात्राओं ने 95 व इससे अधिक प्रतिशत अंक लाकर सबका गौरव बढाया है। लेकिन गाईडेंस व कोंसलिंग के अभाव मे यह छात्र-छात्राऐ भी वो सबकुछ नही कर पायेगे जो करने की यह क्षमता रखते है।


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