संकट की घड़ी मे रियाज जमा व मुस्तफा जमा जैसे किसानों की दरीया दिली से सबक लेना होगा।
जयपुर।
हालांकि राजस्थान के कोने कोने व भारत की अनेक जगहों से दो तरह की अलग अलग खबरे आ रही है कि भोजन नही मिलने से जच्चा के नवजात के लिये दूध नही उतर रहा है। भूख से तड़फन के कारण महिला ने अपने पांच बच्चों को नदी मे फैंक दिया। इसके विपरित ऐसे भी अनेक समाचार मिल रहे है कि सरकार के शिकायती नम्बरो पर भूख से तड़फने की यलगार करने पर जब सरकारी अमला उस तक भोजन सामग्री लेकर पहुंचता है तो उसके यहां कुछ दिन की प्रयाप्त खाद्य सामग्री पाई जा रही है। पर दोनो तरह की खबरो के मध्य मध्यप्रदेश के गुना जिले के रियाज जमा शेख व मुस्तफा जमा शेख नामक दो भाइयो ने अपने पच्चीस बीगा खेत की गेहूं की फसल को अपने पिता शेख मोहम्मद के इशाले सवाब के लिये सरकार को दान करके हमारे सामने एक नैक उदाहरण पेश किया है।।
कोराना-19 व अचानक लगे लोकडाऊन से उपजे हालात मे सभी धर्मो के धार्मिक स्थलो से संकट के दौर मे जरुरतमंदों के लिये राहत के लिये जो काम होना चाहिए था उतना शायद हो नही पाया। जबकि इस संकट के समय को छोड़कर बाकु समय मे जनता द्वारा उक्त सभी धार्मिक स्थल़ो को धन देने मे कोई कमी नही रखती है। कुछ धार्मिक स्थलो की आमद तो इतनी है कि उनके एक दिन की आमद से एक शहर के जरुरतमंद लोगो को भोजन खिलाया जा सकता है। जिनमे से कुछेक स्थलो के पास तो बेशुमार दौलत आज भी जमा है।
लोकडाऊन से उपजे संकट के दौर मे अनेक लोगो का सब्र टूटता नजर आया। दिहाड़ी मजदूरों को छोड़कर कुछ ऐसे लोगो ने भी भूखे की हालत बताकर सरकार से राशन सामग्री खास तौर पर शहरो मे मांगना जारी रखा लेकिन गावं का जरुरतमंद किसी के पास मांगने नहु गया बल्कि गावं का किसान स्वयं खाद्य सामग्री सहित चलकर जरुरतमंद के पास पहुंचा। उस मददगार किसान ने मदद का ना ढिंढोरा पीटा ओर ना हि अखबारात मे खबर शाया करवाई। दिल से सलाम करना चाहिए कि किसान बिरादरी ने अपनी रोटी मे से आधी रोटी गावं मे मोजूद जरुरतमंद को खिलाने के बाद अपने बच्चों को निवाला दिया। जबकि शहरो मे तो अनेक खाद्य व अन्य सामान विक्रेताओं द्वारा काला बाजारी व ऊंची दर पर बेचते समान के कारण सरकारी विभाग को रेड तक डालनी पड़ी है।
भारत मे स्कूल व अस्पतालों की तादाद मे कोई खास इजाफा नही हुवा हो लेकिन हर मजहब के धार्मिक स्थलों की तादाद व उसके प्रचार के लिये सम्मेलन-मजलिस व इस्तेमात मे भारी इजाफा जरुर होता देखा गया एवं जारी भी है। इन धार्मिक स्थलो के लिये आम अवाम ने दिल खोलकर दान व चंदा के रुप मे धन दिया था। लेकिन मोजूदा संकट मे उक्त धार्मिक स्थलो मे से अधिकांश धार्मिक स्थलों की प्रबंध समिति केवल मात्र अपने अपने क्षेत्र मे मोजूद जरुरतमंदों की जायज जरूरत पूरी कर देते तो ना ही आज सरकार को दिक्कत होती ओर नाही किसी को भूखे रहना होता।
इस संकट के हालत मे भी कुछ लोग किसी ना किसी मुद्दे का बहाना बनाकर नफरत की फसल काटते नजर आये हो। लेकिन इसी के मध्य अनेक सामाजिक व मानवाधिकार संगठनों के कारकूनो ने मिशाली काम किया है। जयपुर शहर व राजस्थान के कुछ हिस्सों मे पीयूसीएल व होमलैश संगठन ने खतरो से खेलते हुये राहत का काम दिन रात किया है। उनकी मिशाल बहुत कम भारत भर मे नजर आयेगी। अनेक जरुरतमंदों का समय पर उक्त दोनो संगठन सहारा बनकर वतन व वतन की जनता की मदद करने का कीर्तिमान स्थापित किया है। इनके अतिरिक्त सीकर मे पूर्व केंद्रीय मंत्री सुभाष महरिया व चूरु के पूर्व विधायक मकबूल मण्डेलिया परिवार द्वारा खाद्य सामग्री के किट जन जन तक पहुंचाने का जो काम किया है, उसकी जितनी तारीफ की जाये वो कम ही होगी।
कुल मिलाकर यह है कि हमेशा सरकारी उपेक्षा का शिकार होने वाले सोशल व मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के साथ साथ किसान तबका हमेशा की तरह मोजूदा संकट मे एक बार फिर से सामने उभर कर आया है। जिसने बीना किसी प्रचार व दिखावे के अपने बच्चों को आधी रोटी खिलाकर उसमे से बची आधी रोटी उनके क्षेत्र मे रहने वाले जरुरतमंद लोगो के मुंह मे निवाला के रुप मे देने की हर मुमकिन कोशिश की है। गुना मे पच्चीस बीगा जमीन मे खड़ी गेंहूँ की फसल को मोजूदा संकट मे सरकार को दान करने वाले मुस्तफा जमा व रियाज जमा भी किसान बिरादरी से तालुक रखते है।
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