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अमेरिका-तालिबान करार:भारत की सधी प्रतिक्रिया, कहा-शांति के लिए प्रायोजित आतंकवाद का खात्मा जरूरी

नयी दिल्ली, :: अमेरिका और तालिबान के बीच हुए शांति समझौते पर भारत ने शनिवार को सधी हुई प्रतिक्रिया जतायी और कहा कि उसकी लगातार नीति उन सभी अवसरों का समर्थन करने की रही है जो अफगानिस्तान में शांति, सुरक्षा और स्थिरता ला सके तथा आतंकवाद की समाप्ति सुनिश्चित करे।


विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा कि एक निकटतम पड़ोसी के तौर पर भारत अफगानिस्तान को सभी तरह का सहयोग देना जारी रखेगा। कुमार ने यह कहकर एक स्पष्ट संकेत दिया कि पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर भारत का है।


10 महीने की वार्ता के बाद अमेरिका और तालिबान ने कतर की राजधानी दोहा में शनिवार को एक ऐतिहासिक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किये।


कतर में भारत के राजदूत पी कुमारन उस कार्यक्रम में मौजूद राजनयिकों में शामिल थे जहां इस समझौते पर हस्ताक्षर किये गए।


विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, ‘‘भारत की हमेशा से नीति उन सभी अवसरों का समर्थन करने की रही है जो अफगानिस्तान में शांति, सुरक्षा और स्थिरता ला सकें, हिंसा समाप्त करें और अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद से संबंध समाप्त कर अफगान के नेतृत्व वाली, अफगान के स्वामित्व वाली और अफगान नियंत्रित प्रक्रिया के जरिये एक दीर्घकालिक राजनीतिक समाधान लाये।’’


वह दोहा में अमेरिका..तालिबान समझौते पर हस्ताक्षर होने और काबुल में अफगान और अमेरिकी सरकारों द्वारा एक संयुक्त घोषणा जारी किये जाने पर प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे थे।


भारत अफगानिस्तान में एक महत्वपूर्ण हितधारक रहा है क्योंकि उसने युद्ध प्रभावित देश के पुनर्निर्माण में पहले ही लगभग दो अरब अमरीकी डालर खर्च कर दिये हैं।


कुमार ने कहा, ‘‘एक निकटतम पड़ोसी के तौर पर भारत अफगानिस्तान सरकार और वहां के लोगों को एक शांतिपूर्ण, लोकतांत्रिक और समृद्ध भविष्य के लिए उनकी आकांक्षाओं को साकार करने के लिए सभी तरह की सहायता देना जारी रखेगा जिसमें अफगान समाज के सभी वर्गों के हित संरक्षित हों।’’


शांतिपूर्ण समझौते को अंतिम रूप दिये जाने से कुछ दिन पहले भारत ने अमेरिका से कहा था कि हालांकि अफगानिस्तान में शांति के लिए इस्लामाबाद का सहयोग महत्वपूर्ण है लेकिन पाकिस्तान पर इसको लेकर दबाव बनाया जाना चाहिए कि वह अपनी धरती से संचालित होने वाले आतंकी नेटवर्कों पर शिकंजा कसे।


श्रृंगला दो दिवसीय यात्रा पर शुक्रवार को काबुल पहुंचे जिस दौरान उन्होंने अफगान नेतृत्व से एक आत्मनिर्भर, संप्रभु, लोकतांत्रिक, बहुलवादी और समावेशी अफगानिस्तान के लिए भारत का समर्थन दोहराया।


उन्होंने अफगानिस्तान से यह भी कहा कि देश में स्थायी शांति के लिए बाहर से प्रायोजित आतंकवाद का खात्मा जरूरी है। उनका परोक्ष तौर पर इशारा अफगानिस्तान में आतंकवादी समूहों को पाकिस्तान के समर्थन की तरफ था।


विदेश सचिव ने अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी, मुख्य कार्यकारी अब्दुल्ला अब्दुल्ला, निर्वाचित उप राष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हमदुल्ला मोहिब से बातचीत की।


विदेश सचिव ने पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई, कार्यवाहक विदेश मंत्री मोहम्मद हारून चकहानसुर एवं कार्यवाहक वित्त मंत्री अब्दुल जादरान से मुलाकात भी मुलाकात की। उन्होंने अलग से अफगान नेताओं, नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों से संवाद भी किया।


शांति समझौते पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि भारत ने इसका उल्लेख किया है कि अफगानिस्तान में पूरे राजनीतिक विस्तार ने इसका स्वागत किया है।


अमेरिका और तालिबान के बीच दोहा में एक महत्वपूर्ण समझौते पर हस्ताक्षर होने से एक दिन पहले श्रृंगला काबुल पहुंचे।


विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा, ‘‘विदेश सचिव ने अफगान नेतृत्व के साथ अपनी बैठकों में दोनों पड़ोसियों और रणनीतिक साझेदारों के बीच राजनीतिक, आर्थिक और विकास साझेदारी बढ़ाने के लिए भारत की प्रतिबद्धता दोहरायी।’’


मंत्रालय ने कहा कि श्रृंगला ने एक आत्मनिर्भर, संप्रभु, लोकतांत्रिक, बहुलवादी और समावेशी अफगानिस्तान के लिए भारत के लगातार समर्थन को दोहराया जिसमें अफगान समाज के सभी वर्गों के हितों को संरक्षित हो।


विदेश सचिव ने स्थायी और समावेशी शांति एवं सुलह के लिए अफगान नेतृत्व, अफगान स्वामित्व और अफगान नियंत्रण के लिए भारत के समर्थन को व्यक्त किया।


विदेश मंत्रालय ने कहा, ‘‘उन्होंने इस बात को रेखांकित किया कि अफगानिस्तान में स्थायी शांति के लिए बाह्य रूप से प्रायोजित आतंकवाद को खत्म करने की जरूरत है।’’


अमेरिका, रूस और ईरान जैसी प्रमुख शक्तियां अफगान शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के प्रयासों के तहत तालिबान तक पहुंच बना रही थीं।


भारत का कहना है कि इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि किसी भी प्रक्रिया से ऐसा कोई ‘‘अनियंत्रित क्षेत्र’’ उत्पन्न नहीं होना चाहिए जहां आतंकवादियों और उनके समर्थकों को फिर से स्थापित होने का मौका मिले।


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