'सूफी तो सिर्फ कलाम होता है, संगीत नहीं'



 लखनऊ,  ::  सूफी मिज़ाज के गीत 'रंगरेज' के जरिये गायन के क्षेत्र में भी कदम रखने वाले मशहूर गीतकार संदीप नाथ का मानना है कि संगीत नहीं बल्कि सिर्फ कलाम ही सूफी होता है और सूफियाना मिजाज को उसके असल रूप में पेश करने के लिये वह एकल गीत तैयार करने पर खास ध्यान दे रहे हैं।

संदीप ने रविवार को 'भाषा' से खास बातचीत में कहा कि एक गायक के तौर पर उनका पहला सिंगल नम्बर 'रंगरेज' रिलीज हो चुका है और खुशी है कि वह पसंद भी किया जा रहा है। उनकी दिली इच्छा है कि आधुनिक युग के शीर्ष संगीतकार ए.आर. रहमान के साथ काम करें। खुदा ने चाहा तो उनके संगीत निर्देशन में कुछ सूफियाना गाने का मौका जरूर मिलेगा।

आशिकी—2 और सांवरिया जैसी म्यूजिकल हिट फिल्मों में यादगार नग्मे लिख चुके संदीप ने कहा कि आजकल फिल्मों में सूफी के नाम पर बहुत कुछ परोसा जा रहा है, मगर दरअसल सिर्फ मौला—मौला शब्द डाल देने से कोई गीत सूफियाना नहीं हो जाता। लोग सूफी संगीत बताते हैं लेकिन दरअसल, सूफी तो सिर्फ कलाम होता है, संगीत नहीं।

उन्होंने कहा कि बहरहाल, मैं किसी को सिखाने नहीं बैठा हूं लेकिन मैं अपनी तरफ से कुछ अच्छी सूफी रचनाएं तैयार करूंगा। हर साल मैं खालिस सूफी मिज़ाज से भरे एक—दो अच्छे 'सिंगल्स' बनाउंगा। मेरी जड़ें लखनऊ, इलाहाबाद, कानपुर में बसती हैं। मैं इन शहरों की रूहानी तहजीब की नुमाइंदगी करता हूं। मैंने इन शहरों के सूफी मिजाज से जो कुछ सीखा है उसे अपने काम में जाहिर करने की कोशिश करूंगा।

'पेज—3', 'सरकार', 'सरकार राज', 'फैशन', 'कॉरपोरेट', 'पान सिंह तोमर', जैसी फिल्मों में भी दिल छू लेने वाले गीत लिख चुके संदीप ने कहा कि आजकल फिल्मों में खालिस शायरी कम हो पाती है। इसलिये मेरी कोशिश है कि लोकप्रिय कलेवर में विशुद्ध शायरी को पेश करूं ताकि वह सबके दिल को छू सके।

'रंगरेज' का जिक्र करते हुए संदीप ने बताया कि उनके जहन में एक परिकल्पना थी। ईश्वर से बड़ा रंगरेज कोई नहीं है। उसने दुनिया में अनेक रंग घोले हैं। इस गीत में मैंने ईश्वर को ही रंगरेज माना है और रंगों से मतलब जीवन के रंगों से है।

उन्होंने बताया कि इस गीत की कहानी का जो रंगरेज है वह ईश्वर को ही रंगरेज मानता है और उसका यह भी मानना है कि खुदा ने जीवन में जो रंग बिखेरे हैं वे हालात के साथ बदलते रहते हैं। खुदा ने हम पर जो रंग डाले हैं उनको अपनाकर हमें हर रंग में खुश रहना चाहिये।

संदीप ने कहा कि वह फिल्मों में काम कर रहे हैं लेकिन अपने दिल की बात अपने ढंग से तभी रखी जा सकेगी जब हम अपनी मर्जी से काम करेंगे। सिनेमा की अपनी मांगें होती हैं लेकिन मैं स्वतंत्र एकल गीत इसीलिये कर रहा हूं क्योंकि मैंने समाज से जो सीखा और लिया है, उसे संगीत के जरिये आगे बढ़ा सकूं।

गीत को खुद गाने का ख्याल कैसे आया, इस पर संदीप ने कहा कि जब वह गाना बना रहे थे, तब उसे अक्सर गुनगुनाते थे। जब साथी कलाकारों ने कहा कि ऐसा लगता है कि यह आपके दिल की आवाज है, लिहाजा अगर इसे आप ही गायें तो बेहतर होगा। इसके अलावा इसके लिये इंडस्ट्री के कई बड़े संगीतकारों ने भी राय दी। बहुत डरते—डरते मैंने गाना शुरू किया।

उन्होंने कुछ और गाने भी गाये हैं, मगर अभी वे रिलीज नहीं हुए हैं। अभी दो सिंगल और तैयार हुए हैं। उनमें से एक तो बांग्ला भाषा में महान कवि लालन फकीर शाह का 'मिलन होबे' है। यह 17वीं शताब्दी का लोक गीत है। इसके अलावा 'मेरे टुकड़े', 'इश्क निराला' भी हैं। ये सूफियानी रोमांटिक और कुछ उदासी के गाने भी हैं। इनमें से किसी का शूट चल रहा है तो किसी का हो रहा है।




 

 


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