आवश्यकता अविश्कार की जननी की कहावत चरितार्थ करते दिहाड़ी मजदूर व ओटो चालक।
सीकर।
आवश्यकता अविश्कार की जननी को जब कोई हर मुश्किल मे चरितार्थ करने की ठान ले तो वो हर कठिन समय मे भी कोई ना कोई रास्ता निकाल कर अपने जीवन मे सुनहरा रंग भर ही लेता है। अभी कोविड-19 के प्रकोप से बचने के लिये सरकार ने लोकडाऊन का आदेश जारी किया तो देशभर मे अनेक दिहाड़ी मजदूर व रोज कमाकर खाने वाले इधर से उधर व उधर से इधर पैदल व उपलब्ध साधनो से किसी भी तरह से अचानक घर पहुंचने के लिये भागते नजर आये। उसी समय कुछ मजदूर -गरीबो के सामने भोजन के लाले पड़ने पर किसी ने दान लिया तो किसी ने भोजन सामग्री भामाशाहों से लेकर गुजारा किया। लेकिन कुछ दिहाड़ी मजदूर ऐसे भी थे जो चेजा-पत्थर यानि भवन निर्माण मे मजदूरी करके जीवन यापन करते थे। अचानक लोकडाऊन से उनका वो काम बंध हुआ तो उनमे से कुछेक ने दान या फिर भामाशाहों से खाद्य सामग्री की मदद लेना गवांरा नही किया। ओर उन्होने हाथ ठेला किराये पर लेकर लोकडाऊन मे छूट वाले काम "शब्जी" मंण्डी से खरीदकर घर घर (डोर-टू-डोर) जाकर बेचने का नया काम शुरु करने पर उनके जीवन यापन के लिये प्रयाप्त खर्चा इस धंधे से निकलने लगा।
प्रधानमंत्री के लोकडाऊन करने की घोषणा के पहले राजस्थान मे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने लोकडाऊन जारी कर दिया था। उसके कारण राजस्थान मे दिहाड़ी मजदूरों की रेलमपेल तो हुई लेकिन अन्य प्रदेशों की रेलमपेल के मुकाबले राजस्थान मे काफी कम हुई। साथ ही राजस्थान सरकार द्वारा उपजे हालात को बहुत ही सावधानी पूर्वक समय रहते सम्भाल लेने से हालात बिगड़ नही पाये है। जिसका परिणाम है कि चारो तरफ इस मामले मे राजस्थान सरकार के प्रयासों की हर तरफ तारीफ हो रही है।
हालांकि कोराना-19 के बचाव के उपाय के लिये जारी लोकडाऊन के कारण अधिकांश लोग घरो मे रहकर की सूखी सब्जी पापड़, मंगोड़ी, दाल, आलू, सूखी हुई सांगरी, खिंपोली, खेरला, कढी व रायता का ही इस्तेमाल कर रहे है। लेकिन कुछ लोग हरी सब्जी व सब्जियों मे डलने वाले हरे समान को घर घर पहुंच कर देने वाले हाथ ठेला सब्जी विक्रेताओं से ही खरीद कर रहे है। लोकडाऊन के बाद हाथ ठेला सब्जी विक्रेताओं की तादाद अचानक बढ गई है।
कुल मिलाकर यह है कि दिहाड़ी मजदूरों व आटो चालको मे से अधिकांश लोग लोकडाऊन मे छूट वाले सब्जी बेचने का काम शुरु कर दिया है। पहले के मुकाबले गली-मोहल्ले मे सब्जी बेचने वालो की दिनभर रेलमपेल मची रहती हैँ। जो एक अच्छा कदम ही माना जायेगा।
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