राजस्थान के राजनीतिक घटनाटक्रम के लिये अगला सप्ताह महत्वपूर्ण होगा। अधिकांश राजनीतिक पण्डित गहलोत द्वारा बहुमत सिद्ध करना मान रहे है लेकिन ऊंट आखिर समय तक किसी भी करवट बैठ सकता है।
जयपुर।
पिछले दस दिन से राजस्थान की राजनीति मे अचानक आये भूचाल के कुछ हदतक निर्णायक मोड़ पर पहुंचने के लिये अगला सप्ताह काफी महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है। बीटीपी के दो विधायको व एक माकपा से निलम्बित विधायक के साथ आने के अलावा दस निर्दलीय विधायकों का स्पोर्ट पुख्ता होने के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अब सदन मे बहुमत सिद्ध करने के साथ बगावत कर चुके विधायकों के सामने दुविधा की स्थिति खड़ी करना चाहते है ताकि उनके प्रस्ताव के समर्थन मे पायलट समर्थक विधायक मतदान करके सदस्यता बचाये या फिर खिलाफ मतदान करने पर सदस्यता खत्म करवाये।
हालांकि राजनीतिक पण्डित मुख्यमंत्री गहलोत के पास 102 विधायको का समर्थन मानकर चल रहे। जिनमे अस्पताल मे गम्भीर रुप से बीमार भर्ती मंत्री भंवरलाल मेघवाल व विधानसभा अध्यक्ष सीपी जौशी को भी गिनती मे शामिल करके चल रहे है। इसके अलावा दुसरी तरफ भाजपा व रालोपा के 75, कांग्रेस के बागी 19 व 3 निर्दलीय विधायकों को मिलाकर कुल 97-विधायक की गिनती बैठती है। माकपा का दूसरा विधायक गिरधारी महिया तटस्थ रह सकता है। पर वो गहलोत खेमे के साथ अभी तक जाता नजर नही आ रहा है। विधानसभा अध्यक्ष भी तभी मतदान कर पायेगा जब दोनो तरफ बराबर बराबर वोट आये। इसी तरह गहलोत खेमे के पक्ष मे विधानसभा अध्यक्ष व मंत्री भंवर लाल मेघवाल का मत पड़ना मुश्किल होगा। इन दो मतो को हटा देते है तो गहलोत के पास सो मत की तादाद बचती है। दुसरी तरफ 97 विधायक बचते है। यानि फर्क केवल तीन मत का रहेगा। अगर दो मत गहलोत खेमे से अलग ह़ो कर पायलट खेमे की तरफ आते ही सरकार गिर सकती है। तब गिरधारी महिया तटस्थ रहे।
जयपुर की होटल मे बैठे मुख्यमंत्री गहलोत खेमे के विधायको मे एक दर्जन के करीब विधायक ऐसे है जो एक दम चुपचाप बैठकर सबकुछ देख रहे है। कुछ विधायक तो ऐसे भी है जो अपने पिताओ की राजनीतिक हत्या का आरोपी अशोक गहलोत को मानते रहे है। उन विधायकों के पिता विधानसभा से बाहर रहकर बदलते सभी हालात पर नजर लगाये हुये है। जो अंतिम समय पर फैसला लेकर अपने पूत्र-पूत्री विधायको को खास हिदायत दे सकते है। इसके विपरीत माकपा के दोनो विधायक का एक तरफ मतदान होना कतई नही होगा। हो सकता है कि माकपा को दोनो मत एक दूसरे मत का प्रभाव बराबर कर दे।
गहलोत-पायलट के मध्य चल रहे राजनीतिक घटनाटक्रम मे किसी ना किसी रुप मे भाजपा भी शामिल होती नजर आ रही है। SOG व ACB अपने यहां दर्ज शिकायतो के बाद जानच करने के रुप मे शामिल है। वही चिहे पर्दे के पिछे से सही आयकर विभाग ने भी गहलोत समर्थकों के यहां रेड डाल चुका है। वही टेलीफोन टेपिंग मामले को लेकर CBI के भी आने की सम्भावन नजर आने लगी है। कांग्रेस ने SOG व ACB विभिन्न रपट दर्ज करवाई है। दुसरी तरफ भाजपा ने भी कांग्रेस नेताओं के खिलाफ पुलिस मे शिकायत दर्ज करवाई है। वही बसपा अध्यक्ष ने घटे राजनीतिक घटनाटक्रम पर बोलते हुये राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की है। उक्त सब घटनाटक्रम से लगता है कि राष्ट्रपति शासन की सिफारिश होने के लिये भूमिका तैयार की जा रही बताते है।
विधानसभा अध्यक्ष द्वारा महेश जौशी की शिकायत पर जिन 19 कांग्रेस विधायकों को नोटिस देकर जवाब मांगा था। उसके खिलाफ उन विधायकों के कोर्ट चले जाने पर उनकी 20-जुलाई (सोमवार) को सुनवाई होनी है। सुनवाई मुकम्मल होकर कल जजमेंट आता है या फिर आगे डेट मिलती है। यह सबकुछ कल ही पता चल पायेगा। सुनवाई के दो-तीन दिन बाद मुख्यमंत्री सदन का सत्र बुलाकर बहुमत सिद्ध करने की कोशिश कर सकते है। लेकिन बहुत सिद्ध होना जीतना आसान मानकर चल रहे है। उतना आसान कतई नही है। कुछ विधायकों के सीने मे उस बात की आग सुलग रही है जिनके पिताओ की राजनीतिक हत्या अशोक गहलोत के हाथो हुई बताते है।
कुल मिलाकर यह है कि गहलोत खेमे के होटल मे ठहरे अधिकांश विधायक गाने गाकर, खेल खेलकर, फिल्में देखकर व इटालियन खाना बनाने की विधि सीखकर कोराना काल मे भी जीवन का आनंद ले रहे है। वही कुछ विधायक फोटो व वीडियो से दूर मनोरंजन करने से पुरी तरह दूर रहते हुये होटल मे ठहरे हुये है। जो आखिर समय पर अपने मत का उपयोग मिले आदेश अनुसार कर सकते है जिस मत से निकले परिणाम को सालो साल याद किया जाये। इसके विपरीत सचिन पायलट खेमा बीना किसी नुकसान होने की परवाह किये हर हाल मे गहलोत सरकार गिराना चाहेगे। फिर सरकार गिरने के बाद नये विकल्प पर विचार कर सकते है। मत विभाजन की स्थिति मे पायलट के साथ भाजपा खडी मिलने की पक्की सम्भावना जताई जा रही है। विधायक खरीद फरोख्त कोशिश करने के तीन आरोपी विधायक अगर गहलोत के पक्ष मे मतदान करे तब ही सरकार बच सकती है।वरना सदन मे मत विभाजन अगर होता है तो परिणाम कुछ भी आ सकता है।
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