अग्रणी कायमखानी बिरादरी को सीमित संख्या वाली शादी की सरकारी बाध्यता को अब पूरी तरह जीवन मे उतार लेना चाहिए। - उस बचत को शिक्षा पर खर्च करने की आवश्यकता को समझना होगा।


जयपुर।
              फौज-पुलिस की सेवा के अलावा किसान के रुप मे जीवन जीने वाली राजस्थान के मुस्लिम समुदाय की कायमखानी बिरादरी को लोकडाऊन मे सरकार द्वारा शादी समारोह मे अधिकतम पच्चास लोगो तक की सीमित संख्या मे शामिल होने की बाध्यता को अब आगे भी अपने जीवन मे पूरी तरह उतार कर उसको अपना लेने पर विचार कर ही लेना चाहिए।
          चाहे किसी समय शादी मे बारात परिस्थिति पूर्ण 3-7 दिन रुकती थी। लेकिन उसके बाद समाज के बुजुर्ग लोगो ने पहले दो दिन की शादी व फिर एक दिन की शादी का चलन आम किया। उसके बाद धीरे धीरे हालातो के मध्यनजर दिन मे कुछ घंटो की शादी का चलन आम हुवा। जिसके कारण काफी फिजूलखर्ची रुकती नजर आयी। लेकिन एक समय बाद अचानक पैसा वाला बनने वाले अचानक सेठ व कुछ अधिकारी वर्ग ने रात को डेकोरेशन वाली शादी करने का चलन चलाकर बुजुर्ग लोगो द्वारा डाली परिपाटी मे खलल डालने की कोशिश जरूर की। पर आज भी कुछ अपवादों को छोड़कर बिरादरी की अधीकांश शादी दिन मे ही हो रही है। पीछले कुछ सालो से कायमखानी यूथ ब्रिग्रेड ने जोड़ा बंदी को लागू करने के अलावा फिजूल खर्च को रोकने के लिये जोरदार मुहिम चलाई। जिसके काफी सार्थक परिणाम भी निकले है।
          पहले विश्वव्यापी मंदी फिर नोटबंदी व जीएसटी की मार पड़ने के अतिरिक्त अरब से रोजगार समाप्त होने के साथ साथ अब कोराना के कारण लागू हुये लोकडाऊन ने कायमखानी बीर को भी काफी कुछ समझने व सोचने पर मजबूर कर दिया है। जो बीना प्लानिंग के कार्य किये वो धाराशायी होते दिख रहे है। शिक्षा व जहनी समझ के कारण चंद जो लोग सरकारी सेवा को पकड़ पाये वो सेलेरी या पैंसन से अपना व अपने कुछ लोगो का आसानी से इस परेशानी के माहौल मे गुजारा करते देखे गये। जो सरकारी सेवा की व तिजारत की तरफ झांककर नही देख पाये वो लोकडाऊन मे काफी तकलीफ़ को नजदीक से देख चुके है। जानकार तो यहां तक कह रहे है कि कोराना व लोकडाऊन का असर लम्बा चलेगा जिसमे लोगो को अनेक कठिनाइयों से सामना करना पड़ सकता है।
            हालांकि लोकडाऊन मे कायमखानी बिरादरी के कुछ नैक बंदो व उनके अलावा युवाओं ने कायम रसोई के माध्यम के अतिरिक्त कच्चा-पक्का राशन वितरण करने साथ साथ अन्य तरीको से जरुरतमंदों की काफी मदद करके उन्हें राहत पहुंचाने का बेमिसाल काम अंजाम दिया है। लेकिन आज तो यह शुरुआत हुई है। आगे जब आमदनी रुपये की चवन्नी हो जायेगी तो राहत के काम का रंग भी फीका पड़ता नजर आयेगा तब अनेक चेलेंज सामने खड़े मिलेंगे। उन हालात मे अपने आपको व अपने लोगो को बचाये रखने के तमाम तरह की फिजूल खर्ची को तिलांजलि देते हुये उससे होने वाली बचत से हर घर के हर बच्चे को अच्छी तालिम से जोड़कर उसे सरकारी अहेलकार या फिर ताजीर बनाने की तरफ कदम बढाने से मुकाबला करने का विकल्प होगा। अगर ऐसा ना हो पाया तो अरब की कमाई से मात्र जो बडे महल (मकान) खड़े किये है उनके बिजली के बिल व मेंटिनेंस करना भी मुश्किल हो जायेगा।
                कुल मिला यह है कि मुस्लिम समुदाय की अधीकांश बिरादरियों मे मजबूत पंचायत व जमात के रुप मे मजबूत संगठन कायम है। जो वो संगठन कठोर फैसले लेगी तो उनकी बिरादरी पूरी तरह लबेक कहते हुये उस अमल करने से पीछे नही हटेगी। लेकिन कायमखानी बिरादरी की  किसी समय मजबूत महासभा नामक जो संगठन हुवा करता था वो आज उस तरह से अस्तित्व मे नजर नही आ रहा है। उस स्थिति मे सामुहिक एक साथ फैसला लेकर उस पर अमल करना व कराना मुश्किल हो सकता है। ऐसे हालात मे यूथ ब्रिग्रेड को आगे आकर कोशिश करनी चाहिए की कम से कम वो अब शादी मे अधिकतम पचास लोगो की सीमित संख्या का पालन करने की सरकारी बाध्यता को आगे भी बिरादरी मे आम करके उससे होने वाली बचत को शिक्षा पर खर्च करने की जेहनसाजी करने का अभियान चला कर सुखद परिणाम देने की तरफ विचार करने की तरफ बढना जरुर चाहिए।


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